Site icon Youth Ki Awaaz

गांधी के अहिंसा के पाठ को हमें अपनी सोच और विचारों में भी अपनाना होगा

मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा के नाम से पुकारा जाने लगा और महात्मा का अर्थ समझने की कोशिश करेंगे तो हम पाएंगे कि महान और आत्मा का जोड़ है महात्मा, जिसका सीधा सा अर्थ है महान आत्मा।

आज जब हम केवल जिज्ञासु होने का बहाना लेकर आधी अधूरी जानकारी जुटाने की कोशिश करते हैं तो हम हर चीज़ में, हर विषय में उसके नुक्स ढूंढने लगते हैं। इस बात को हमें समझना होगा कि इस नुक्स निकालने की आदत और हर किसी की आलोचना करने वाली सोच कहीं हमें अज्ञानता की तरफ ढकेल तो नहीं रही है।

बचपन में जब गांधी जी को उनके पिता ने हरिशचंद्र की कहानी का प्ले दिखाया तो नन्हे गांधी का केवल एक प्रश्न था कि आखिर सब लोग हरिशचंद्र की तरह सच क्यों नहीं बोलते? आज के युग में जहां हर कोई अपने आप को हरिशचंद्र समझता है तो वही वो बिना कुछ समझे किसी के ऊपर, किसी भी तरह की टिप्पणी भी करने से पीछे नहीं हटता है। इस टिप्पणी की, इस आलोचना की, इस विरोध की हमें कुछ तो सीमा तय करनी होगी।

हमें पहले इस बात का भी तो जबाव देना होगा कि क्या हम उस काबिल भी हैं कि किसी व्यक्तिव की आलोचना कर सकें और क्या हमें उतना ज्ञान है कि हम उस व्यक्ति के बारे में कुछ कह सकते हैं।

लोकतंत्र में विरोध और आलोचना की अपनी जगह है लेकिन उस लोकतंत्र का उपयोग हमें किस तरह करना है शायद इसको समझने में हम असफल रहे हैं। गांधी जी का खुद कहना था कि शब्दों का कब किस प्रकार चयन करना चाहिए, इस बात का ख्याल हर व्यक्ति को रखना चाहिए और खुद को बेहतर बनाने के लिए कभी-कभी खामोश रहने की आदत भी डाल लेनी चाहिए।

वो जिस अहिंसा की बात करते थे उस अहिंसा का अर्थ केवल हथियार और लड़ाई तक सीमित रखना शायद उचित नहीं होगा।
अपनी सोच और विचार में हिंसा और अहिंसा का अर्थ समझने की आवश्यकता है। हम कहीं अपनी सोच को हिंसात्मक तो बनाते नहीं जा रहे हैं, जहां हम किसी के लिए कुछ अच्छा कहने से पहले उसकी आलोचना करना प्रारम्भ कर देते हैं। अहिंसा को हमें अपनी सोच और विचारों में भी अपनाना होगा।

आप उनके विचारों से या उनकी कुछ नीतियों से असहमत हो सकते हैं और इसका आपको अधिकार है लेकिन उस सोच और विचारधारा को बिना समझे ओछी टिप्पणी करना आपके हिंसात्मक रवैया का उदारहण प्रस्तुत करता है।

भारत की आज़ादी की खुशी के पलों में भी गांधी केवल इसलिए दुखी थे क्योंकि हिंसा से कुछ जगह अशांति का माहौल था।
भारत के संविधान का ड्राफ्ट पूरा होने के बाद जब उनकी राय पूछी गई तो उनका कहना था कि इसमें भारत के आम लोग, गरीबों और किसानों के लिए तो कुछ भी नहीं है। तब नागरिकों के मूल अधिकारों और सिद्धांतों को जोड़ा गया। विदेश से भारत लौटने के बाद उन्होंने भारत को समझने के लिए भारत को देखा था और महसूस किया था कि असल भारत कैसा है और उसकी ज़रूरतें कैसी हैं।

वो सोशल मीडिया का दौर नहीं था, जहां एक ट्वीट से व्यक्ति को जाना जाता था। उस वक्त उन्होंने केवल और केवल अपनी सोच और अपने विचारों से अपना नाम बनाया, जिसको भारत नहीं पूरी दुनिया सलाम करती है और अहिंसा दिवस के रूप में उनके जन्मदिवस को मनाती है।

अहिंसा की बात करने वाले बापू का अंत भले ही हिंसा के समर्थन से और हिंसात्मक सोच की वजह से हुआ हो लेकिन सच बात तो यह भी है कि उनकी सोच में हिंसा का एक कण भी नहीं था और उन्होंने मरते वक्त ‘हे राम’ ही कहा था, जो शांति और मर्यादा का आधार है।

आज वक्त की ज़रूरत है कि हम अपनी सोच को अहिंसा के रास्ते ले जाकर खुद को शांत बनाये और किसी व्यक्ति का विरोध करने के लिए पहले उस काबिल बने और काबिल बनने के बाद आलोचना और विरोध की सीमा तय करें ।

Exit mobile version