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प्रलय किसी के भावनाओं के आधीन नहीं

आज मैं दुखी हूँ। ये सम्भव है कि अपने आप को कट्टर नारीवादी कहने वाले समाज को मेरी बात कांटे की तरह चुभ जाए। या किसी सम्प्रदाय विचारधारा को मेरी बात बेमतलव लगे। पर विपत्तियां किसी के भावनाओं के आधीन नहीं है।

बढ़ते भूमण्डलीय तापमान (Global Warming) का जलवायु परिवर्तन (Climate Change) पर हो रहे दुषप्रभाव का वैज्ञानिक अध्ययन के पश्चात आईपीसीसी (IPCC – Intergovernmental panel on climate change) ने रिपोर्ट जारी कर दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रलय को रोकने के लिए अब हमारे पास मात्र 12 वर्ष है। अगर जल्द से जल्द बढ़ते ग्रीनहाउस गैसों को नियंत्रित नही किया गया तो 2030 तक इसके प्रभाव से अनियंत्रित प्राकृतिक आपदा, अत्यधिक गर्मी, समुद्र सिमा में 10cm की बृद्धि, जीवो का विलुप्तीकरण और खाद्य पदार्थों में भारी गिरावट जैसी समस्याओं से पूरी दुनिया विनास के कगार पर होगी।

इन हालातों की जानकारियों से भरी चेतावनी जैसी रिपोर्ट जारी होने के बाद अधिकांश लोगों में कोई बदलाब देखने को नहीं मिल रहा। जहां शहरों में लोग अपनी व्यक्तिगत व छोटी-छोटी समस्याओं को लेकर परेशान है वही गांवों की अधिकांश आवादी को इस रिपोर्ट की भनक भी नही है। ऐसे में मीडिया की भी विफलता महसूस होती है जो कि अत्यंत दुःखदायी है।

मैं तमाम संगठनों से कहना चाहता हूँ कि इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कि आप किस समुदाय के है या आप किसके हक की लड़ाई लड़ रहे है। अगर किसी तरह की प्राकृतिक आपदा आयी है तो सभी के समान रूप से क्षतिग्रस्त होने की संभावनएं है। प्रकृति की नाराजगी क्या रंग लाती है ये अब किसी से छिपा नही है। जीवन अनमोल है और आजादी हक पर अपनी बहुमूल्यता सिद्ध करते करते हमें ये भी नही भुलना चाहिए कि ये सारी सुख सुविधाएं पूरे ब्रह्मांड में एक ही स्थान पर संभव है “पृथ्वी” जो कि हमारे ही वजह से खतरे में है। मैं ये नही कह रहा कि आप अपनी मत की लड़ाई छोड़ दीजिए पर समस्त जीवन के लिए हमें अपनी मन की लड़ाई को आपस मे मिलकर सुलझाना ही होगा।

जहाँ एक पत्ता के हिलने से मौसम बदलता हो वो है प्राकृति। पर इसबार मौसम ने कुछ भयानक करवट लिया है जिसको स्थिर करने के लिए एक एक इंसान की योगदान की आवश्यकता है।

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