भारत एक एक पितृसत्तात्मक देश है। यहां सामान्यतः ज़्यादातर संसाधनों का मालिक पुरुष है। उनको महिलाओं की तुलना में ज़्यादातर अधिकार हैं। सिर्फ अधिकार ही नहीं, बल्कि महिलाओं के जीवन पर भी उनका ही नियंत्रण है। इस पर तो कई धार्मिक-सांस्कृतिक रूप से मान्य किताबों में वर्णन है। यहां सिर्फ एक श्लोक की बात करता हूं –
अस्वतंत्रता: स्त्रियः कार्या: पुरुषै स्वैदिर्वानिशम
विषयेषु च सज्जन्त्य: संस्थाप्यात्मनो वशे
पिता रक्षति कौमारे भर्ता यौवने
रक्षन्ति स्थाविरे पुत्र,न स्त्री स्वातान्त्रयमर्हति
सूक्ष्मेभ्योपि प्रसंगेभ्यः स्त्रियों रक्ष्या विशेषत:
द्द्योहिर कुलयो:शोक मावहेयुररक्षिता:
इमं हि सर्ववर्णानां पश्यन्तो धर्ममुत्तमम
यतन्ते भार्या भर्तारो दुर्बला अपि
मनुस्मृति के इस श्लोक का अर्थ है-
पुरुषों को अपने घर की सभी महिलाओं को चौबीस घंटे नियन्त्रण में रखाना चाहिए और विषयासक्त स्त्रियों को तो विशेष रूप से वश में रखना चाहिए। बचपन में स्त्रियों की रक्षा पिता करता है। यौवन काल में पति तथा वृधावस्था में पुत्र उसकी रक्षा करता है। इस प्रकार स्त्री कभी भी स्वतंत्रता की अधिकारिणी नहीं है। स्त्रियों के चाल ढाल में ज़रा भी विकार आने पर उसका निराकरण करनी चाहिये। क्योंकि बिना परवाह किये स्वतंत्र छोड़ देने पर स्त्रियां दोनों कुलों (पति व पिता) के लिए दुखदायी सिद्ध हो सकती है। सभी वर्णों के पुरुष इसे अपना परम धर्म समझते है। और दुर्बल से दुर्बल पति भी अपनी स्त्री की यत्नपूर्वक रक्षा करते है।
आप सोच रहे होंगे कि आज जबकि भारत में संविधान लागू है, मैं मनुस्मृति की बात क्यों कर रहा हूं? वह इसलिए कि आज भी वास्तविकता की धरातल पर मनुस्मृति लागू है। कुछ उदहारण देखिये। स्त्री को घर में किसी भी हाल में रात के 8 बजे तक आ जाना है, पुरुष पर यह नियम लागू नहीं होता। वह चाहे तो 10 बजे आ सकता है, देर रात भी आ सकता हैं।
लड़कियों के लिए, घर में तर्क होता है कि बाहर रात को सेफ नहीं है। क्या पता क्या अनहोनी हो जाये। कोई यह नहीं सवाल करता कि किसके कारण सेफ नहीं है? कौन सी अनहोनी घट जाएगी? जब वे अनहोनी की बात करते हैं, उनका आशय सामान्य रूप से बलात्कार से होता है। सब की ऐसी ट्रेनिंग होती है कि कोई कुछ नहीं बोलता। यह कि कौन करता है बलात्कार? क्या पुरुष? फिर उसको देर रात बाहर रहने की आज़ादी क्यों?
क्या अपने अभिभावकों और समाज से यह पूछे जाने की ज़रूरत नहीं है कि यह भेदभाव वाला नियम क्यों? अगर सेफ नहीं है, तो अनसेफ का कारण जो है उसे रोकिये ना! बलात्कार लड़के करते हैं, तो लड़कों को रोका जाय, लड़की की आज़ादी आप क्यों बाधित करते हैं? आप महिला पुलिस को पेट्रोलिंग पर लगाईये, जगह-जगह लाइट्स का पुख्ता इन्तज़ाम करिए, सी.से.टी.वी. को रात में सर्विलांस के लिए यूज़ करिए। ऐसी व्यवस्था करिए कि समस्या में आने पर और कॉल करने पर 10 मिनट में सुरक्षा मुहैया की जा सके। यह क्यों नहीं?
आज भी भारत के विश्वविद्यालय हॉस्टलों के नियम अलग-अलग हैं। लडके देर रात कभी भी आ-जा सकते हैं, लड़कियों के लिए 8 या 10 बजे रात तक आना अनिवार्य है। लड़कियों की हॉस्टल टाइमिंग लड़कों से अलग क्यों? भारतीय संविधान यदि दोनों को बराबर अधिकार देता है और भेदभाव की मनाही करता है, तो ये कौन लोग हैं जो पुराना विधान लड़कियों पर थोप रहे हैं?
यह बात इसलिए भी कह रहा हूं कि BHU में अध्ययन कर रहे शोधार्थियों/ विद्यार्थियों की तरफ से भी पिछले साल सुरक्षा और आज़ादी पर कई प्रतिबन्ध तथा विश्वविद्यालय प्रशासन की लापरवाही की बात सामने आई थी। लड़कियों ने अपनी मांगों को लेकर व्यापक आन्दोलन भी चलाया था।
अभी पंजाब यूनिवर्सिटी में भी लड़कियों के हॉस्टल को सप्ताह के सातों दिन, 24 घंटे खोलने और प्रवेश के अधिकार को लेकर लगभग 400 शोधार्थी/ विद्यार्थी आन्दोलन शुरू कर चुके हैं। इसे छात्र नेता आकांक्षा आज़ाद ने अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर भी साझा किया है।
सवाल आज भी वही है। क्या स्त्री-पुरुष को बराबर के अधिकार हैं? अगर हैं, तो ये भेदभाव क्यों? बलात्कार से सुरक्षा, स्त्री की इज्ज़त और घर की मर्यादा को जो बाधित कर रहा है, उसपर अंकुश लगाईये ना! और यह मर्यादा और इज्ज़त की ज़िम्मेदारी सिर्फ स्त्री पर मत थोपिए। क्या आप स्त्री का विक्टिमाइज़ेशन करना चाहते हैं, और मूल समस्याओं जैसे- पितृसत्ता, यौन-शोषण, सुरक्षा, लैंगिक-भेदभाव आदि से मुंह फेर लेना चाहते हैं?
तस्वीर: आकांक्षा आज़ाद की फेसबुक वाल से।