मोदी और योगी सरकार डिजिटल इंडिया के नाम पर कर रही मज़ाक
डिजिटल इंडिया वो नारा है जो पिछले तीन-चार सालों से कानों में गूंज रहा है, या यूं कहूं जबरन गुंजाया/सुनाया जा रहा है। यह नारा अगर किसी ने सबसे ज़्यादा सार्वजनिक मंचों से बोला है और ज़ोर-ज़ोर से बोला है तो वह किसी और के द्वारा नहीं बल्कि भारत के प्रधान सेवक और प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी के द्वारा बोला गया है!
नोटबंदी के बाद मोदी जी और भाजपा सरकारों और नेताओं ने एक तर्क यह भी दिया था कि इस कदम से लोग डिजिटल तरीका अपनाना शुरू कर देंगे! हम भारत को कैशलेस बनाना चाहते हैं। नोटबंदी के बाद से paytm जैसे ही बहुत सारे एप पैदा भी हो गएं और आज चलन में भी हैं।पिछले दो तीन सालों में डिजिटल इंडिया को लेकर भाजपा कि केंद्र और राज्य सरकारों ने खूब प्रचार प्रसार भी किया।
इसी डिजिटल इंडिया को कई चुनावों में मुद्दा बनाकर भाजपा ने चुनावी लाभ भी लिया पर किसी भी राज्य और केंद्र सरकार ने यह नहीं बताया अपनी चुनावी रैलियों में कि डिजिटल लेन-देन का चलन बढ़ने के बाद साइबर क्राइम कितना बढ़ गया? कितने लोगों के बैंक खातों से मिनटों में हज़ारों लाखों रुपया उड़ा लिया गया? जिसके पुलिस रिपोर्ट और बैंक के चक्कर लगाने के बाद भी उन लोगों को वो पैसा नहीं मिला!
उदहारण के लिए हाल की यह एक मीडिया रिपोर्ट देखी जा सकती है:
जनता को धमका रही राज्यों की पुलिस
मोदी जी के डिजिटल इंडिया के सपनों में एक और खास योजना का नाम शामिल है। अगर आप एक स्मार्ट फोन यूज़र हैं तो इसके बारे में आपने कभी ना कभी कहीं ना कहीं सुन ही लिया होगा। इस योजना का नाम है डिजिटल लॉकर, जी हां यही नाम है इस योजना का। अभी तक आप ने इसके बारे में नहीं पढ़ा या सुना है तो इस लिंक पर जाकर आप विस्तृत रूप से जानकारी कर सकते हैं।
रुकिए-रुकिए सिर्फ जानकारी ही करियेगा, अमल में मत वरना आपके शहर की पुलिस आपको धमका सकती है और जेल भी भेज सकती है। क्यों? यह भी ज़रूर बताऊंगा! असली डिजिटल इंडिया की कहानी तो यही है! तो पहले आप भाजपा सरकार के केंद्रीय मंत्री जी के श्री मुंख से डिजिटल लॉकर की पूरी कहानी सुनिए इस लिंक पर जाकर।
सुन लिया? तो अब वक्त आ गया है, इस डिजिटल इंडिया और डिजिटल लॉकर के सपने से बाहर निकल कर हकीकत से मिलने का! आपने सुन ही लिया होगा कि 1 जुलाई 2015 में डिजिटल लॉकर योजना को मोदी सरकार ने शुरू किया। 1 साल के बाद मोदी सरकार के मंत्री जी इसके फायदे, कितने लाख लोग इससे जुड़ गए, कितने करोड़ दस्तावेज अपलोड किये जा चुके हैं आदि बहुत ही हर्ष के साथ बता रहे हैं। ज़ाहिर है जैसे डिजिटल लॉकर योजना को डिजिटल इंडिया नारे के साथ अधिकतर मीडिया हाउस ने ज़ोर-शोर से प्रचारित किया वैसे ही इस एक साल के जश्न को भी किया होगा। यह योजना जमीनी स्तर पर कितनी कारगर साबित हुई है यह शायद ही किसी मीडिया घराने ने जनता को बताने का कष्ट किया।
क्या मोदी सरकार या उस मंत्रालय ने जिसके अधीन यह योजना आती है, उनके तरफ से ये जानने की कोशिश हुई कि सभी राज्य सरकारें जिसमें अधिकतर भाजपा की ही राज्य हैं, इस योजना को लागू कर रही हैं या नहीं? अगर नहीं लागू कर रही है तो क्यों? लेकिन योजना के शुरू होने के लगभग तीन साल के बाद भी जनता को सिर्फ और सिर्फ परेशानियां ही उठानी पड़ रही हैं। क्योंकि अधिकतर राज्य सरकारों ने इस डिजिटल लॉकर योजना को लागू नहीं किया। केंद्र सरकार के सड़क परिवहन मंत्रालय ने राज्यों के परिवहन सचिवों, परिवहन आयुक्तों, डीजीपी, एडीजीपी को आदेश जारी किये थे! उसके बाद भी राज्य कि सरकारों पर कोई असर नहीं पड़ा, और मोटर वाहन कानून केंद्र द्वारा संसोधित किया जा चुका है, राज्य सरकार द्वारा लागू नहीं किया गया! जिसका नतीजा राज्य कि आम जनता को भुगतने पड़ रहे हैं! हाल ही में केंद्र के सड़क परिवहन मंत्रालय ने फिर से सभी राज्यों को वाहनों के इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ों और ड्राइविंग लाइसेंस को असल दस्तावेज़ मानने को कहा!
लेकिन इस सबके बावजूद बाद भी इस मामले में उत्तर प्रदेश कि योगी सरकार ने राज्य के प्रशासन को कोई अधिसूचना नहीं जारी की, और राज्य की पुलिस आम जनता को परेशान कर रही हैं!
ज़मीनी हकीकत क्या है
26 नवंबर 2018 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ निवासी रणधीर कुमार ने सरकार की डिजिटल लॉकर योजना को सच मानते हुए, पुलिस द्वारा बाइक के कागज़ दिखाने के लिए कहने पर अपना स्मार्ट फोन जेब से निकालकर डिजिटल लॉकर से ड्राइविंग लइसेंस यह सोचकर दिखाने की कोशिश की चलो डिजिटल लॉकर कर कुछ तो फायदा होगा। शायद रणधीर कुमार यह नहीं जानते थे कि डिजिटल होना उन्हें योगी सरकार कि पुलिस के सामने बहुत भारी पड़ने वाला है, वो भी योगी जी की पार्टी की केंद्र सरकार की योजना के लिए ही। पढ़िए रणधीर कुमार की कहानी उनकी जुबानी :
“दिनांक 26/11/2018 समय सायं 3.45 पिलोखड़ी रोड पुलिस चौकी के पास मुझे चेकिंग के लिए 1 पुलिस काँस्टेबल ने रोका। सबसे पहली बात तो यह कि यदि आपको नियमों के बारे में पता हो तो आप खुद समझ सकते हैं कि क्या उस पुलिस काँस्टेबल का हक बनता है कि वो मेरे वाहनों के कागज़ चेक कर सके? खैर कोई बात नहीं मुझे इससे कोई आपत्ति नहीं हुई मैंने अपने सभी दस्तावेज़ जैसे की पंजीकरण प्रमाण-पत्र, प्रदूषण प्रमाण-पत्र, वाहन के बीमा की कॉपी उनको दिखाई और हेलमेट मैंने लगा रखा था!
किसी कारण बस जब मैं घर से निकला तो अपना वॉलेट लेना भूल गया था, जिसमें सिर्फ मेरा ड्राइविंग लाइसेंस था वो मेरे साथ नहीं था। उस काँ स्टेबल ने मुझसे कहा, ड्राइविंग लाइसेंस दिखाओ तो मैंने उसको अपना ड्राइविंग लाइसेंस डिजिटल लॉकर में दिखाया। वो बोला, बच्चे भी मोबाइल से ही पैदा कर लेगा क्या? ये सुनकर मैंने उससे कहा की आप क्या कह रहे हैं? इसका मतलब भी आपको पता है?
जिसके बाद उसने मेरा लाइसेंस तो देखा नहीं और मेरे वाहन के सभी पेपर लेकर चौकी में बैठे मनोज कुमार, जो शायद चौकी प्रभारी थे उनके पास चला गया और उनसे कहा कि साहब इसके पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं है, इसका चालान कर दो। मैंने उनसे कहा, सर सभी कागज़ तो मैंने दिखा दिए हैं, सिर्फ ड्राइविंग लाइसेंस मैं लेना भूल गया लेकिन वो भी मैं आपको डिजिटल लॉकर में दिखा रहा हूं। उन जनाब ने इतना कहते ही मुझसे कहा, अगर हाथ में है तो दिखा मोबाइल में व्हाट्सप्प पर क्या दिखा रहा है? मैंने उनसे कहा, सर आप देख तो लीजिये कि मैं दिखाना क्या चाह रहा हू, उसके बाद आप निर्णय कीजियेगा कि ये सही है या नहीं। उन्होंने उसे देखना भी गवारा नहीं समझा और बोले कि चालान कटेगा।
मैंने उनसे कहा कि सर सभी पेपर तो मेरे पास है फिर चालान किस पर कटेगा? उन्होंने कहा ड्राइविंग लाइसेंस पर, मैंने उनसे कहा कि सर मैंने तो 24/11/2018 के दैनिक जागरण में भी पढ़ा है कि मोटर वाहन एक्ट में संसोधन किया गया है जिसके बाद अब सभी दस्तावेज़ ऑनलाइन दिखाने पर भी मान्य होगा। उन्होंने कहा “तुझे ज़्यादा एक्ट पता है क्या? एक्ट 153 पता है एक्ट 171 पता है?”
मैंने उनसे कहा कि सर ये मैं अपने पास से थोड़ी ना कह रहा हूं, सरकार ने किया है। तब उन्होंने कहा कि तू तो बहुत बहस करता है मैंने तो काट दिया अब न्यायलय में मुझे चुनौती दे दियो! मैंने उनसे कहा, सर इसके लिए चुनौती क्या देनी लेकिन आपको इतनी बात तो समझनी चाहिए थी कि बाकि सभी पेपर तो मैंने दिखा दिया और ड्राइविंग लाइसेंस ऑनलाइन दिखा रहा हूं। बस इस बात पर मनोज कुमार जी को गुस्सा आ गया और बोले की ज़्यादा ज्ञान ना बाट मुझे, जितनी तेरी उम्र है उतना टाइम मुझे बाइक चलाकर छोड़े हुए हो गया। मैंने कहा कि सर इस बात का इससे क्या मतलब है तो उन्होंने कहा कि इसे अंदर बिठाओ (मतलब चौकी के अंदर जो 1 कमरा सा बना हुआ होता है जहां मुजरिमों को बिठाया जाता है ) वहां मुझे बिठा दिया और 1 काँस्टेबल से कहा कि इसकी एंट्री करो (मतलब रजिस्टर जो वहां होता है)।
मैंने कहा कि सर गुनाह क्या है मेरा ये तो बताओ? बस यह कि मैंने आपको ऑनलाइन दिखा दिया जिसके लिए सरकार सबको ट्रेनिंग दे रही है? उन्होंने कहा कि हमारे पास कोई लिखित सूचना नहीं आयी है। अब बताओ क्या यह भी मेरी ज़िम्मेदारी हो गयी कि उनको सूचना क्यों नहीं मिली है वो भी उस चीज़ की जिसके लिए सड़क एवं परिवहन विभाग अपनी खूब पीठ थप-थपा रहा है!
इसके बाद उन्होंने मुझसे यह भी कहा, जा जिस नेता को बुलाना है बुला ले या जिस गुंडे को बुलाना है बुला ले हमसे बड़ा गुंडा कौन होगा? मैंने उनसे कहा कि सर मैंने तो ऐसी कोई बात ही नहीं की तो उन्होंने कहा कि मैं तुझे बता रहा हूं! आखिरी में मैंने उनसे बोला, सर अपने चालान भी कर दिया अब तो अब मुझे क्यों रोक रखा है तो उन्होंने थोड़ी देर मुझे और बैठाया। इसके बाद मेरे 1 साथी की बाहर खड़ा था उसने कहा कि साहब बहुत टाइम हो गया घर भी जाना है तो उससे कहा कि अपने साथ वाले को भी तो ये समझा तब उसने कहा कि ठीक है सर मैं समझा दूंगा तब मुझे आने दिया!
अब मुझे यह बात समझ नहीं आ रही है की मेरे साथ वाला मुझे क्या समझायेगा यही कि वह पुलिस वाला है तो उनके सामने अपनी सही बात भी नहीं रखनी चाहिए? या फिर ये कि यहां सही बात कहना भी बहस माना जाता है?
या फिर ये कि वो लोग जो पुलिस की चेकिंग के लिए नहीं रुकते और स्पीड बढ़ाकर भाग जाते हैं वो लोग ठीक हैं या मैं जो रोककर सब कागज़ दिखाने लग गया! या फिर यह कि 1 और लड़का जिसको रोका था उसने कह दिया कि मेरे पास कोई पेपर नहीं है और अपने किसी मामा से उनकी बात करा दी और उसे जाने दिया!
मैं इसी असमंजस में हूँ की सही क्या है और गलत क्या!
सबसे मज़े की बात तो यह थी जो चलते टाइम उन्होंने मुझे कही कि हमें कोई शौक थोड़ी ना है, चालान करने का टारगेट दिया जाता है हमें इसलिए हम करते है! अंत में यही की क्या ये कानून जो की सरकार ने ही लागू किया और सरकारी विभाग के ही व्यक्ति उसे मानने के लिए मना कर रहे है और मुझ जैसे आम नागरिक जब उन्हें यही बात बताते है तो वह कहते हैं, बहस कर रहा है और हमारे साथ ही अभद्रता का व्यवहार किया जाता है मारपीट की जाती है!
समझ नहीं आता की कमी कहाँ है सरकार में, सरकारी सिस्टम में, सिस्टम में बैठे व्यक्ति में, या फिर उनका पालन करवाने वाले जिम्मेदार व्यक्तियों में! घर आने के बाद मैंने एसपी सिटी से भी फ़ोन पर बात कि, उन्होंने भी यही कहा, आपका चालान सही काटा गया, आपको ड्राइविंग लाइसेंस दिखाना चाहिए था! मेरे डिजिटल लॉकर के बारे में बताने पर, उन्होंने कहा, आपको ग्रीन कार्ड बनवाना होगा! डिजिटल लॉकर कि उनके पास कोई जानकारी नहीं थी!”
तो यह थी डिजिटल इंडिया स्कीम को मानने वाले और उसको सही मानकर चलने वाले रणधीर कुमार कि आपबीती! अब अहम सवाल यह है कि रणधीर कुमार का चालान क्या कानूनन सही काटा गया? जबकि नए कानून के हिसाब से रणधीर कुमार के पास सभी ज़रूरी दस्तावेज़ थे! और अगर थे तो पुलिस वाले यह क्यों कह रहे थे, हमारे पास इसी कोई गाइड लाइंस नहीं हैं? इसका सीधा अर्थ यही हुआ, तीन साल होने के बाद और बीच-बीच में केंद्र के सड़क परिवहन मंत्रालय द्वारा दो-दो बार राज्यों को आदेश देने के बाद भी उत्तर प्रदेश कि योगी सरकार नए मोटर वाहन कानून को राज्य में लागू नहीं कर सकी है। जो पुलिस प्रशासन केंद्र सरकार के तीन साल पहले के आदेश नहीं मानता है, वही खुद को डिजिटल होने का दावा भी करता है।