इन दिनों #MeToo कैंपेन में जिन-जिन व्यक्तियों का नाम सामने आ रहा है उनकी तो मानो नींद ही उड़ गई है। हॉलीवुड एक्ट्रेस एलिसा मिलानो ने अपने साथ हुई यौन उत्पीड़न की घटना को ट्विटर पर #Metoo के साथ साझा किया था और यहीं से इस कैंपने का आगाज़ हुआ। देखते ही देखते यह हैशटैग इतना प्रभावशाली हो गया कि बॉलीवुड, मीडिया के कुछ प्रभावशाली लोग और सरकार के कुछ मंत्री तक का असली चेहरा सामने आ गया। विवेक अग्निहोत्री से शुरू हुए इस मामले में नाना पाटेकर, विकास बहल, उत्सव चक्रवर्ती, चेतन भगत, कैलाश खेर, आलोक नाथ और विदेश राज्य मंत्री MJ अकबर तक के नाम सामने आए हैं।
अधिकांश मीडिया संस्थानों और बॉलीवुड से जुड़े लोगों के खिलाफ कार्रवाई भी हुई है लेकिन सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार पद पर आसीन मंत्री जी या उनकी तरफ से किसी ने बयान देना तक उचित नहीं समझा। लगभग ऐसा ही सन्नाटा विपक्ष और मुख्य मीडिया में भी पसरा हुआ है।
चमचमाते कॉर्पोरेट ऑफिस की बड़ी-बड़ी बिल्डिंग में बैठने वाले ये लोग वेसे तो खुद को इंटलेक्चुअल, फेमिनिस्ट और पढ़ा-लिखा समझते है। खुद को महिलाओं के सबसे बड़े हमदर्द दिखाने की कोशिश करने वाले ये लोग उनका फायदा उठाने से भी नहीं कतराते। यह बताता है कि कुछ लोगों की मानसिक स्थिति कितनी विकृत है।
आज समाज की स्थिति ऐसी हो चुकी है जहां लड़की के साथ रेप होने पर इज़्जत के डर से पिता एफआईआर तक दर्ज़ नहीं करवाता। उसी समाज में आज जब लड़कियां बता रही हैं कि मेरे साथ गलत हुआ है, तब मान लीजिए कि एक स्वस्थ समाज के लिए यह कितना शुभ संकेत है।वर्कप्लेस में अधिकतर लोग यही सोचते हैं कि लड़कियों का शोषण करने पर वे किसी को बता नहीं पाएंगी लेकिन #MeToo ने इन भ्रांतियों को तोड़कर रख दिया है।
वर्कप्लेस में महिलाओं के साथ शोषण ना हो इसके लिए कानून भी है। इसके तहत हर संस्थान जिसमें दस से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं, वहां कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत अंदरूनी शिकायत समिति का होना अनिवार्य किया गया है।
हमें सामान्य मानवीय व्यवहार और ज़बरदस्ती के बीच में बनी एक छोटी सी सीमा को समझना होगा। अगर आप किसी जूनियर को पसंद करते हैं और उसके सामने प्यार का इज़हार करते हैं, तब यह आपका मानवीय व्यव्हार है लेकिन उसे प्रमोशन का लालच देकर उसकी तरक्की रोकने के लिए ज़बरदस्ती करते हैं तब यह यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है।
एक स्टीरियोटाइप सोच है हमारी कि महिलाओं की तरक्की का रास्ता मर्दों के बिस्तर से गुज़रता है। कई लोगों का मानना है कि नर्सिंग, होटल मैंनेजमेंट और बॉलीवुड जैसे क्षेत्रों में लडकियां तरक्की पाने के लिए ऐसा करती हैं। इन क्षेत्रों में काम करने वाली लड़कियों के लिए लोगों को ऐसी धारनाएं नहीं बनानी चाहिए।
मैं एक बात कहना चाहता हूं कि अगर औसत महिलाओं के लिए वर्कप्लेस सुरक्षित जगह नहीं है तब आप देश को आगे बढ़ने की कामना कैसे कर सकते हैं। महिलाओं की भागिदारी के बिना देश का विकास असंभव है, ठीक वैसे ही यदि ऐसी घटनाओं पर रोक नहीं लगाई गई तब वर्कप्लेस में महिलाओं की भागिदारी भी कम हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश ज़रूर करवा सकता है लेकिन आपके ज़हन में महिलाओं के लिए इज़्जत प्रवेश नहीं करवा सकता, यह काम आपको खुद ही करना होगा।