खिलखिलाती हँसी जाने कहाँ खो गई ,
याद बचपन की आई तो नजर रो गई ।।
हँसता चेहरा दिखे अब वो दर्पण कहाँ ,
मुस्कुराता हुआ अब वो बचपन कहाँ ।।
बचपन , एक ऐसा ख्वाब जिसमे हम कुछ यू खोते है कि ना भविष्य की फ़िक्र होती है ना ही भूत की कोई चिंता । बस उसमे फ़िक्र होती तो बस ये की कल स्कूल में गृहकार्य जांचा जाएगा , शाम को मैच में पहले फील्डिंग ना आ जाये , रात को मेरे को भूत उठा ना ले जाये , हाहा बस ये होती है बचपन की महान चिंताएं । अब सोचते है कि क्यों बड़े हो गए आखिर जिसमे अभी के लिए तो जी ही नहीं रहे , बस कल में जीते है कि कल क्या होगा या फिर कल क्या हुआ था , ऐसी जवानी में उसी पुराने बचपन की यादो के झरोखो से कुछ किरणे बचपन की भेजी है आप तलक , उम्मीद है ये आपको उन दिनों में ले जाएगी ।
जब मैं छोटा बच्चा था ,
जब अकल का थोड़ा कच्चा था ,,
तब चाँद को मामा कहता था,
बिल्ली को मौसी कहता था,,
परियो से मिलने जाता था ,
मैं पेड़ो से बतियाता था,,
तब भूतो से घबराता था,
अक्सर चूहों से टकराता था,,
लेकिन मै दिल का सच्चा था,
जब मैं छोटा बच्चा था।।।
फूलो का फोटो न लेता,
उनको बस सुंघा करता था,,
कुछ अपने बिछडो को मैं,
तारो में ढूंढा करता था,,
कुत्तो से मेरी यारी थी,
हर हरकत मेरी न्यारी थी,,
पापा के कंधे मेरी गाड़ी थे,
अम्मी की थप्पड़ प्यारी थी,,
बाते नानी की सच्ची लगती थी,
मुझे ईमली अच्छी लगती थी,,
मै कान का थोड़ा कच्चा था,
लेकिन मै अच्छा बच्चा था,,
माही जब मैं छोटा बच्चा था ।