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“सुमित्रा ताई आपने आरक्षण का आधा सच छिपा लिया”

आरक्षण पर बात करते हुए अक्सर उसके विरोधी बड़ी चतुराई से तथ्यों से छेड़छाड़ कर देते हैं। यह गलती कोई आम आदमी करे तो बात समझ में आती है लेकिन यही गलती कोई संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति करे, तो संबंधित पार्टी की मंशा पर सवाल खड़ा होना ज़रूरी है।

रविवार को रांची में लोकमंथन-2018 के समापन समारोह में बोलते हुए लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने कहा, “डॉ अंबेडकर ने खुद ही कहा था कि 10 वर्षों के लिए आरक्षण होना चाहिए।” मीडिया में भी यही पंक्ति खबर की हेडलाइन बन गई, जबकि यह बात अधूरी सच्चाई है।

रांची में लोकमंथन 2018 कार्यक्रम में झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास के साथ लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन

दरअसल, सुमित्रा ताई ने बड़ी चतुराई से इस बात को छिपा लिया कि अंबेडकर ने 10 वर्ष के आरक्षण की समयसीमा की बात विधायिका (राजनीतिक) के आरक्षण के लिए कही थी, ना कि कार्यपालिका (नौकरियों) के आरक्षण के संबंध में। देश में राजनीतिक आरक्षण की व्यवस्था एससी/एसटी के लिए है। समीक्षा कर इसकी अवधि को बढ़ाया गया है। हालांकि, सुमित्रा ताई ने बाद में यह भी कहा कि वे आरक्षण की विरोधी नहीं हैं। फिर भी मीडिया को इस कथन में हेडिंग बनाने जैसी बात नहीं दिखी।

दरअसल, भाजपा लंबे समय से इस प्रयास में जुटी है कि आरक्षण का विरोध सिर्फ गैर आरक्षित ही नहीं, बल्कि आरक्षित वर्ग में आने वाले लोग भी करें। इसके लिए ऐसा दिखाने की कोशिश होती है कि आरक्षण का लाभ कुछ ही जातियों तक सीमित है। जबकि ओबीसी आरक्षण में साफ तौर से क्रीमी लेयर का प्रावधान है, जिसके हिसाब से 8 लाख सालाना आय वाले ओबीसी वर्ग के किसी भी व्यक्ति तथा सरकारी कर्मी/अधिकारी के बच्चे को आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता।

स्वाभाविक है कि वह लाभ उस वर्ग के दूसरे ज़रूरतमंद को मिलता है। वहीं एससी/एसटी आरक्षण में पाया गया कि इस वर्ग के बड़े अधिकारियों/नेताओं के साथ भी अब तक भेदभाव होता है।

गैर आरक्षित वर्ग में आने वालों को आरक्षण को लेकर मन में वैमनस्यता का भाव जगाने की जगह, उसके स्पिरिट को समझने की ज़रूरत है। यह सच है कि राजनीति इस मुद्दे का अलग-अलग तरीके से इस्तेमाल करती है लेकिन आरक्षण ने सही मायने में देश में क्रांतिकारी बदलाव लाने में अहम भूमिका निभाई है। इसे तब तक जारी रखना होगा, जब तक मौजूदा जाति व्यवस्था समाज में हावी रहेगी।

आरक्षण का विरोध करने वाले अक्सर यह भी कहते हैं कि गरीबी जाति देखकर नहीं आती, तो आरक्षण क्यों? जेएनयू के सामाजिक विज्ञान के प्रोफेसर डॉ विवेक कुमार ने बड़े ही सरल शब्दों में इसका जवाब दिया है, “आरक्षण कोई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है।”

इसे जाति के आधार पर देने का उद्देश्य हर वर्ग को उचित प्रतिनिधित्व और भागीदारी देना है। गरीबी को खत्म करने के लिए समय-समय पर सरकार द्वारा सैकड़ों योजनाएं लायी गईं। आज भी दर्जनों चल रही हैं, जिनमें आर्थिक आधार पर लोगों को लाभ मिलता है।

तथ्यों को गलत तरीके से पेश करके लोगों को गुमराह करना बेकार है। जाति खत्म करने के लिए तैयार होइए और प्रगतिशीलता की तरफ कदम बढ़ाइए, मैं आपके साथ खड़ा दिखूंगा।

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