मेरा नाम पूजा है और मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के शहर बनारस में हुआ था। मैंने 14 सालों तक अलग-अलग मीडिया संस्थानों में पत्रकारिता की है। फिलहाल मैं स्कूलों को फैंसी ड्रेस मुहैया कराने का बिज़नेस करती हूं और साथ ही साथ जानवरों की देखभाल में अपना अधिक से अधिक समय देने की कोशिश करती हूं।
इस समाज की दोहरी मानसिकता के कारण मुझे अपनी लैंगिकता स्वीकारने में सालों लग गए। मुझे लगता है कि आज भी कई लोग सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स, डेटिंग ऐप्स पर अपनी पहचान छिपाते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इस समाज के लोग उन्हें स्वीकार नहीं करेंगे।
अपनी लैंगिकता को कई सालों तक छिपाने के पीछे सबसे बड़ी वजह थी कि मुझे लगता था अगर मैं सामने से आकर बताऊंगी कि मैं गे हूं तो मेरा मज़ाक उड़ाया जाएगा। वहीं सोशल मीडिया और डेटिंग ऐप्स पर अपनी सेक्शुअल ओरिएंटेशन छिपाने के पीछे सबसे बड़ी वजह थी कि सोशल मीडिया पर आपके दोस्त, रिश्तेदार, परिवार वाले होते हैं जिनके सामने आप अपनी पहचान बताने से कतराते हैं। आपके दिमाग में हर वक्त यह चल रहा होता है कि पता नहीं वे कैसे रिएक्ट करेंगे, ये जानने के बाद उनकी सोच बदल न जाए।
मेरी वर्तमान पार्टनर निकिता आज भी लोगों के सामने अपने रिश्ते को स्वीकारने से हिचकिचाती हैं, खासकर परिवार वालों के सामने। जब भी कोई निकिता को मेरी की दोस्त बताता है तो इससे मुझे काफी चिढ़ होती है क्योंकि मुझे लगता है कि लोग हमारे रिश्ते के बारे में जानकर भी अनजान बने रहना चाहते हैं। वे ऐसा दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं कि निकिता और मैं उनकी नज़र में कपल नहीं बल्कि दोस्त हैं। कई लोग मुझे और निकिता को लंच के लिए आमंत्रित करते वक्त कहते हैं कि अपनी दोस्त को साथ ज़रूर लाना। इससे पता चलता है कि समाज में लोग आज भी LGBTQAI+ समुदाय के रिश्तों को सहज़ता से स्वीकार नहीं कर पाते।
मुझे अपने सेक्शुअल ओरिएंटेशन को सामने लाने में इसलिए इतना वक्त लगा क्योंकि मुझे लगता था कि यह बात बाहर आने के बाद कोई मेरी मां से जाकर ना पूछ ले, वरना मुझे अपनी पहचान ज़ाहिर करने में कोई परेशानी नहीं थी। मुझे लगता है कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बहुत से लोग नहीं चाहते कि उनके कारण उनके परिवार को समाज में शर्मिंदगी का सामना करना पड़े। आज भी लोग LGBTQAI+ समुदाय को लेकर सहज़ नहीं है।
मैं पहले खुद अपनी सेक्शुअल ओरिएंटेशन छिपाती थी क्योंकि इससे ऑफिस और वहां के माहौल पर भी काफी प्रभाव पड़ता था। सोशल मीडिया पर भी लोगों ने मुझे काफी अजीबोगरीब सलाह दी मसलन आपकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है, आप इंसान अच्छी हैं लेकिन आप बदल सकती हैं।
जब मैंने अपनी पार्टनर निकिता के साथ तस्वीर डाली थी तो कई लोगों ने तो यहां तक कह डाला कि आप जो कर रही हैं वह भारतीय संस्कृति और सभ्यता के खिलाफ है। इन बेतुके सवालों से तंग आकर मैं अब ऐसे लोगों को सीधा ब्लॉक करने लगी हूं। कई लोग जो LGBTQAI+ से जुड़े मुद्दों को समझने की बात तो करते हैं लेकिन असल में उन्हें कुछ पता नहीं होता।
एक बार जब फेसबुक पर लोग स्टुलिश ऐप्लिकेशन (स्टुलिश के ज़रिए आप बिना अपना नाम ज़ाहिर किए लोगों को अपनी बात कह सकते हैं) के ज़रिए एक-दूसरे तक अपनी बात पहुंचा रहे थे तब मेरी एक दोस्त को किसी लड़की ने प्रपोज़ किया और सब लोगों को लगा कि यह काम मेरा ही है जबकि मैंने ऐसा नहीं किया था। मुझे स्टुलिश जैसे ऐप की ज़रूरत नहीं है क्योंकि मैं इतनी हिम्मती हूं कि मैं अपने प्यार का इज़हार खुलेआम कर सकूं। मैं अपने सेक्सुअल ओरिएंटेशन को लेकर बिल्कुल सहज हूं और उसे पब्लिकली स्वीकार करने में मुझे अब कोई शर्म नहीं आती।
हालांकि डेटिंग ऐप्स पर मेरा अनुभव काफी सकारात्मक रहा। टिंडर पर मैं ज़्यादा दिनों तक सक्रिय नहीं रही लेकिन जितने दिन भी रही मुझे गे होने के कारण किसी भी तरह के कड़वे अनुभवों से नहीं गुज़रना पड़ा। कभी किसी ने मुझसे आड़े-तिरछे सवाल नहीं पूछे। ऐसे डेटिंग ऐप्स का होना इसलिए भी ज़रूरी है कि यहां आपको अपनी पहचान नहीं छिपानी पड़ती। कम से कम वहां आपके गे, लेस्बियन, ट्रांस मेन, ट्रांस वुमन होने से किसी को कोई फर्क तो नहीं पड़ेगा।
मेरा मानना है कि स्वीकृति में सबसे ज़रूरी भूमिका परिवार वालों की होती है। मेरी मां कहती थी कि जब मेरी लैंगिकता को सब स्वीकार कर लेंगे तब वह भी मुझे स्वीकार कर लेंगी। मुझे लगता है जब सारे लोग स्वीकार कर ही लेंगे फिर मां की स्वीकृति की अहमियत क्या रह जाएगी। इसलिए सबसे पहले हमारे परिवार वालों को हमें अपनाना होगा क्योंकि हमें हिम्मत वहीं से मिलती है। आपके आस-पास के लोग आपको हतोत्साहित करते हैं।
समाज के इस दोहरे रवैये के बाद भी चाहे वह सोशल मीडिया हो या डेटिंग ऐप्स, मैं कहीं भी अब यह कहने से नहीं हिचकती कि मैं गे हूं। जिस दिन लोग हमारा मज़ाक उड़ाना बंद कर देंगे, परिवार वाले साथ देने लगेंगे उस दिन हम में से कोई भी अपनी लैंगिकता को नहीं छिपाएगा।