Site icon Youth Ki Awaaz

पहाड़ी नदी सी

‘तुमसे किसी को भी डर लगेगा’???

सवाल मे जवाब था कि…..

 

‘डर।

मुश्किल सवाल है। धैर्य से  समझाने की कोशिश करना । सिम्पल बात है, लेकिन सामने से दिखती नहीं। देखो। मेरे जैसी भयानक तरीक़े से इंडिपेंडेंट लड़की कि जो अपने मूड और मिज़ाज का हाल मौसम तक को अफ़ेक्ट नहीं करने देती। कि जो बारिश को मन का मौसम समझती है। कि जो जानती है कि सब कुछ उसकी भीतरी दुनिया से कंट्रोल होता है और उस हिसाब से जीती है। जो अपनी ख़ुशी और अपने ग़म के लिए ख़ुद से रेस्पॉन्सिबिलिटी लेती है…मेरे जैसी लड़की…जब ज़रा सा किसी  के साथ वक़्त बिताती है। देखतीहै को अपना सिर  टिकाती है उसके कंधे पर और कहती है एक उसाँस भर के…मैं ख़ुश हूँ तुम्हारे साथ…तो वो डर जाता है…मेरी  ख़ुशी का कारण बनने से…ये इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी है कि उसके कंधे सोच के ही दुखने लगते हैं। मुझे  लगता है कि आज ख़ुशी है तो कल ग़म भी होगा। वो मेरे  ख़ुशी ग़म किसी का कारण नहीं बनना चाहता। मैं  लड़की नहीं, नदी हूँ । पहाड़ी नदी…फ़िलहाल तो मैैं  कहीं नहीं रुक सकती। बहुत ज़िंदगी, कई शहर देखना है मुझको  तो थमना है  थोड़ा। ठहरना होगा । एक नदी जैसी लड़की के ठहरने की अंतिम जगह समंदर ही होता है। और हर कोई  समंदर नहीं होता कि तुम्हें  समेट कर कह सके। ये तुम्हारा घर है। तुम यहाँ रह सकती हो। हमेशा के लिए।मैं बहुत मज़बूत हूँ । मेरे क़रीबी लोगों को मेरे टूटने का डर लगता है कि मुझे  सम्हालने के लिए उन्हेंं  ज़्यादा मज़बूत होना पड़ेगा। ये जो अपनी ज़िंदगी इतने कटघरों में बाँट के जीती हूँँ , हर सही ग़लत का क्षण क्षण हिसाब लगाते हुए,  कि कााँधे का ये बोझ ज़रा सा कम करना बहुत मुश्किल है। अपने आज़ादगी  के स्याह में जब घुल कर जो मैं ये लिखती हूँ  क़िस्सा कोई…. तो कौन मेरे लिए  सूर्य बन जलेगा ये सवाल  आता है ज़हन में  । इतना आसान नहीं होता।मेरा  प्रेम साँस लेने की जगह भी छोड़ता है? भला मुझे  किनारे पर से बैठ कर देखा भी नहीं जा सकता, ऐसा घातक आकर्षण है मुझ में। मुझसे  दूर रहना ही श्रेयस्कर है। तो जब तक चाँदनी रात में  होने की कलकल ध्वनि सुनी थी, वही घाट पर बैठ कर लालटेन की रौशनी में किताब पढ़ने को जी चाहा था मेरा । लेकिन सुबह की धूप में मुझे  देख कर मैं भी चौंक जाओगे  मेरे  प्रेम में अवश होना पड़ेगा। और हर व्यक्ति मेरी तरह कंट्रोल फ़्रीक नहीं होता, लेकिन सब मेरी तरह धार  में बह भी नहीं सकते। इसलिए वे डरते हैं। चपेट  में आने से।  प्रेम को ज़रा भी महसूसने से।  क़रीब आने से। ‘समझ के क्या ही होगा। थोड़े ना बदल जाऊँगी कोई शांत झील या जलकुंड में कि कोई भी नहा ले। ऐसे ही ठीक है। शहर शहर का क़िस्सा सुनना कोई बुरा तो नहीं है। और अंत में होगा ही कोई सागर। जहाँ जा के ठहर सकूँगी मैं। तो फिर उसके पहले जितना भी भटकाव हो। ठीक है। लेकिन ऐसा भी क्या डरना। डूब जाना हमेशा मर जाना थोड़े होता है। कंट्रोल करके डाइव भी तो मारते हैं लोग। डूबने के बात उतराना भी तो होता है। ‘लग तो रहा है। डर लगता है मुझे  मैं इतनी ख़ुश रहती हो मेरे साथ। मुझे मेरी आदत  बनने से डर लगता है।’

‘अलविदा कह के जाना। अचानक से ग़ायब  हो जाना’

‘अलविदा कह के जाना सम्भव नहीं है, ऐसे सिर्फ़ लौटना होता है।

 

Exit mobile version