शिखा मंडी, एक संताल युवती, भारत की पहली आदिवासी रेडियो जॉकी है। रेडियो मिलन 90.4 FM पर संताली में अपना प्रोग्राम प्रस्तुत करती हैं। शिखा ने अपने करियर की शुरुआत वर्ष 2017 में की थी। वह अपने इस प्रोफेशन से बहुत खुश हैं। 25 वर्ष की संताल युवा रेडियो जॉकी की प्रस्तुति अति सराहनीय है। वह अपने काम को बड़े शिद्दत से और बड़ी खूबसूरत आवाज़ में प्रस्तुत करती हैं। शिखा झाड़ग्राम पश्चिम बंगाल से संबंध रखती हैं। झाड़ग्राम भारत के पश्चिम बंगाल के पश्चिम मेदिनीपुर ज़िले में स्थित है। यह क्षेत्र वन क्षेत्रों से घिरा हुआ है और संताल जनजाति बहुल क्षेत्र है। यह क्षेत्र नक्सलवाद से भी प्रभावित है।
आज मैं शिखा मंडी जैसी नए आदिवासी युवाओं की बात क्यों कर रहा हूं? क्योंकि आज जिस तरह आदिवासी समाज के प्रति अन्य समाज के लोगों की दोयम दर्जे की मानसिकता है उससे शिखा भी प्रभावित हुई और उसने भी महसूस किया कि कहीं ना कहीं एक आदिवासी होने के कारण लोग उन्हें दरकिनार करने की कोशिश करते हैं या फिर उनसे दूरी बनाये रखना चाहते हैं।
एक इंटरव्यू के दौरान एक मीडिया वाले ने शिखा से रेडियो जॉकी के बारे में सवाल पूछने लगे तो शिखा ने बेहिचक संताली में जवाब दिया। जब इंटरव्यू लेने वाले ने शिखा से पूछा कि क्या आप हिन्दी, इंग्लिश या बंगला में बोल सकती हैं, तो शिखा ने जवाब दिया
“मैं हिन्दी या बंगला में बात तो कर सकती हूं लेकिन जब हम लोग अपनी मातृभाषा (संताली) में बात करते हैं तो लोगों को समझ में नहीं आता।आप बंगला या हिन्दी में बात कर सकते हैं। मैं कहती हूं कि जो लोग बंगला हिन्दी आदि भाषा में बात करेंगे तो जो लोग संताली बोलते हैं वे भी अपनी भाषा भूल जायेंगे।” शिखा जैसी युवाओं का इस तरह से संताली में बेबाकी से बात करना अच्छा लगता है ।
शिखा के इस प्रोफेशन को चुनने का मकसद सिर्फ एक ही है कि भारत के अन्य भाषाओं की तरह भारत के लोग संताली भाषा के बारे में भी जाने। शिखा बताती हैं कि उनके परिवार वालों का सोचना था कि उनकी लड़की कोलकाता से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद किसी सरकारी विभाग में नौकरी करेगी। रेडियो जॉकी के जॉब ने शिखा के सपने को एक मौका दिया।
शिखा के परिवार में उनके माता पिता और एक बड़ी बहन हैं। बड़े दुख के साथ यह बताना चाहता हूं कि उनकी माँ कैन्सर से लड़ रही हैं। वो अपनी माँ से पूछती हैं कि माँ अब आपकी बेटी एक रेडियो जॉकी है आपको यह सब देखकर कैसा लगता है? माँ अपनी इस प्यारी सी बेटी की बात को सुनकर खुशी महसूस करती हैं और कहती हैं – “मुझे यह जानकर बहुत अच्छा लगता है कि तुम एक रेडियो जॉकी हो।”
बीमार माँ की ऐसी स्थिति में देख कर वह अंदर से बहुत दुखी होती है फिर भी शिखा अपने इस जॉब में शिद्दत के साथ लगी हुई है। हमें शिखा जैसी युवतियों को प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है। हमें गर्व महसूस होता है कि हमारे आदिवासी समाज में इतने होनहार और प्रतिभाशाली युवा हैं।
रेडियो मिलन 90. 4 fm का प्रसारण बंगाल, झारखंड और त्रिपुरा में भी होता है। शिखा बताती हैं कि कई बार गैर आदिवासी श्रोता भी उनको कॉल करते हैं। वे लोग संताल नहीं है लेकिन संताली में बात करते हैं। उनको संताली आती है यह जानकर उसे बहुत अच्छा फील होता है। झाड़ग्राम में नक्सलवाद का बड़ा प्रभाव होने के कारण यहां के बच्चे उचित शिक्षा नहीं ले पाते हैं। वह साढ़े तीन वर्ष की थी जब उनके माता-पिता उनको लेकर कोलकाता आ गए थे।
बचपन के कुछ अनुभव को साझा करते हुए बताती है कि गैर आदिवासी समाज के बच्चे अक्सर उसके साथ खेलना नहीं पसंद करते थे। उसका कारण सिर्फ यह था कि जंगली इलाके में रहने वाले आदिवासी सभ्य कहे जाने वाले समाज में उठ बैठ नहीं सकते। शायद वे लोग हमें इस काबिल ही नहीं समझते हैं। यह उनके स्कूली जीवन में भी महसूस करती थी।शिखा इस बात को बताते हुए बहुत भावुक हो जाती है कि काश हम लोग भी अन्य समाज की तरह किसी बड़े कास्ट के होते तो कम से कम लोग हमें नज़रअंदाज़ तो नहीं करते।
अपने सांवले रंग को लेकर शिखा की अपनी अलग सोच है। उसे सजना संवरना अच्छा लगता है। वह कहती हैं, ” मैं लोगो की बात सुनूं या अपने अंतर्मन की। मैं जैसी भी हूं ठीक हूं, मुझे गोरा होने या काला होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है।”
शिखा बताती है, “हम लोग आदिवासी हैं और लोग आदिवासी वर्ड को एक इन्सल्ट की तरह लेते हैं। मैं एक संताल आदिवासी परिवार से हूं, मेरा पूरा लगाव प्रकृति से है। मेरे लिए आदिवासी शब्द मेरे अंतरात्मा को छू जाता है।”
शिखा बताती है कि हमारे क्षेत्र में कई आदिवासी बच्चे स्कूल की कमी के कारण पढ़ाई नहीं कर पाते हैं। मैं चाहती हूं कि हमारे हरेक आदिवासी बच्चों को उनकी अपनी मातृभाषा में पढ़ने का मौका मिले।
शिखा आप हमारे पूरे भारत के आदिवासी समाज की गर्व हैं। हमें आप पर नाज़ है।
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