मैं जानू हरि दूर है हरि हृदय भरपूर
मानुस ढुढंहै बाहिरा नियरै होकर दूर।
मोमे तोमे सरब मे जहं देखु तहं राम
राम बिना छिन ऐक ही, सरै न ऐको काम।
प्रभु राम पर कबीर जी कहते हैं, “लोग ईश्वर को बहुत दूर मानते हैं पर परमात्मा हृदय में पूर्णतः विराजमान है। मनुष्य उसे बाहर खोजता है परंतु वह निकट होकर भी दूर लगता है। मुझमें-तुममें सभी लोगों में जहां देखता हूं, वहीं राम है। राम के बिना एक क्षण भी प्रतीत नहीं होता है। राम के बिना कोई कार्य सफल नहीं होता है।”
मौजूदा दौर की राजनीति में कबीर के ये दोहे फिट नहीं बैठते, क्योंकि यहां तो लंबे वक्त से राम को लेकर सियासत का तानाबाना बुना जा रहा है। परमात्मा के निवास और उनके रहने की जगह को बनाने की लिए राजनैतिक माहौल गर्म है। भारत देश की यह सच्चाई रही है कि जिन मुद्दों से वोट नहीं मिलते उन मुद्दों पर राजनेता बात तक करना पसंद नहीं करते और जिन मुद्दों से सत्ता पर काबिज़ होने का सफर आसान लगने लगता है, उन्हें चुनाव से पहले कोई छोड़ना नहीं चाहता है।
गौरतलब है कि 29 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले की सुनवाई जनवरी 2019 के लिए टाल दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मसले पर अगली सुनवाई जनवरी 2019 में एक उचित पीठ के समक्ष होगी।
यहां तक कि राज्यसभा में बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा ने राम मंदिर नर्माण के लिए प्राइवेट मेंबर बिल लाने का ऐलान कर दिया है। उन्होंने इसके लिए विपक्षी पार्टियों का सपोर्ट भी मांगा है। वहीं उत्तर प्रदेश में ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जिससे लोगों को लगे कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिवाली पर अयोध्या वासियों के लिए कोई बड़ी खुशखबरी लेकर आ रहे हैं।
2014 की लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के घोषणा पत्र में कहा गया था, ‘भाजपा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए संविधान के भीतर सभी संभावनाएं तलाशने के अपने रुख को दोहराती है।’ यहां तक कि भाजपा के उस वक्त के दिग्गज नेता और घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने कहा था, ‘पार्टी ने हिंदुत्व के बारे में कुछ नहीं कहा है। हिंदुत्व हमारे लिए चुनावी मुद्दा नहीं है।’
2014 में जब भाजपा राम मंदिर के नाम पर वोट मांग रही थी तब उन्हें पता था कि इस मसले पर तो फैसला सुप्रीम कोर्ट को ही करना है। आज भी यही तय है कि सुप्रीम कोर्ट ही फैसला सुनाएगी लेकिन फिर भी प्राइवेट मेंबर बिल लाने जैसी बातें की जा रही हैं। ये सिर्फ लोगों को मुर्ख बनाने की नीति है, ताकि इनसे सवाल ना पूछा जाए कि आपने चार सालों तक क्या किया।
यहां पर हमें यह समझने की ज़रूरत है कि राम मंदिर मसले पर राजनेताओं को सियासत करने की इजाज़त दी किसने? जवाब बहुत सरल है, देश की जनता ने इन्हें ये इजाज़त दी है। फिर तो नेताओं द्वारा मुर्ख बनाए जाने पर इन्हें कोई शिकायत भी नहीं होनी चाहिए।
राम मंदिर कब बनेगा या उस ज़मीन पर क्या मज़्जिद और मंदिर दोनों बनने के लिए एक रास्ता निकला जा सकता है, ये एक कानूनी मसला है, जिसका निर्णय सुप्रीम कोर्ट को करना है। यहां पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की बातों को भी समझने की ज़रूरत है, जहां वे अपने एक अध्यापक का उदहारण देते हुए कहते थे कि उनके अध्यापक के पास एक कुरान और एक श्रीमद्भगवद्गीता होती थी। कभी वे भगवद्गीता देखकर पढ़ाते तो कभी कुरान देखकर। इसका निचोड़ यह है कि दोनों किताबों में एक ही बात लिखी है कि परमात्मा सभी के लिए समान हैं.
बाहिर भीतर राम है नैनन का अभिराम
जित देखुं तित राम है, राम बिना नहि ठाम।
इन पंक्तियों के ज़रिए कबीर कहते हैं, “प्रभु बाहर-भीतर सर्वत्र विद्यमान है। यही आंखों का सुख है। जहां भी दृष्टि जाती है, वहीं राम दिखाई देते है। राम से रिक्त कोई स्थान नहीं है। प्रभु सर्वव्यापक हैं।
बस मेरा इतना ही कहना है कि सियासत अब नहीं होनी चाहिए, क्योंकि तुममें भी राम हैं और मुझमें भी राम है, तो एक कदम मेैं बढ़ाऊं और एक कदम तुम बढ़ाओ। इस तरह इतने करीब आ जाएं कि इस विवाद का सरल हल निकल पाए।