“‘रावण के दहन की खुशी’ या ‘राम की सेना के मरने का मातम’:क्या कहें इसे”~एस.हिंदुस्तानी
Sandeep Sen
मौका था असत्य,अभिमान एवं अन्याय के पर्याय पुरूष लंकाधीश रावण पर सत्य,स्वाभिमान एवं न्याय के पर्याय मर्यादा पुरूषोत्तम वनवासी श्रीरामचन्द्र के विजय के प्रतीकात्मक दर्शन का । राम की सहस्त्रों कलियुगी सेनाएं धू-धू करते हुए जल रहे रावण के पुतले का दर्शन कर आनंद की अनहद सीमा पर लहर रहे पताकों की लहर को अनुभव कर फूले नहीं समा रही थीं। चहुं ओर आनंद ही आनंद, राम नाम के जयकारे, किलकारियां, और भी न जाने क्या-क्या ! संपूर्ण वातावरण आनंदमय था । पर तभी अनायास एक ‘संयुक्त रावण’ (जी हां, संयुक्त रावण ही कहूंगा क्योंकि इस रावण की सर्जना में नाना प्रकार के सूक्ष्म-सूक्ष्म रावणी शक्तियों का योगदान है ) पंजाब के अमृतसर में अपनी ऐसी शक्ति का परिचय दे गया जिससे विजय का आनंद तो शून्य हो ही गया, साथ ही आनंदमय वातावरण भी क्षणभर में ही एक ऐसी गमगीनी में तब्दील हो गया जिसे सोचने मात्र से भी थकावट होने लगती है । दरअसल, विजयदशमी के अवसर पर अमृतसर में फिरोज़पुर और मनावला स्टेशनों के मध्य रेलवे लाइन के निकट रावण दहन का एक आयोजन किया गया था,जिसे देखने हजारों की भीड़ उमड़ी थी। जैसे ही पुतला दहन प्रारंभ हुआ,लोग अपनी-अपनी धुन में खो गए। तभी तकरीबन 90 किमी/घंटे की रफ्तार से दो समानान्तर पटरियों पर दौड़ रही दो ट्रेनों के नीचे भीड़ का एक ऐसा भाग आ गया जो कि सदा के लिए खो गया। गौरतलब तो ये है कि जिन ट्रेनों की वजह से ये दुर्घटना हुई, वे ट्रेनें ( ट्रेन से मेरा तात्पर्य उसमें सवार लोग और उसके चालक से है ) किसी भी तार्किक दृष्टिकोण से इसके लिए उत्तरदायी नहीं है। हालॉकि रेलवे बोर्ड के चेयरमैन आश्विनी लोहानी के मुताबिक ड्राइवर ने रेल हादसा को मद्दे नज़र रखते हुए रफ्तार को कम करने का भरसक प्रयत्न किया और उसे 90 किमी/घंटे से घटाकर 60-65 किमी/घंटे तक लाया । हां, कुछ हद तक रेल विभाग जरूर जिम्मेवार है पर ट्रेनें तो फक़त एक जरिया मालूम पड़ रही हैं इस हादसा का। अब यदि मैं इस दिल दहलाने वाली दुर्घटना के जिम्मेवार तत्व की चर्चा करूं तो उसे एक शब्द में कहा जा सकता है -“संयुक्त रावण ।” #. आइए दृष्टिपात करते हैं बारी-बारी से इस संयुक्त रावण की सर्जना के एकैक घटकों को उनके प्रतिशत योगदान के क्रम में :- 1.} दर्शनार्थी / लोग जो पुतला देखने पहुंचे थे : जैसा कि मैं पहले ही चर्चा कर चुका हूं कि कुछ लोग दहन प्रारंभ होते ही अपनी-अपनी दुनिया में लीन हो गए। ऐसा कहने से मेरा तात्पर्य है कि कुछ लोग वर्तमान रीति-रिवाज़ (फैशन कहें तो बेहतर रहेगा) के अनुसार जलते पुतले को तस्वीर या वीडियो के माध्यम से अपने फोन में कैद करने में लीन हो गए। साथ ही ज्यों-ज्यों आतिशबाजियों के फटने की आवाज़ ऊंची होती गयी,त्यों-त्यों लोग पुतले से दूर रेलवे लाइन की ओर सरकते चले गए। इन समस्त गतिविधियों के कारण उनमें मानसिक व्यस्तता बढ़ती चली गयी और वे इतने बदहवास हो गए कि उन्हें ट्रेन के गुज़रने के वक्त का अंदाज़ा नहीं रहा पाया। और फिर……. जबकि लोगों को सतर्क रहना चाहिए था कि वे पटरियों के पास हैं, पर उन्होंने सतर्कता नहीं बरतीं। 2.} आयोजक :- रेल संगठन के अधिकारियों ने स्पष्ट तौर पर कहा कि पटरियों के निकट हो रहे इस आयोजन के संदर्भ में आयोजक की ओर से उन्हें कोई सूचना नहीं मिली। साथ ही नगर निकाय ने भी स्पष्ट तौर पर कहा है कि आयोजक ने उनसे किसी भी प्रकार की कोई अनुमति नहीं ली। जबकि आयोजक को इन दोनों संगठनों की अनुमति के उपरांत ही आयोजन को अंजाम देना चाहिए था। और यदि उन्होंने ऐसा नहीं भी किया तो सुरक्षा हेतु पटरियों से थोड़े फासले पर कम से कम बांस अथवा लकड़ियों के बैरियर तो लगा ही देने चाहिए थे, पर ये भी उन्होंने नहीं किया । 3.} मुख्य अतिथि मिसेज कौर :- मुख्य अतिथि के रूप में नवजोत कौर आमंत्रित थीं जो कि तकरीबन एक घंटे की देरी से आयोजन-स्थल पर पहुंचीं। जिसकी वजह से दहन में भी विलंब हुआ और दहन एवं ट्रेन के गुजरने के समय के बीच दुर्भाग्य से फासला बहुत कम रह गया था। फलस्वरूप दुर्घटना की संभावना बढ़ती चली गई। 4.} प्रशासन-व्यवस्था :- जिस तादाद में भीड़ उमड़ी थी उस हिसाब से प्रशासन व्यवस्था द्वारा पुलिसकर्मियों को तैनात करने में कसर देखी गयी अर्थात् भीड़ एवं नियंत्रक पुलिसकर्मियों का अनुपात संतुलित नहीं रहा। जो कि प्रशासन व्यवस्था की जिम्मेवारी थी। 5.} सरकार और रेल विभाग :- आज जब ये घटना घट चुकी है तो सरकार और रेल विभाग दोनों सफाया दे रहे हैं कि आयोजक ने अनुमति नहीं ली थी। मगर आयोजक की ये लापरवाही तो आज वर्षों से चली आ रही थी। स्थानीय मतानुसार आज से नहीं बल्कि ये कार्यक्रम लगभग बीस वर्षों से परंपरा में था। उस समय कहां गायब थे ये दोनों विभाग? उस समय भी तो सवाल करने चाहिए थे न कि बिना अनुमति के आयोजन क्यों ? पर ऐसा कुछ भी नहीं किया जाता आ रहा था। #. आइए अब जरा नजर डालते हैं दुर्घटना में स्वाहा हुए मानव संसाधनों के विश्लेषित रूप पर :- • हादसा में मृतक एवं घायल के रूप भुक्तभोगी बने अधिकांशत: लोग ‘उत्तर प्रदेश और बिहार’ के प्रवासी कामगार हैं । • हादसा में मृतकों एवं घायलों की संख्या क्रमश: 61 और 60 के आसपास बतायी जा रही है । ( इस बात की स्वीकृति में तनिक भी दुविधा नहीं है कि इन आंकड़ों के साथ राजनैतिक छेड़छाड़ किया है चूंकि आंखों देखा हाल आंकड़ा प्रदर्शित आंकड़ों से कहीं अधिक है। और छेड़छाड़ हो भी क्यूं न साहब, आखिर मंत्री जी के सर भी तो हैं जिम्मेवारी ) • हादसे में मृतकों एवं घायलों के रूप में पहचाने गए लोग मुख्य रूप से औसतन 20-25 वर्ष की आयु वर्ग के युवा हैं। • हादसे में मृतकों की प्रतिशतता :- पुरूष – 78-80 ℅ महिला – 5-7 ℅ बच्चे – 15-17 ℅ # राहत कार्य एवं मुआवजा :- देश के विभिन्न संगठन अपने-अपने स्तर से पीड़ितों की मदद हेतु यथासंभव प्रयासरत हैं । पंजाब सरकार ने मृतकों के परिजनों को 5-5 लाख रू देने का ऐलान किया है। साथ ही केंद्र सरकार ने भी मृतकों के परिजनों को 2-2 लाख एवं घायलों को 50-50 हजार रू मुआवजा के तौर पर प्रदान करने का ऐलान किया है । # निष्कर्ष व सीख :- एक पुरानी कहावत है ‘सतर्कता गयी दुर्घटना घटी’ जो कि प्रत्यक्ष रूप से यथार्थ होती नज़र आ रही है। अत: हमें स्वयं के स्तर पर सदैव सर्वथा सतर्क रहने की आवश्यकता है। सतर्कता का तात्पर्य स्वयं के समय-बोध से है। अर्थात् समय, परिस्थिति एवं स्वयं के मध्य सामंजस्य ही सतर्कता है। और सबसे अहम भी यही है कि दुनियादारी के समस्त प्रयासों एवं इंतज़ामों के बावजूद हम समय और परिस्थिति के साथ स्वयं को स्थापित करते रहें । ईश्वर से करबद्ध प्रार्थना है कि दुर्घटनाग्रस्त परिजनों को धैर्य, शांति एवं शक्ति प्रदान करे! जय हिन्द ! ~ एस हिन्दुस्तानी