न्याय के देवता गोल्ज्यू और माँ नंदा -सुनंदा की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध चम्पावत नगर आदि काल में चंद राजाओं की राजधानी भी रहा है।यह पावन भूमि अपने प्राकृतिक सौंदर्य,मनोरम छटा और हरीतिमा के लिए केवल प्रदेश और देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी विशेष प्रसिद्धि लिए हुए है।यहाँ का पावन निर्मल जल ,उर्वरा शक्ति से भरपूर मृदा,अनेक पावन एवम् दर्शनीय स्थल,लोगों का सरल एवम् मिलनसार व्यवहार तथा अनेक ऐतिहासिक राज से भरी हुई बातें करना सदा से ही संगठनों ,पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बिंदु रही हैं।यही वो कुछ प्रमुख विशेषतायें हैं जिनके कारण से ही कुछ बुद्धिजीवी वर्ग चम्पावत नगरी को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की विचारधारा का सबल समर्थन करते हैं।
बुद्धिजीवी वर्ग की इस विचारधारा के साथ क्षेत्र के विकास के लिए कुछ प्रमुख कदम उठाए जाते हैं,जैसे-सुलभ यातायात हेतु सड़कों का चौड़ीकरण एवम् नई सड़कों का निर्माण कार्य,खनन,विनिर्माण कार्य इत्यादि ।इन गतिविधियों के सञ्चालन में पर्यावरण की अनदेखी होना स्वाभाविक सा प्रतीत होता है।
अनेक ऐतिहासिक धरोहरों से परिपूर्ण तथा अनेक प्राकृतिक विशेषताओं वाले चम्पावत शहर में निरंतर हो रहे विकास और लोगों की बदलती जीवनशैली पर प्रश्नचिन्ह तब लगता है जब लगातार किये गए वायु सर्वेक्षणों में Pm 2.5 तथा Pm 10 क्रमशः 52 और 78 प्रदर्शित करते हैं और Aqi 86 चिंता व्यक्त करने को मजबूर करता है।निः संदेह यह आंकड़े राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के आंकड़ों से बेहतर स्थिति में हों परंतु अगर समय पर प्रयास तेज न किये गए तो चम्पावत को भी WHO के उन सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल होने में ज्यादा समय नही लगेगा जहाँ आज घर से बाहर निकलने के लिए मुँह में मास्क लगाना अनिवार्य हो चुका है।
गौरतलब है कि आज से 23 वर्ष पूर्व राजधानी दिल्ली के हाल भी कुछ ऐसे ही थे जो कि आज चम्पावत की वर्तमान स्थिति है।अगर हालात यही रहे और समय पर जागरूकता के साथ साथ चलने वाले क़दमों की गति तेज न की गयी तो बेशक हम विकास के स्तर से राजधानी दिल्ली का मुकाबला भले ही कितने वर्षों में करें पर पर्यावरण प्रदूषण में हमारा सीधा मुकाबला दिल्ली की ही तरह अन्य प्रदूषित शहरों से होगा।
हमारी सोच कि – हम तो मध्य हिमालयी क्षेत्र में रहते हैं तो यहाँ प्रदूषण शायद ही कभी होगा ,की भ्रमः स्थिति से ऊपर उठ कर सोचना होगा।क्योंकि अन्य वर्षों की भांति इस वर्ष भी दीपावली पर आतिशबाज़ी में लाखों का व्यवसाय हुआ और लोगों ने निः संकोच इन सबका प्रयोग किया,और आज आंकड़े फिर से माथे पर लकीरें दिखाने के लिए काफी हैं।
चिंता का विषय तब और भी गंभीर प्रतीत होता है जब वायु प्रदूषण के साथ साथ शहर में अन्य प्रदूषण और अन्य समस्याएं भी अपनी पराकाष्ठा की ओर निरंतर अग्रसर हो रही हैं।विचारणीय है कि जब जाड़ों के मौसम में पानी की खपत कम होने के बावजूद हम इस मौसम में भी जल प्रदुषण और जल संकट की समस्या से जूझ रहे हैं तो यह स्थिति गर्मी के मौसम में स्वाभाविक रूप से गम्भीरतर हो जायेगी।
जहाँ कुछ वर्ष पूर्व इस शहर की स्थिति यह थी कि इस शहर में शायद ही कोई घर ऐसा होता था जिस घर में खेती नहीं होती थी वहीं आज हालात यह हैं कि पारंपरिक किसानों ने भी कुछ असुविधाओं के कारण से आज कृषि करना छोड़ दिया है और कारण जल संकट,खाद की कमी के साथ-साथ बंदरों और अन्य जंगली जीवों का आतंक जैसी गंभीर समस्याएं हैं।
इन समस्याओं से बड़ी भी एक समस्या और है, और वह है हमारे युवाओं की समस्या।आज हम अपने युवाओं को इस देश का कर्णधार कहते हैं पर प्रश्न तो यह है कि क्या आज सच में हमारा युवा इस काबिल है कि वह हमारे देश की बागडोर सँभालने के काबिल है?यह प्रश्न हमें खुद से करना होगा ,क्योंकि इसके जवाब हमें ही बेहतर पता हैं,पर हम खुद को दिलासा देने के लिए कभी सच का सामना ही नही करना चाहते हैं।आज हमारे बीच से वो आत्मीयता,वो लोगों का एक दूसरे के लिए सौहार्द और सहायता का व्यवहार प्रायः लुप्त सा प्रतीत हो रहा है।युवा नशे में बुरी तरह उलझता जा रहा है।पर इसका दोष न माता- पिता को दिया जा सकता है न ही गुरुजन या फिर किसी अन्य वर्ग को ।क्योंकि इन सारी समस्याओं के जिम्मेदार हम स्वयं ही हैं।क्या हमने आज तक कोई ऐसा कार्य किया जो हमारे आपसी भाईचारे को बढाने में मदद करे।बिना कहे ही समाज और हमारे युवाओं के लिए एक मिशाल और एक सीख बन जाए?क्या हमने कभी चिंता व्यक्त करने के अलावा इन मामलों पर कभी भी खुद से प्रयास किया?पर्यावरण को हमने कितना समझा?कितना हम अपनी संस्कृति को समझ रहे हैं?
अगर इन सब प्रश्नों के उत्तर सकारात्मक हैं तो काफी ख़ुशी की बात है।परंतु अगर हम जवाब देने में स्वयं को असमर्थ पा रहे हों या जवाब ‘न’ हो तो अबकी बार केवल विचार ही नही करना होगा अपितु एक संकल्प भी करना होगा जिसके लिए हम पूर्ण रूप से समर्पित हों।
एक संकल्प करें हम हरित चम्पावत,विकसित चम्पावत का ।
जय हिन्द
जय उत्तराखंड