एचआईवी एड्स की बात आते ही समाज में लोगों की भौंहें तन जाती हैं। तमाम तरह के प्रश्न मन में उठने लगते हैं कि एड्स से ग्रसित लोगों के साथ ज़्यादा मिलना-जुलना नहीं चाहिए, उनके साथ भोजन नहीं करना चाहिए। इन्हीं भ्रांतियों को तोड़ने और एचआईवी एड्स से ग्रसित बच्चों का जीवन संवारने का काम कर रही हैं केरल से झारखंड (हज़ारीबाग) आईं सिस्टर ब्रिटो।
हज़ारीबाग के बनाहप्पा गाँव में स्थित स्नेहदीप होली क्रॉस आवासीय विद्यालय की फाउंडर, सिस्टर ब्रिटो ने Youth Ki Awaaz से बात करते हुए बताया कि कैसे उन्होंने झारखंड राज्य में आकर एचआईवी एड्स के लिए काम करना शुरू किया। वह कहती हैं, “जब मैं झारखंड आई थी तब ग्रामीण इलाकों में एड्स से ग्रसित बच्चों की हालत देखकर मुझसे रहा नहीं जाता था। बच्चे बिना दवाई लिए ही खेलते रहते थे और उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होता था।”
मैं साल 2005 से एड्स पेशेन्ट्स की देखभाल कर रही हूं। तरवा गाँव में एड्स पेशेन्ट्स के लिए एक अस्पताल खोला था। एक दिन मुझे लगा कि आगे भी कुछ करना चाहिए और तब मैंने हज़ारीबाग के तत्कालीन डीसी विनय चौबे से मिलकर अनाथ स्कूल खोलने की बात कही। साल 2009 में उनके सहयोग से अनाथ स्कूल की शुरुआत हुई जिसका संचालन एक सरकारी बिल्डिंग में किया जाता था। वहां वे बच्चे भी पढ़ते थे जिन्हें एड्स नहीं था और इस वजह से कई दफा भेदभाव वाली बात सामने आती थी। मुझे लगा कि इन बच्चों के लिए अलग से एक स्कूल खोलने की ज़रूरत है।
साल 2014 में रामकृष्ण मिशन के स्वामी तपानंद ने मुझे स्कूल की ज़मीन खरीदने के लिए पैसे दिए और फिर स्नेहदीप होली क्रॉस आवासीय विद्यालय की नींव रखी गई। यहां अभी 130 एचआईवी एड्स से ग्रसित बच्चे पढ़ते हैं। विद्यायल में 10 टीचर्स हैं। डेज़ी पुष्पा बच्चों की काउंसिलर हैं। डॉक्टर अनीमा कुंडू साल 2005 से अपनी सेवाएं दे रहीं है जबकि हाल ही में आईं डॉक्टर लाइज़ा भी शिद्दत से इस काम में जुटी हैं। जब हमनें स्कूल की शुरुआत की थी उस वक्त यहां 70 बच्चे थे। मुझे बहुत अच्छा लगता है जब यहां के बच्चे मुझे माँ बुलाते हैं।
बच्चों से बातचीत
समाज में लोग हमें लेकर तरह-तरह की बातें करते हैं। कोई कहता है कि अरे-अरे इसके साथ मत खेलो अपनी बीमारी दे देगा तो कोई हमारे साथ इस डर से खाना नहीं खाता कि उन्हें भी एचआईवी एड्स हो जाएगा। मुझे याद है साल 2004 में माँ-पापा के बीच किसी बात को लेकर झगड़ा हुआ था और उसी दौरान माँ ने ज़हर खा लिया। पापा एचआईवी पॉजिटिव थे, साल 2015 में वह भी हमें छोड़कर चले गए।
हम पांच भाई-बहन थे जिसमें से मुझे लेकर अब केवल तीन ही बचे हैं। साल 2007 में एचआईवी इन्फेक्शन के कारण ही मेरी एक बहन और एक भाई की मौत हो गई। एक और बहन की शादी हो गई है। भैया-भाभी से उतने अच्छे रिश्ते नहीं हैं।
सिस्टर ब्रिटो बिल्कुल एक माँ की तरह मेरा ख्याल रखती हैं। मुझे जब भी जिस चीज़ की ज़रूरत होती है, सिस्टर वह चीज़ लाकर मुझे देती है। उक्त बातें स्नेहदीप होली क्रॉस विद्यालय के छठी कक्षा में पढ़ने वाले धीरज (बदला हुआ नाम) ने बताई।
सातवीं कक्षा के उमेश (बदला हुआ नाम) बताते हैं कि हम तीन भाई और एक बहन थे लेकिन एचआईवी एड्स की वजह से दो भाईयों की पहले ही मौत हो चुकी है। एक भाई जब 6 महीने का था तब ही उसकी मौत हो गई थी और दूसरे की 14 साल की उम्र में करंट लगने की वजह से मौत हुई।
मेरे पापा और माँ दोनों को एचआईवी एड्स था। मेरे पापा मुंबई में काम करते थे और जब घर आए तब उन्हीं से मेरी माँ को भी इन्फेक्शन हो गया। पापा दवा नहीं खाते थे और जांच द्वारा बीमारी के विषय में पता चलने के 6 महीने बाद ही पापा की मौत हो गई। माँ-पापा की मौत साल 2002 में हुई थी।
आठवीं कक्षा की पूजा कुमारी (बदला हुआ नाम) कहती हैं, “सिस्टर ब्रिटो से हमें माँ की तरह प्यार मिलता है। यहां हमें किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं है। हम दो बहने हैं जिसमें से सिर्फ मैं ही एचआईवी पॉजिटीव हूं। मेरी दीदी की शादी हो गई है।”
पापा मुंबई में काम करते थे और अचानक जब घर आए तब जांच कराने पर पता चला कि उन्हें एचआईवी एड्स है। जून 2017 में उनकी मौत हो गई लेकिन पापा के माध्यम से वह बीमारी माँ को भी हो गई। मेरे चाचा-चाची मेरे साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं। घर पर सिर्फ मेरी माँ अकेली रहती है। समाज के लोगों का भी सोच हमारे लिए कुछ ठीक नहीं है। वे मुझसे बात तक नहीं करना चाहते हैं।
वहकेशनल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट हज़ारीबाग से टीचर्स ट्रेनिंग कर रहीं प्रियंका (बदला हुआ नाम) इन दिनों सिस्टर ब्रिटो के स्कूल में क्लास लेने आ रही हैं। वह बताती हैं, “मुझे एचआईवी इन्फेक्शन है लेकिन मैं दवाईयां ले रही हूं जिससे मुझे हौसला मिलता है। परिवार में अक्सर मेरे बारे में कहा जाता है कि यह लड़की ना तो कुछ कर सकती है और ना ही इसकी शादी हो सकती है। हम तीन भाई बहनें हैं जिनमें मैं सबसे छोटी हूं। बड़ी दीदी की शादी हो चुकी है। भाई हैदराबाद से आईटीआई कर रहा है। मेरे माँ-पापा को भी एड्स है, जो चास में रहते हैं।”
मुझे 2012 में जानकारी मिली कि मुझे एचआईवी इन्फेक्शन है। उससे पहले इस विषय में मुझे जानकारी नहीं थी। मुझे बाद में बताया गया कि साल 2007 में हम तीनों को इन्फेक्शन हो गया था। पापा मुंबई में काम करते थे और वहां से आने के बाद ही पापा को एचआईवी एड्स हो गया था।
सिस्टर ब्रिटो बताती हैं कि बच्चों को यहां किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं है लेकिन उन्हें अक्सर माँ-पापा की याद आती है। जब मैं फ्री होती हूं तब ये बच्चे और बच्चियां मुझे बताते हैं कि किस प्रकार से वे अपने माँ-पापा को मिस करते हैं। यहां आकर वे काफी मोटिवेट हुए हैं। उन्हें जीने की चाह मिली है जिसके ज़रिए वे अपने हर सपनों को हकीकत में बदलना चाहते हैं। मुझे आशा है कि एक दिन वे ऐसा करने में सफल हो जाएंगे।
आज के ज़माने में जहां देश और दुनिया में एचआईवी एड्स से ग्रसित लोगों को समाज में बेगानों की निगाह से देखा जाता है वही इस दिशा में सिस्टर ब्रिटो की पहल बेहद सराहनीय है। सिस्टर ब्रिटो ने न सिर्फ अपने विद्यालय में पढ़ने वाले तमाम विद्यार्थियों के हौसले को बढ़ाने का काम किया है बल्कि समाज सेवा के क्षेत्र में भी काबिल-ए-तारीफ पहल की है जिसे आने वाले वक्त में मिसाल के तौर पर देखा जाएगा। एड्स रोग से ग्रसित लोगों का मज़ाक उड़ाने वालों को ज़रूरत है एक बार सिस्टर ब्रिटो की कार्यशैली पर ज़रूर नज़र डालें ताकि उनकी सोच में भी तब्दीली आ सके।