अगर आप मंदिर और मदरसे की तुलना कर रहे हैं तो आप बेवकूफ़ (शायद घटिया भी) हैं। लेकिन अगर आप मदरसे को इग्नोर कर रहे हैं क्यूंकि आप सेक्युलर हैं, तो भी आप गलत हैं।
एक मदरसे में दो दिन तक एक बच्ची को बंधक बनाकर उसके साथ कुकृत्य किया गया और किसी के कान में जूं भी नहीं रेंगी? अगर यही किसी प्राइवेट स्कूल में हुआ होता हम मिडिल क्लास लोग सेफ़ स्पेस, सेफ़ स्पेस का नारा लगा रहे होते। क्यूंकि हमारे बच्चे उन प्राइवेट स्कूलों में जाते हैं, मदरसों में नहीं। जिस आसानी से इस घटना में मदरसे को किसी अन्य घटनास्थल की तरह पचा लिया जा रहा उसके पीछे धर्म निरपेक्षता नहीं बल्कि उपेक्षा का भाव है।
क्या मुसलमान बच्चों को सेफ़ स्पेस नहीं चाहिए? क्या सरकारी स्कूलों में हमें सेफ़ स्पेस नहीं चाहिए? क्या ऐसी जगह जहां दो दिन तक एक बच्ची को बंधक बनाकर रखा जाए और किसी को ख़बर भी न हो, किसी भी प्रकार की शिक्षा के लिए उचित जगह है?
जब किसी प्राइवेट स्कूल में ऐसी घटना होती है तो प्रिंसिपल से लेकर ट्रस्टी तक सब नाप दिये जाते हैं, मगर इस घटना में हम मदरसा चलाने वाली संस्था की तरफ़ मुख़ातिब भी नहीं हैं। क्यूं? क्यूंकि हम सेकुलर हैं?