16 सितंबर से जदयू के नेता बने प्रशांत किशोर देश के कुछ चुनिंदा इवेंट मैनेजर्स में से एक रहे हैं, जिन्होंने राजनीतिक दलों के लिए पर्दे के पीछे से काम करने की शुरुआत की। पहले यह काम पत्रकार जैसे लोग ज़्यादा किया करते थे। लोकतांत्रिक चुनाव को इवेंट में बदलने में प्रशांत की अहम भूमिका है।
यह एक पैकेज डील की तरह का काम होता है, जिसमें चुनाव आयोग द्वारा नोटिफिकेशन से लेकर वोटिंग डे के बूथ मैनेजमेंट तक पार्टी का सारा काम उस मैनेजर को अलग से देखना होता है।
दिलचस्प यह है कि करोड़ों रुपये में होने वाले इस डील में देने और लेने वाले में से कोई भी इस बात को ऑफिशियली कबूल नहीं करता है। प्रशांत ने 2014 में बीजेपी के लिए, 2015 में जदयू के लिए और 2017 में पंजाब कॉंग्रेस के लिए सफलतापूर्वक चुनाव मैनेजर का काम किया है। बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी कभी प्रशांत को ‘भाड़े का सैनिक’ उपनाम भी दे चुके हैं।
खास बात यह है कि प्रशांत किशोर अब उस पर्दे के पीछे से निकलकर जदयू की बैलगाड़ी पर सवार हो चुके हैं। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार की तरह प्रशांत भी इंजीनियरिंग के छात्र रह चुके हैं। इसलिए दोनों के विचार और व्यवहार में एक तरह का साम्य है। प्रशांत से पहले जदयू में ‘हीरा’ अगर नीतीश थे, तो ‘मोती’ की भूमिका में राज्यसभा सांसद आरसीपी सिंह को माना जाता था।
अब प्रशांत के जदयू में आते ही वह सीधे ‘मोती’ की भूमिका में आ गये हैं। प्रशांत की यूएसपी (खासियत) है कि वह देश के लगभग सभी बड़े दलों के लूप होल्स/सोचने के तरीके/टीम मैनेजर से अच्छी तरह वाकिफ हैं। वह इतनी अच्छी तरह से वाकिफ हैं कि वर्षों से पार्टी की बीट देख रहे पत्रकार भी उतने वाकिफ नहीं हैं। ऐसे में जदयू को उम्मीद है कि वह प्रशांत के होने से मज़बूत होगी।
जदयू को पहली मज़बूती का संकेत इस बात से मिला कि भाजपा और जदयू में 50-50 फॉर्मूला पर बात बन गयी। जबकि बिहार भाजपा के कई नेताओं को नीतीश कुमार एक आंख से भी नहीं सुहाते हैं। सूत्र बताते हैं कि प्रशांत किशोर की मुख्य ज़िम्मेदारी 2020 में जदयू को बिहार की नंबर वन पार्टी बनाना है, जो कि फिलहाल राजद है। हालांकि बिहार का सोशल डायनामिक्स उनको कैसे अपनाता है, यह देखना होगा?
प्रशांत ने इसकी तैयारी अभी से शुरू कर दी है। वह नये नेता बनाने की क्लास लगा रहे हैं। साथ ही इसके ज़रिये वह परिवारवाद पर भी पीछे से हमला कर रहे हैं। उनकी नज़र में यह तेजस्वी के लिए एक अच्छा हथियार साबित हो सकता है लेकिन अब तक लालू प्रसाद का बेटा होना तेजस्वी की सबसे बड़ी मज़बूती है।
आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति में काफी नाटकीयता देखने को मिलेगी। इसमें प्रशांत ‘किशोर’ अपने ‘वयस्क’ होने का प्रमाण देते नज़र आ सकते हैं।
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फोटो सोर्स- ट्विटर