पूरे विश्व में महिलाओं के संदर्भ में वर्तमान समय यह संकेत दे रहा है कि महिलाओं पर जितना अत्याचार हुआ उतना हुआ, जितना सहना था उतना सहा और जब तक चुप रहना था तब तक वे चुप थीं लेकिन अब चुप नहीं रहेंगी। अब अत्याचारों एवं अत्याचारियों के खिलाफ खुलकर बोलेंगी। साल 2006 में अमेरिका से शुरू हुआ #MeToo कैंपेन इन्हीं सब उद्देश्यों के साथ आगे बढ़ रहा है।
#MeToo की शुरुआत एक अमेरिकी सामाजिक कार्यकर्ता तराना बुर्के द्वारा साल 2006 में की गई थी लेकिन यह चर्चा में तब आया जब अक्टूबर 2017 में एक अमेरिकी अभिनेत्री अलिसा मिलानो ने ट्विटर पर अपने यौन उत्पीड़न की बात को #MeToo के साथ दुनिया के सामने लाया।
#MeToo अब एक आंदोलन का रूप ले चुका है। भारत में यह फिर से एक बार चर्चा में है और इस बार इसकी शुरुआत तब हुई जब बॉलीवुड अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने अपने यौन उत्पीड़न की बात को सोशल मीडिया पर सार्वजनिक किया।
इसके साथ ही कई अन्य अभिनेत्रियों ने भी अपनी यौन उत्पीड़न की बात को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया है। कईयों ने तो बकायदा उनके नाम लेकर भी आरोप लगाए हैं जिन्होंने उनका यौन उत्पीड़न किया या करने का कोशिश की।
इस अभियान ने तो और ज़ोर तब पकड़ा जब पत्रकारिता से जुड़ी महिलाओं ने भी इस दिशा में अपनी बात सामने रखनी शुरू की। महिला पत्रकारों ने भी अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न को सार्वजनिक तौर पर सामने लाने का काम किया है, जिससे ऐसे लोगों के काले चेहरे सामने आने लगे हैं जो अपने-अपने काम के लिए काफी लोकप्रिय हैं।
ऐसे नामों में लेखक चेतन भगत से लेकर अभिनेता नाना पाटेकर एवं फिल्म निर्देशक विकास बहल के नाम शामिल हैं। इस दिशा में पत्रकारिता जगत के भी कई बड़े-बड़े नाम सामने आ रहे हैं।
हमें सलाम करना चाहिए उन महिलाओं को जिन्होंने ऐसे साहसपूर्ण काम किये हैं। हमें दाद देनी चाहिए उन महिलाओं को जिन्होंने हिम्मत करके, सारी हिचकिचाहट को तोड़कर अपने साथ घटी उन घटनाओं को सामने लाने की हिम्मत दिखाई।
दरअसल, यौन उत्पीड़न पर लगाम ना लग पाने का एक बड़ा कारण है उत्पीड़न के बाद भी महिलाओं का अपनी लोक-लाज को ध्यान में रखकर चुप्पी साध लेना। अगर महिलाएं मुखर होकर अपने साथ हुए अपराधों एवं अपराधियों को सबके सामने लाने लगे तो यह उनके लिए बहुत अच्छा होगा, क्योंकि अपराधी अक्सर यही सोचते हैं कि हम महिलाओं के साथ कुछ भी करके निकल जाएंगे, वे उसे बर्दाश्त कर लेंगी अर्थात अपनी लोक-लाज के कारण किसी के सामने कुछ नहीं बोलेंगी और यहीं पर वो बच कर निकल जाते हैं।
महिलाओं को ऐसे लोगों का पर्दाफाश करना ही होगा और इसमें दो राय नहीं है कि इसके लिए उन्हें हिम्मत दिखानी होगी, यह काम उनको करना ही होगा। अच्छी बात यह है कि इसकी शुरुआत हो चुकी है।
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नोट- लेख में लिए गए नाम मीडिया खबरों पर आधारित हैं