25 अप्रैल, साल 2015 की सुबह बाकि देशों के लिए धूप की सुनहरी किरण लाई थी लेकिन नेपाल के लोगों को आज भी 25 अप्रैल की सुबह भुलाए नहीं भूलती। सुबह तड़के आए तेज़ भूकंप से नेपाल की धरती थर्रा गई थी।
जैसे ही सुबह की पहली किरण से रात का अंधेरा छटा, चारों तरफ तबाही का मंज़र ही दिखाई दे रहा था। भारतीय सेना के जवान नेपाल पहुंचकर मलबे में दबे लोगों को बाहर निकाल रहे थे। भूकंप के बाद भारतीय सेना के जवान नेपाल पहुंचे थे। जो उस समय वहां भूकंप से सहमे लोगों के लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं थे। भारतीय सेना के जवानों ने भूकंप के बाद नेपाल में बचाव मिशन चलाया था, जिसे नाम दिया गया था “ऑपरेश मैत्री”।
आइए जानते हैं नेपाल की धरती पर सेना के इस कामयाब मिशन के बारे में-
महज़ 15 मिनट में भारतीय सेना ने शुरू किया मिशन-
25 अप्रैल की सुबह जैसे ही भारत सरकार को नेपाल में आए भूकंप की सूचना मिली, सरकार ने तुरंत इसकी जानकारी सेना को दी। सरकार से सूचना मिलने के बाद भारतीय सेना ने महज़ 15 मिनट में रिस्पॉन्स दिया और मिशन की तैयारी शुरू कर दी।
पड़ोसी मुल्क होने के कारण सेना ने इस ऑपरेशन को “ऑपरेशन मैत्री” का नाम दिया। थल सेना की ओर से तेज़ कार्रवाई करते हुए सबसे पहले जवानों को जेट विमान से नेपाल की धरती पर उतारा गया।
मिशन के पहले चरण में मलबे में दबे लोगों को बाहर निकालना था और भूकंप में घायल हुए लोगों को उपचार दिलाना था। वायु सेना ने अहम भूमिका निभाते हुए जेट विमान से 18 मेडिकल टीम नेपाल की धरती पर उतारी, जहां घायलों को प्रथम उपचार दिया गया।
वायु सेना ने उतारे अपने सबसे सक्षम विमान
नेपाल की राजधानी काठमांडू से 34 किलोमीटर की दूरी पर भूकंप का रिएक्टर स्केल मापा गया था। भूंकप की तीव्रता 7.8 रिएक्टर स्केल थी, जिससे लगभग नेपाल के विभिन्न शहर ज़मीदोज़ हो गए थे।
ऐसे में भारतीय थल सेना और वायु सेना ने संयुक्त मिशन के तहत वहां फंसे लोगों को बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। सबसे पहले राजस्थान के पोखरा को मुख्य एयरबेस बनाया गया, जहां से वायु सेना ने अपने सबसे सक्षम जेट विमान को राहत कार्य के लिए नेपाल भेजना शुरू किया।
वायु सेना ने ऑपरेशन मैत्री में सी-130जे हरक्यूलेस, सी-17 ग्लोबमास्टर ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट और सबसे सक्षम विमान मिग-17 को मोर्चे पर लगाया। इन विमानों से जहां थल सेना के जवानों को नेपाल के भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में चंद मिनटों में उतारा गया तो वहीं मिग-17 हेलीकॉप्टर से राहत सामग्री पहुंचाई गई।
गोरखा रेजिमेंट के जवानों की कुशल रणनीति
मिशन को कामयाब बनाने के लिए भारतीय सेना की सबसे निडर रेजिमेंट माने जाने वाली गोरखा रेजिमेंट की कुशल रणनीति भी काफी काम आई। काठमांडू से लगे भारत बॉर्डर के पास गोरखा रेजिमेंट के काफी जवान तैनात हैं, जो भूकंप के बाद मौके पर बचाव कार्य के लिए पहुंच गए थे।
जानकर हैरानी होगी कि ऑपरेशन मैत्री को कामयाब बनाने के लिए भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हो चुके सैन्य जवानों ने भी इस मुश्किल घड़ी में अपनी सेवाएं दी थीं। इन लोगों की मदद से ही सड़क से मलबा हटाने की तैयारी शुरू की गई थी ताकि सेना की गाड़ियां वहां आसानी से निकल सके।
इसके साथ ही ज़मीन में दबे लोगों को बाहर निकालने के लिए गोरखा रेजिमेंट के जवानों ने सबसे अहम भूमिका निभाई थी।
170 विदेशियों को भारतीय सेना ने निकाला सलामत-
भूकंप के बाद नेपाल में विभिन्न देशों के लोग फंस गए थे। जब इन देशों के दूतावास को नेपाल में आए भीषण भूकंप के बारे में पता चला तो इन देशों ने भारत सरकार से संपर्क साधना शुरू कर दिया।
स्पेन के कई सैलानी भूंकप में फंसे हुए थे, जिसके बाद स्पेन सरकार ने भारत सरकार से मदद की गुहार लगाई। भारत सरकार ने स्पेन को फंसे लोगों को सही सलामत निकालने का आश्वासन दिया था। राहत बचाव कार्य में भारतीय सेना ने 170 विदेशी लोगों को निकालकर सकुशल भारत पहुंचाया।
इसके बाद 5 हज़ार भारतीयों को भी सकुशल सेना ने भारत पहुंचाया था। हालांकि भूंकप के मलबे में फंसे विदेशी नागरिक मदद पहुंचने से पहले दम तोड़ चुके थे।
सीमा सुरक्षा बल ने पीड़ितों तक पहुंचाया खाना-
भारतीय सेना की सभी टुकड़ियां अपना-अपना काम बड़ी ज़िम्मेदारी से निभा रही थीं। ऑपरेशन मैत्री को कामयाब बनाने के लिए सेना ने जिस तरह का खांका खींचा था, सैन्य अधिकारी और जवान उसको सफल बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे। मिशन के शुरुआती चरण के तहत बचाव दल ने भूकंप में फंसे विदेशी लोगों को भारत और काठमांडू तक पहुंचा दिया था, वहीं नेपाल के पीड़ितों को खुले मैदान में सुरक्षित जगहों पर ले जाया जा रहा था। इसके बाद मोर्चा संभाला एसएसबी के जवानों, सशस्त्र सुरक्षा बल के जवानों ने। भारतीय बॉर्डर से काफी संख्या में सैन्य ट्रक भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में भेजने शुरू किए गए।
इन ट्रकों में पीड़ितों के लिए खाना और अन्य ज़रूरी सामान था। भारत सरकार की ओर से भूकंप पीड़ितों के लिए हज़ारों टन राशन भेजे गए। ये सारे राशन सड़क से होते हुए सैन्य वाहनों के ज़रिए पहुंचाए गए।
8 हज़ार से अधिक लोग मारे गए भूकंप में-
25 अप्रैल को आए भूकंप के बाद यूं तो भारतीय सेना ने कुछ ही देर में मौके पर पहुंचकर मोर्चा संभाल लिया था लेकिन इस खतरनाक भूकंप में फिर भी 8 हज़ार से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। कई लोग भूकंप आने के तुरंत बाद मलबे में दबकर मर गए तो कई लोग घायल होने के बाद दम तोड़ गए।
वहीं इस भयंकर भूकंप में करीब 5 हज़ार लोग घायल हो गए थे। बता दें कि 2015 तक 80 सालों में नेपाल में इतना भयावाह भूकंप नहीं आया था, जिसमें मरने वालों की संख्या आठ हज़ार से अधिक पहुंची हो। हालांकि भारतीय सेना के सफल प्रयासों की मदद से कई लोगों को बचाया जा सका।
नेपाल में आए इस भयानक भूकंप में नेपाल को आर्थिक रूप से काफी नुकसान हुआ था-
नेपाल की कई धरोहर इस भूकंप की भेंट चढ़ गई थी लेकिन जिस तरह भारतीय सेना ने नेपाल में भूकंप के बाद नाज़ुक मौके पर सफल ऑपरेशन चलाकर वहां फंसे हज़ारों लोगों को ज़िंदा बचाया था, उसने भारतीय सेना की ताकत और सेना के जवानों की कुशल रणनीति को दुनिया के सामने लाकर रख दिया था। इतना ही नहीं भारतीय सेना के इस सफल ऑपरेशन मैत्री को अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी काफी सराहा था।