क्या आप सीना ठोक कर कह सकते हैं कि आप सुरक्षित हैं? हाल ही में हुए लखनऊ एनकाउंटर को देखते हुए अब सड़क पर निकलना सुरक्षित नहीं लगता है? पता नहीं कौन कब कहां से आ जाये और हमें ठोक कर चला जाये। कुछ भी हो सकता है। जब देश की पुलिस ही हत्यारी बन जाये तो जनता की सुरक्षा का सवाल ही नहीं उठता है। राज्य सरकार ने “ऑपरेशन क्लीन” के तहत पुलिस को जो हथियार थमाए हैं उन हथियारों का निशाना अब जनता बनती जा रही है।
लगता है प्रदेश के मुख्यमंत्री जी ने कुछ ज़्यादा ही पुलिस को खुली छूट दे रखी है, जिसका खामियाज़ा निर्दोष जनता को उठाना पड़ रहा है। निर्दोष नागरिकों को मारने का अधिकार आपको किसने दिया है?
जनता को सुरक्षा देने की जगह पर आप जनता को ही दिन दहाड़े मरवा रहे हैं। विवेक तिवारी हत्याकांड अगर लखनऊ के पॉश इलाके में ना होकर कहीं दूर किसी देहात क्षेत्र में हुआ होता तो इतना मुद्दा उठता ही नहीं। पुलिस मामले को रफा-दफा कर देती। किसी को कानों कान खबर तक नहीं होती।
देश के अंदर ऐसे काफी केस सामने आ चुके हैं जिनमें पुलिस पर उंगली उठी है, चाहे वो बलात्कार का केस हो या कोई फर्ज़ी एनकाउंटर का केस। सरकार को अब इस दिशा में सोचने की ज़रूरत है। जनता को विश्वास दिलाना होगा कि हम जनता के लिए हैं।
कुछ लाइनें प्रस्तुत हैं-
याद है मुझे वो हर लम्हा और वो पल
चेहरे थोड़े धुंधले हैं पर वो कर्म याद रह जाते हैं
खाकी के अंदर बैठे वो इंसान
जब किसी चौराहे पर बीस रुपए में बिक जाते हैं।
पान के खोके हो या मूंगफली के ठेले
या हो छोटी सी कोई चाय की दुकान
मुफ्त की चीज़े समझकर हाथ इनके बढ़ जाते हैं।
पैसा मांगो तो आंखें दिखाकर गरीबों का हक मार जाते हैं
ईमानदारी का पाठ पढ़ाते, खुद बेईमानी कर जाते हैं
याद है मुझे वो हर लम्हा और वो पल
चेहरे थोड़े धुंधले हैं पर वो कर्म याद रह जाते हैं।
शराब छोड़ने की नसीहत देने वाले
खुद शराब पीकर पूरे दिन ड्यूटी बजाते हैं
याद है मुझे वो हर लम्हा और वो पल
चेहरे थोड़े धुंधले है पर वो कर्म याद रह जाते हैं।
गुंडे हो या कोई अपराधी हो या फिर हो कोई देशद्रोही
इस देश में बेखौफ होकर घूम रहे हैं
इनको पकड़ने के लिए जाते हैं और कमीशन से पेट भर कर आते हैं।
यही कमीशन का पेट जनता पर भारी पड़ जाता है
जनता को सुरक्षा देने वाले
खुद जनता को गोली मार जाते हैं
याद है मुझे वो हर लम्हा और वो पल
चेहरे थोड़े धुंधले हैं पर वो कर्म याद रह जाते हैं।
हालांकि सभी पुलिस अफसरों को दोष देना भी गलत होगा, क्योंकि हर पुलिस अफसर एक जैसे नहीं होते हैं। आज भी देश में ऐसे काबिल पुलिस अफसर हैं जो देश के लिए पूरी ज़ोर लगा देते हैं, अपनी जान पर खेल जाते हैं, अपनी ईमानदारी की छाप देश की जनता के दिलों में छोड़ जाते हैं।
सलाम है ऐसे पुलिस अफसरों को मगर कुछ भ्रष्टाचारी पुलिस अफसरों की वजह से ईमानदार, कर्मठ पुलिस अफसर दिखाई नहीं पड़ते। एक कहावत है, “गेंहू के साथ घुन भी पिसता है”, यही हाल है पुलिस प्रशासन का भी, “कुछ बेईमानी के बीच ईमानदारी छिप जाती है”।