धारावाहिक ‘रामायण’ में एक अहम मोड़ पर सुग्रीव और राजा बली में हो रहे युद्ध के दौरान जब श्री राम पीछे किसी वृक्ष की आड़ में छिपकर बली को तीर मारते हैं, तब उनकी मृत्यु हो जाती है। बली ‘सुग्रीव’ से अधिक ताकतवर होने के साथ-साथ इन दोनों भाईयों के युद्ध में सुग्रीव पर हावी रहा लेकिन श्री राम के एक तीर ने ना सिर्फ बली को मौत के घाट उतार दिया, बल्कि सुग्रीव को बली की जगह राजा भी बना दिया।
सोचने वाली बात यह है कि धारावाहिक ‘रामायण’ के इस भाग में श्री राम को क्यों एक वृक्ष के पीछे से तीर चलाना पड़ा था। इस तरह की घटना हर मज़हब में शामिल है जहां धार्मिक मर्यादा में उच्च एक व्यक्ति किसी कारणवश धार्मिक मर्यादा से हटकर किसी प्रसंग को अंजाम देता है। आस्था की आड़ में धर्म और मज़हब की रक्षा के लिए इस तरह उठाए गए कदमों पर हामी भर दी जाती है।
जिन दिनों धारावाहिक ‘रामायण’ का प्रसारण दूरदर्शन के माध्यम से टेलीविज़न पर किया जा रहा था, उन्हीं दिनों राम जन्म भूमि का मुद्दा भी काफी गर्म था। धर्म की रक्षा हेतु आस्था को इस तरह पिरोया गया जहां किसी भी तरह के सवाल की कोई गुंजाइश नहीं थी।
यह सवाल भी करने वाला कोई नहीं था कि राम जन्मभूमि का प्रमाण क्या है? किस तरह यह साबित किया जा सकता है कि श्री राम का जन्म यहीं इसी जगह पर हुआ है। लोग बस आस्था के नाम पर कानून को पीछे धकेल रहे थे और चौराहों पर तमाम हिंदू नागरिक धार्मिक लिहाज से बहुत उग्र हो रहे थे।
रावण के कत्ल के बाद लोगों में ‘रामायण’ धारावाहिक के प्रति वह उल्लास और रोचकता नहीं रही। इसके पीछे की वजह शायद तीर-कमान, युद्ध और हिंसा हो सकती है जो हमारे लिए ज़्यादा महत्वपूर्ण थी। इसे हम धार्मिक रूप से अपनी स्वीकृति भी दे रहे थे लेकिन धारावाहिक ‘रामायण’ के बाद श्री राम के संदर्भ में ही एक और धारावाहिक ‘लव-कुश’ का प्रसारण दूरदर्शन पर शुरू हो गया।
जहां तक मुझे याद है ‘लव-कुश’ धारावाहिक रविवार सुबह की जगह सोमवार रात के रात 9 से 10 बजे के बीच प्रसारित होता था। ऐसा क्यों हो रहा था, इससे किसी को कोई मतलब नहीं था। बस ‘रामायण’ का दूसरा भाग टेलीविज़न पर आ रहा था और आस्था के रूप में लोग इससे जुड़ रहे थे।
जहां धारावाहिक ‘रामायण’ में श्री राम एक पीड़ित के रूप में नायक बनकर उभरे हैं, वहीं धारावाहिक ‘लव-कुश’ में उनकी छवि सत्ता पर मौजूद राजा के तौर पर दिखाई गई है जिनकी मर्ज़ी से सबकुछ हो रहा है। इसी के फलस्वरूप वनवास से लौटने के बाद एक धोबी के कहने पर अयोध्या के राजा राम ने अपनी गर्भवती पत्नी सीता को वन में छुड़वा दिया। सीता वाल्मीकि के आश्रम में रहीं। यहां उन्होंने लव-कुश को जन्म दिया। समय आगे बढ़ता है और लव-कुश युद्ध नीति में निपुण हो जाते हैं। राजा राम द्वारा एक घोड़ा छोड़ा जाता है जिसका मतलब वह जिस-जिस राज्य से होकर गुजरेगा, वहां तक राजा राम के राज्य को स्वीकृति मिलती जाएगी।
अगर, धारावाहिक ‘लव-कुश’ के एक दृष्य में शिकायतकर्ता को धोबी कहे जाने पर विचार किया जाए, तब हम यही पाएंगे कि एक तरफ आस्था के नाम पर राम के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम जैसे शब्द का प्रयोग किया जाता है और दूसरी तरफ काम के हिसाब से किसी को धोबी कहा जाता है। ये सब सोचने पर कई चीज़ें हमारे ज़हन में आती हैं। संतोषजनक जवाब तो कोई इतिहासकार ही दे सकता है, जिसकी खोज पर किसी को संदेह ना रहे।
इसी धारावाहिक ‘लव-कुश’ में आगे चलकर एक आदिवासी द्वारा जोड़े ‘पक्षी’ का कत्ल किया जाता है। इसके चश्मदीद बनते है ऋषि वाल्मीकि, जो क्रोधित होकर उस आदिवासी को अभिशाप दे देते हैं। वाल्मीकि का उस आदिवासी को अभिशाप देना मेरी नज़र में जाएज़ नहीं है। ऐसा हो सकता है कि उस वक्त आदिवासी समुदाय भोजन के लिए मांस पर ही निर्भर रहते थे। ऐसा कहा जाता है कि रामायण भी वाल्मीकि ने ही लिखी है। इसका मतलब वो ज्ञानी तो होंगे ही। ऐसे में एक धोबी और आदिवासी का किरदार इस रूप में दिखाया जाना गलत है।
धारावाहिक ‘लव-कुश’ में सीता हरण के बाद राजा राम सीता जी से अलग रहे थे फिर भी उनके चरित्र पर कोई सवाल नहीं उठा। हमें यह समझना पड़ेगा कि हिन्दू, मुस्लिम, सिख या ईसाई किसी भी मज़हब में समाज सिर्फ और सिर्फ महिला पर ही शक करता है। एक तलाकशुदा महिला आज भी सवालों के निशाने पर रहती है और समाज अकसर उसे घृणा के रूप में देखता है। शायद यही कारण था कि ‘लव-कुश’ धारावाहिक के अंत में सीता माता खुद को ज़मीन के अंदर दफ्न कर लेती हैं और कोई सवाल भी नहीं पूछता।
आस्था के नाम पर श्री राम के किसी भी फैसले को हमारा समाज बस स्वीकृति दे देता है। कोई भी सवाल पूछने की ज़हमत नहीं उठाता।
यह सच है कि राज्य और सत्ता बढ़ाना एक कारण था लेकिन अगर कोई इसे रोक लेता है, तब विकल्प के तौर पर अंजाम क्या युद्ध होगा? अगर युद्ध के दौरान हिंसा में लोग मारे जाएंगे, तो क्या उसके लिए राम दोषी नहीं होंगें? शायद यही वजह थी कि इसी समयकाल में जब धारावाहिक ‘लव-कुश’ में राजा राम सत्ता और राज्य का विस्तार कर रहे हैं, तब भाजपा द्वारा श्री राम जन्मभूमि का मुद्दा बहुत उग्रता से उठाया जा रहा है।
इस मुद्दे को हर तरह के संत से लेकर हिन्दू संगठन और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भी समर्थन मिल रहा है। भाजपा जब लालकृष्ण आडवाणी की अगुवाई में सोमनाथ से रथ यात्रा निकाल रही थी, तब मदन लाल खुराना, प्रमोद महाजन और नरेंद्र मोदी जैसे नेता भी किसी ना किसी रूप में उनका साथ दे रहे थे। रथ जहां से गुजर था, वहां उग्र रूप से भाषण दिए जा रहे थे। राम जन्मभूमि और श्री राम के नारे लग रहे थे।
निश्चित रूप से इस रथ यात्रा में भाजपा का सत्ता अधिग्रहण छिपा हुआ था। जब यह रथ बिहार होकर गुज़रने लगा तब बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने आडवाणी को गिरफ्तार करके भाजपा का रथ रोक दिया। इसके पश्चात हिंसा हुई और राम का नाम देकर इसे जाएज़ ठहराया गया। राम के नाम पर किसी को कोई सवाल करने की इजाज़त नहीं थी।
राम जन्मभूमि का मुद्दा कोर्ट में विचाराधीन था। क्या हम कानून के फैसले का इंतज़ार नहीं कर सकते थे? अगर करते तो भाजपा का राज्याभिषेक कैसे होता। मेरा यह व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि भाजपा के साथ अगर हम राम जन्मभूमि, धारावाहिक ‘रामायण’ और धारावाहिक ‘लव-कुश’ को जोड़ने की कोशिश करें, तब बहुत समानताएं पाएंगे।
धारावाहिक ‘रामायण’ और ‘लव-कुश’ में जहां हिंसा, राम के नाम को स्वीकृति और आस्था के नाम पर कुछ भी दिखाया गया, वही भाजपा ने सत्ता हासिल करने के लिए हकिकत में यह सब कर दिया। इन दोनों धारावाहिक के प्रसारित होने के समय काल में राम जन्मभूमि का मुद्दा जहां-जहां हिंदू समाज को स्वीकार हो रहा था, वही भाजपा को एक आम हिंदू नागरिक सत्ता के रूप में अपनी स्वीकृति दे रहा था।