उसी के उगाए अनाज पर पलते ज़ुबान
घोषित कर देंगे कि उसके हाथ में ये लाठी
पाकिस्तान प्रायोजित देशद्रोही है
जिससे देश की सुरक्षा को खतरा है
और सरकारी हाथों में इस लाठी को
घोषित कर देंगे देशभक्त।
निहायत ही बेवकूफ है यह किसान
जो इस उम्मीद में निकल पड़ा
कि दिल्ली सुनेगी उसकी पीड़ा,
अनजान है इस तथ्य से
कि दिल्ली सुनती नहीं, सूंघती है।
लटक जाता किसी वृक्ष की शाखा पर,
पहुंचने देता लाश की दुर्गंध दिल्ली तक,
खुद चलकर आती दिल्ली
लार टपकाते हुए उसके द्वार।
दिल्ली बहते आंसुओं की कीमत नहीं करती
पर बहते लहू की कीमत अच्छी दे जाती है
बुढ़ापे में कुछ तो काम आता अपने बच्चों के,
आखिर सरकारे किस लिए होती हैं
मौत पर मुआवज़ा देने के लिए ही तो होती हैं।
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फोटो स्त्रोत- फेसबुक