इन दिनों चुनाव की वजह से देशभर में सियासी तापमान उबाल पर है। कॉंग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हैं। तभी तो छत्तीसगढ़ के सियासी अखाड़े में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद आज उतर गए। बस्तर में जहां उन्होंने एक रैली की, वहीं कॉंग्रेस अघ्यक्ष राहुल गांधी भी आज छत्तीसगढ़ में थे।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों के लिए दो चरण में चुनाव होंगे। 12 नवंबर को पहले चरण का मतदान होगा जबकि 20 नवंबर को दूसरे चरण के लिए वोट डाला जाएगा। पहले चरण के लिए चुनाव प्रचार 10 नवंबर को समाप्त होगा।
जब से चुनावी तारीखों का ऐलान हुआ है तब से तमाम लोगों के ज़हन में कई तरह के सवाल उत्पन्न होने शुरू हो गए हैं। वोटरों के पसंदीदा प्रत्याशी और वर्त्तमान सरकार के कार्यों से संतुष्टि को लेकर जगह-जगह पर समीक्षा हो रही है। कुछ मतदाताओं की पैनी नज़र इसपर भी है कि कौन सा प्रत्याशी उन्हें कपड़े, मिठाइयां, शराब और पैसे देगा। क्या यह मानकर चला जाए कि लोग इसलिए भी नेताओं द्वारा दी गई चीज़ों को ले लेते हैं, क्योंकि उन्हें तो पता है विकास तो ये करेंगे नहीं।
इस विधानसभा चुनाव में भी हर बार की तरह पार्टी के बागी कार्यकर्ता अपने कार्यों का डंका बजाते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। सूबे के फॉर्मर चीफ मिनिस्टर अजीत जोगी ने नई पार्टी बनाते हुए बहुजन समाज पार्टी और लेफ्ट के साथ गठबंधन किया है
मौजूदा सरकार ने जहां बोनस तिहार के नाम पर जनता को छलने का काम किया, वहीं नसबंदी जैसे कांड से पीड़ितों को न्याय नहीं मिली। इस बार सरकार ने खासकर महिलाओं को मोबाइल फोन बांटने का काम किया जिसकी मिली जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली। मेरी समझ में यह नहीं आता कि चुनाव से पहले मतदाताओं को अपने पाले में करने के लिए मोबाइल फोन क्यों बांटा गया?
सवाल यह भी है कि पानी, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा, मंहगाई, परिवहन, संस्कृति, कला इत्यादि जैसी चीज़ों पर क्या वाकई में सरकार ने काम किया है? इसका जवाब तो उस वक्त मिलेगा जब मतदाताओं की वोटिंग फैसलों में तब्दील हो जाएगी।
छत्तीसगढ़ में प्रशासन एवं निगम की लचर व्यवस्था देखने को मिलती है। आज भी बेहतर तालीम के लिए छात्र-छात्राओं को दूसरे राज्यो में पलायन करना पड़ता है। यही हाल स्वास्थ्य का भी है, जहां बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं होने के कारण लोगों को छत्तीसगढ़ से बाहर जाना पड़ता है। जनता जब ऐसी मूल-समस्याओं से जूझ रही हो, तब मतदाता की हैसियत से इन चीज़ों पर विचार करना बेहद ज़रूरी है।
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों पर सरकार कितना नियंत्रण रख पाई है यह भी एक अहम मुद्दा है, क्योंकि यहां दो-तीन महीने के अंतराल में नक्सल वारदात होते रहते हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में देश की बड़ी आदिवासी जनजातियां रहती हैं और उनको एक साजिश के तहत दबाया-कुचला जाता है। पत्थलगड़ी जैसी घटनाएं महत्वपूर्ण हैं और देखा जाए तो इन्हीं क्षेत्रों में छत्तीसगढ़ के बड़े-बड़े खनिज पाए जाते हैं। उद्योग बचाने के लिए अकसर आदिवासियों को खदेड़ा जाता है और मुआवज़ों का तो पता ही नहीं चलता।
यहां सेना और पुलिस की गोलीबारी में बेचारे आदिवासी मारे जाते हैं। यहां कोई भी मतदाता अपने फायदे के लिए ही किसी प्रत्याशी को चुनता है लेकिन उन्हें सभी के हित को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लेना चाहिए। किसी भी प्रत्याशी को चुनने से पहले ज़रूरी है कि मतदाता यहां के ज्वलंत मुद्दों पर एक बार विचार ज़रूर करें।