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पटेल की विशाल मूर्ति पर व्यंग्य

‘सरदार पटेल की मूर्ति बन गई. सरदार सरोवर बाँध बन गया. 2009 की पहली रात को मोदी जी ने सपने में जिस बुलेट ट्रेन को देखा था अब वो भी दौड़ेगा. बस अपना राम मंदिर नहीं बनेगा..’ चाचा एकदम गुस्से में बोले जा रहे थे.

आज चाचा का दिल टूट गया था. अपनी भड़ास निकालने में वो चाय की चुस्की लेना भूल जा रहे थे.
मैंने उन्हें रोकते हुए कहा- ‘क्यों चाचा, अभी तक सरदार पटेल की मूर्ति नहीं देखे क्या?’

सवाल पूछने पर थोड़ा शांत हो गए. चाय की चुस्की ली. और फिर आराम से कहते हैं- ‘बस घुटने तक ही मूर्ति देख पाए. उससे ऊपर देखने के लिए चश्मे का पावर बढ़ाना पड़ेगा..नहीं तो दूरबीन खरीदना पड़ेगा.’
बात तो उनकी भी सही थी. अब इतना ऊँचा है कि मुंह दिखाई के लिए दूरबीन खरीदो.

अपनी हँसी रोकते हुए मैंने पूछा- ‘राम मंदिर में अब क्या मामला है..सुप्रीम कोर्ट है न. अपना काम देख रहा है.’
लग रहा था कि चाचा बस इसी सवाल का इंतज़ार कर रहे थे.
‘बेटा सुप्रीम कोर्ट और राम मंदिर का रिश्ता समझते हो’ चाय की एक लंबी चुस्की लेते हुए उन्होंने कहा- राम मंदिर प्रेमी है. और सुप्रीम कोर्ट वो प्रेमिका बन गई है जो अपने प्रेमी के प्रपोजल को लटकाए हुए है और हर बार कहती है ‘यस, आई लाइक यू. बट गिव मी सम मोर टाइम.’

रिश्तों पर इतनी भारी पकड़ देखकर मैं हैरान था.
इतनी पकड़ तो बैंक और रेलवे की तैयारी करने वाले बच्चों की भी नहीं होती है. जिसके परीक्षा में इसके चाचा और उसकी भाभी करके पांच नंबर का प्रश्न जरूर ही पूछते हैं.

मेरी चाय अब ख़त्म हो चुकी थी. उनकी अभी आधी बची हुई थी. ‘जल्दी चाय पी लीजिए आप भी. ठंडी हो रही है. मैंने कुर्सी पर से उठते हुए कहा- और सुनिए आप अच्छा बोलते हैं. जब कभी प्रधानमंत्री बन जाईएगा न. तो राम मंदिर बनवा दीजियेगा.’

उन्होंने एक लंबी सांस ली. एक ही घूंट में आधी ग्लास चाय ख़त्म कर दी. और मेरे जल्दी चाय पी लीजिए का जवाब देते हुए कहा-‘ बेटा जी, मेरी तो उम्र बीत गई लेकिन तुम एक बात गांठ बांध लो.
चाय पीने से नहीं..पिलाने से प्रधानमंत्री बनते हैं.
इसलिए मेरे से राममंदिर की उम्मीद रखना छोड़ ही दो.’

उनकी बात को गांठ बांधते हुए मैं वहां से निकल गया. रास्ते में राममंदिर को देखने के लिए वही दूरबीन खरीदने की सोच रहा था. जिस दूरबीन से चाचा सरदार पटेल का चेहरा देखने का विचार कर रहे थे.

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