आई. ए. एस. परीक्षा में पिछले कुछ वर्षों से आई. आई. टी, आई. आई. एम. और मेडिकल के छात्रों का दबदबा बढ़ा है। ये ऐसे छात्र हैं जिन्हें बड़ी आसानी से किसी भी मल्टीनेशनल कम्पनी में अच्छे पैकेज पर नौकरी मिल जाती है।
ऐसे में थ्री इडियट फिल्म में रैंचो ( रणछोड़ दास चांचड़ ) की कही बात याद आती है, जिसमें वह कहता है कि जब एम. बी. ए. करके बैंक में ही नौकरी करनी थी तो फिर बीटेक करने की क्या जरुरत थी।
यह बात उचित भी प्रतीत होती है। आई. आई. टी., आई. आई. एम., एम्स जैसे संस्थानों से निकले छात्रों पर सरकार उन्हें संसाधन एवं उचित पठन-पाठन हेतु काफी पैसे खर्च करती है।
आई. ए. एस., आई. पी. एस. जैसे पदों पर चयनित हो जाने के बाद बीटेक, एमबीबीएस, एम. बी. ए. जैसी डिग्रियां किसी काम की नहीं रह जाती एवं इन विद्यार्थियों अपने अध्ययन किये हुए विषय का कौशल भी लगभग समाप्त हो जाता है।
वैसे यह व्यक्ति का अपना चुनाव है कि वह क्या बने, क्या करे, कौन सी डिग्री हासिल करे। पर मुझे यह बहुत उचित प्रतीत नहीं होता है।
छोटे-मोटे इंजीनियरिंग, मेडिकल कालेजों से डिग्री हासिल करने वाले छात्र किसी अन्य पेशें में जाये तो बात समझ में आती है कि उन्हें उचित प्लेसमेंट नहीं मिल पाता; अतएव वह दूसरा विकल्प चुनते हैं।
पर देश के सबसे उत्कृष्ट संस्थानों से पढने वाले छात्रों की प्रतिभा निरर्थक चली जाय तो यह उचित नहीं।
एक और बात सभी के लिए जो कोई भी स्नातक की डिग्री कला, विज्ञान, अभियांत्रिकी आदि के बाद आई. ए. एस. बनते हैं, उनके साक्षात्कार में सबके सब यह बात जरूर कहते हैं कि इस सेवा में आने के बाद देश और समाज के लिए बहुत कुछ करने का अवसर मिलता है। इसलिए मैंने आई. ए. एस. को चुना है।
पर मुझे लगता है सेवा से ज्यादा मेवा के लिए यह चुनाव होता है। इस नौकरी में जो रुतबा मिलता और पैसे की भी कोई कमी नहीं होती है। वह ज्यादा आकर्षित करती है।
यदि ईमानदारी से जाँच हो तो मुझे लगता है कि दो-चार प्रतिशत को छोड़कर अधिकतर अधिकरियों की सम्पति आय से अधिक मिलेगी।
इनका सेवा का बयान भी नेताओं के सेवा वाले बयान से ज्यादा कुछ नहीं है।
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