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एक ज़बरदस्त विजुअल एक्सपीरियंस है रजनीकांत और अक्षय की फिल्म 2.0

रजनीकांत -अक्षय कुमार की बहुप्रतीक्षित फिल्म 2.0 रिलीज़ हो चुकी है। फिल्म को लेकर दर्शकों में बेहद उत्साह था। आज के उजाले के बाद यह सच साबित दिख रहा है। अक्षय कुमार की साउथ के फिल्मों में इंट्री छाप छोड़ती है। अक्षय का निगेटिव रोल ‘बर्डमैन’ काफी इम्प्रेसिव है। स्पेशल इफेक्ट, रजनीकांत, अक्षय एवं निर्देशक शंकर फिल्म की धुरियां हैं। कहानी एवं किरदारों की परिकल्पना ज़बरदस्त है। 3D में रिलीज़ को दर्शकों ने हाथों-हाथ लिया है। फिल्म की टीम ने बहुत मेहनत की है, पैसा भी खूब खर्च हुआ है।

फिल्म 2.0 के एक दृश्य में अक्षय कुमार

सिनेमाघरों में देखने का एक्सपीरियंस अद्भुत व अद्वितीय है। इस किस्म की फिल्में हमें सिनेमाघरों में बुलाती हैं। कहना होगा कि ऐसी फिल्में भारतीय सिनेमा का सर ऊंचा करती हैं। कांसेप्ट एवं टेक्नोलॉजी के मामले में फिल्म कमाल है। रिलीज़ से पहले ही एडवांस बुकिंग में फिल्म ने करोड़ों का बिज़नेस कर रखा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक फिल्म ने सभी राईट्स मिलाकर तीन सौ करोड़ से अधिक पा लिया है। ओपनिंग भी ज़बरदस्त मिली है।

सेलफोन रेडिएशन प्रभावों का अनोखा चित्रण फिल्म को अलग ही लीग में खड़ा कर जाता है। ध्वनि प्रभावों का इस्तेमाल बहुत ही अद्भुत है। पहला हाफ कमाल का है। फिल्म के आखिरी तीस मिनट गहरी छाप छोड़ते हैं। पूरी फिल्म एंगेजिंग है। एक समय के लिए तो हॉलीवुड फिल्मों का अनुभव भी कम सा महसूस होता है।

फिल्म लुप्तप्राय पक्षियों का महत्वपूर्ण मुद्दा उठाती है। पक्षियों की दुनिया को संरक्षित करने की मांग करती है। मोबाईल टेक्नोलॉजी व रेडिएशन से पक्षियों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। अनेक प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं। बाकी किसी तरह ज़िंदा हैं। पक्षियों के हित में ‘बर्डमैन’ अकेला खड़ा है। कहानी के अंत में लेकिन वो भी हार जाता है। नहीं रहता। इंसानों के नुमाइंदे चिट्टी की जीत के लिए ऐसा किया गया होगा। इंसानों के नज़रिए से खतरा बन जाने वाली हर शय का अंत ज़रूरी है।

पक्षी की आपबीती जानने के बाद भी उनके लिए कुछ नहीं हुआ। आखिरी के कुछ लम्हे ही सेविंग ग्रेस हैं। पक्षियों के हित में कुछ करने की बजाय मेन हीरो उनके नेतृत्व के विरुद्ध है। पक्षियों की सुध लेने की कोशिश नहीं हुई। हां बर्डमैन के रूप में उनके प्रतिकार को मंच ज़रूर मिला। यही परिकल्पना फिल्म को ग्रेट बना देती है। शंकर का ट्रीटमेंट दर्शकों से कभी न टूटने वाला रिश्ता बना लेता है। दूसरे हाफ का पहला पार्ट देखकर भावना का उफान बनता है।

फिल्म में रोबोट के किरदार में रजनीकांत

बर्डमैन को हम विलेन नहीं मानते, वो असल हीरो सा लगता है। उसके दुःख हमारे दुख से लगते हैं। यही कनेक्ट 2.0 को सफल कर जाता है। पक्षियों से भावनात्मक जुड़ाव के कारण हम तय नहीं कर पाते आखिर कहानी का खलनायक कौन है। फिल्म अंत तक बांधे रखती है, रोचक है, एक इंगेजिंग विजुअल एक्सपीरियंस है 2.0।

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