कविता- मेरी कविता है प्रिया मेरी- कवि शिवम् सिंह सिसौदिया ‘अश्रु’
मेरी कविता
है प्रिया मेरी
मै उससे क्या छिपाऊँ,
हृदय के सब भाव ही मेरे
प्रकट हैं उसके आगे,
फिर न जाने क्यों छिपाती,
है वो मुझसे भाव सारे
झूठ कहती
छल है करती
ज़िन्दगी मेरी है जो,
मेरी कविता
है प्रिया मेरी,
है मेरी ज़िन्दगी वो !
हृदय के एहसास से
आ जाती जो थी कलम में,
कलम से फिर उतर कर
पन्ने पे वो जाती ठहर,
मुझपे कर अधिकार वो
सीने पे मेरे शयन करती,
मुझसे कहती है वो
उसपे
ना मेरा अधिकार कोई
मुझसे कटती
दूर हटती
ज़िन्दगी मेरी है जो
मेरी कविता
है प्रिया मेरी,
है मेरी ज़िन्दगी वो !!
कभी लगकर गले से
वो दर्द सारे बाँटती थी,
और मेरे आँसुओं को
पोंछती थी हाथ से,
मेरे जीवन की सहाया
संगिनी मेरी सहेली,
आज बनती अजनबी है,
बात हर मुझसे छिपाती,
अब किसी ही और को
समझा है उसने अपना लेखक
छीन किसने
मुझसे ली है
ज़िन्दगी मेरी है जो,
मेरी कविता
है प्रिया मेरी,
है मेरी ज़िन्दगी वो !!!
मेरी कविता
है खुशी मेरी,
है मेरी बन्दगी वो !
मेरी कविता
है प्रिया मेरी,
है मेरी ज़िन्दगी वो !
कवि शिवम् सिंह सिसौदिया ‘अश्रु’