कब तक सम्मान के नाम पर देश को लूटा जाता रहेगा। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी प्रोजेक्ट की वजह से गंभीर रूप से प्रभावित करीब 75,000 आदिवासी।
देश में एक और प्रतिमा वजूद में आ गई। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी।
देश के पहले गृहमंत्री और कॉंग्रेस के बड़े नेता सरदार वल्लभ भाई पटेल की सबसे बड़ी प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के निर्माण में मोदी जी के मित्रों अडानी, अंबानी, बाबा रामदेव ने एक रुपया भी नहीं दिया है, बल्कि इसके लिए उन सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों ने धन दिया है, जिनकी बुनियाद आधुनिक भारत के निर्माता पं. जवाहर लाल नेहरू ने रखी थी और पीएम मोदी नेहरू और नेहरू-गांधी परिवार को प्रतिमा के अनावरण के अवसर पर भी कोसने से बाज नहीं आए। यानी सरदार पटेल की प्रतिमा आम जनता के धन से बनी है।
मराठी अखबार लोकसत्ता के संपादक गिरीश कुबेर के लेख “पंडित नेहरूंच्या सार्वजनिक क्षेत्रातील उद्योगप्रेमाला पहिल्यांदा तडाखा दिला तो नरसिंह राव यांनी.” में बताया गया है कि सरदार पटेल की प्रतिमा को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की सीएसआर (कॉरपोरेट सोशल रेस्पाँस्बिलिटी) से धन दिया गया। धन देने वाले संस्थान हैं –
इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन-900 करोड़
….. ओएनजीसी-500 करोड़
….. भारत पेट्रोलियम-250 करोड़
….. ऑयल इंडिया कॉरपोरेशन-250 करोड़
….. भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड (आईजीएल)-250 करोड़
….. पावर ग्रिड 125 करोड़
….. गुजरात खनिज विकास निगम 100 करोड़
….. इंजीनियर्स भारत-50 करोड़
….. petronet भारत-50 करोड़
….. बामर लॉरी-50 करोड़
अधिकांश धन देने वाले तेल क्षेत्र के सार्वजनिक क्षेत्र के (पीएसयू) हैं। ऐसे समय जब भारत तेल के दाम कम करान के लिए कराह रहा है, इस तरह हमारे तेल क्षेत्र के पीएसयू से उनका धन बरबाद कराया जा रहा है।
नजर 2013 के पहले भी थी और अभी भी है । किसी पार्टी के पक्ष मे और विरोध में बात नहीं हो रही है । बात सिर्फ यह है कि जिसके हाथ में देश की डोर सम्भाल ने के लिए दे रखी है वह क्या कर रहे है ? उल्लेखनीय है कि यह प्रतिमा अमेरिका में स्थित ‘स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी’ से करीब दो गुनी ऊंची है और गुजरात के नर्मदा ज़िले में सरदार सरोवर बांध के पास साधु बेट नामक छोटे द्वीप पर स्थापित की गई है. इस प्रतिमा के निर्माण में 70,000 टन से ज़्यादा सीमेंट, 18,500 टन री-एंफोंर्समेंट स्टील, 6,000 टन स्टील और 1,700 मीट्रिक टन कांसा का इस्तेमाल हुआ है । स्टैच्यू ऑफ यूनिटी प्रोजेक्ट की वजह से गंभीर रूप से प्रभावित 72 गांवों के क़रीब 75,000 आदिवासी । आदिवासी क्षेत्रों में पर्यावरण क्षति के कारण कम से कम 3 किमी के लिए सरदार की मूर्ति के आस-पास कई पेड़ काट दिये गये । कई परिवारों को विस्थापित कर दिया गया था,मूर्ति के निर्माण ने पर्यावरण को नष्ट कर दिया है।”इन जंगलों, नदियों, झरने, भूमि और कृषि ने उन व्यक्तियो की पीढ़ियों के लिए समर्थन दिया। वह उन पर बचे थे। लेकिन, अब सबकुछ नष्ट हो रहा है ।
कुछ लोग यह भी कहते दिखाई पड़ते हैं कि अगर सरकार योजनाएं चला रही है, तब लोग भूखे पेट सोने को मजबूर क्यों हैं? क्यों किसान आत्महत्या करने को बेबस हैं और सैनिक अपनी पेंशन के लिए क्यों जंतर-मंतर पर धरना देने को मजबूर हैं?
2014 की लोकसभा चुनाव के बाद गरीबों को घर देने और गरीबी मिटाने का संकल्प लिया गया था, जिसे 2022 तक के लिए छोड़ दिया गया और 33 महीनों में बेहिसाब खर्च कर प्रतिमा खड़ी कर दी गई। सरदार पटेल तो कहते थे कि मेरे सपनों का भारत ऐसा हो जहां किसी की आंखों में भूख की वजह से आंसू ना निकले लेकिन हालात ऐसे हो गए हैं कि आज़ाद भारत में अपनी मेहनत से किसानी करने वाला किसान खून के आंसू रोने को मजबूर है। शिक्षा, स्वास्थ्य और संसाधनों पर हक। ये तीन चीजें बड़ी अहम हैं। इन पर सुलभ तरीके से हक ना हो, तो फिर निचली पायदान के लोगों को आगे बढ़ना मुमकिन नहीं। लेकिन आज क्या है? अच्छी शिक्षा और अच्छा स्वास्थ्य कमोवेश उन्हीं के लिए है, जिनकी गांठ में पैसे हैं। और फिर यही हाल संसाधनों पर हक के मामले में है। यानी हमारी व्यवस्था के मूल में ही समाज को बांटने का इंतजाम हमने अनजाने में कर दिया है। यकीनन सरदार पटेल का भारत शायद ऐसा नहीं होता।
क्या इस दौर में राजनेता को तब ही याद किया जाएगा जब उनकी बड़ी सी प्रतिमा बनवा दी जाएगी? इतने पैसों से बनी प्रतिमा का भारत जैसे देश में क्या काम? भारत में गरीबों को आज भी दो वक्त की रोटी के जुगाड़ की फिक्र होती है।
मौजूदा वक्त में जहां एक तरफ देश का औसत गरीब आदमी संघर्ष के साथ जीवन यापन कर रहा है वहीं दूसरी ओर 2989 करोड़ की प्रतिमा बनवाकर पैसों की बर्बादी की जा रही है। ऊंची प्रतिमाओं से क्या इस देश के किसानों को अपनी मेहनत का फल मिल जाएगा या हम अपने जवानों के लिए बेहतर सुविधा दे पाएंगे? हमें यह भी सोचना आवश्यक है कि सरदार पटेल इन गरीबों के बारे में क्या राय रखते थे और आज यह सब देखकर वो क्या कहते!
क्या सम्मान के लिए मूर्ति बनाना जरूरी है वो भी इतने रूपये खर्च करके ?
सरदार पटेल किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी जितनी ऊंची कोई प्रतिमा विश्व में नहीं है। लेकिन ये उतनी भी ऊंची नहीं है, जितना कि सरदार का व्यक्तित्व है।
सम्मान के लिए क्या उनके विचारों को नहीं अपनाया जा सकता है , उनके नक्शे कदम पर चल कर उन्हे सम्मान नहीं दिया जा सकता है ।
नरेन्द्र मोदी ने सपना देखा इसलिए उस सपने को पूरा किया , और भी सपने देखे होंगे वो भी पूरे करेंगे , कल उनकी जगह कोई ओर होगा , वह भी अपने बहुत सारे सपनों के साथ आएंगे ,उन्हे पूरा करेंगे , अपने सपनों को पूरा करने के लिए इस देश का ही धन खर्च करेंगे , चाहे देशवासियों को भूख से तडपना पडे , खुन के आंसू बहाने पडे !
क्या फर्क पड़ता है …….
जो है नहीं उनके सम्मान में यह सब किया जा रहा है ,और जो इस जमीन पर है उनका ज़रा भी खयाल नहीं किया जा रहा है ।
सरदार पटेल ऐसा देश नहीं चाहते थे फिर भी अपने सपने के लिए ,उनके सम्मान के नाम पर करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं ।
लोगों को रोजगार मिलने की बात कही जा रही है ।
वह तो वक़्त बता रहा है कि 75000 व्यक्ति अभी प्रभावित हुए हैं उनका क्या ?
ओर आगे कितनो को रोजगार मिलने वाला है और लाभ कोन कोन उठायेगा यह भी सबको पता चलेगा ।
अगर रोजगार की इतनी ही चिंता थी और सरदार पटेल के सम्मान में कुछ करना ही था तो उन रुपयो का उपयोग 75000 व्यक्ति के लिए , जनता के हित के लिए क्यो नही किया गया ।