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कविता: ” भाग बिहारी भाग”।

 

मुबारक हो आपको

आपके शहर की नयी सुबह,

जहाँ तीव्रता में ऊँची आवाज़

मगर समाज के नज़रिये से पुकार अब

ठेले पर सजी फल, सब्ज़ीयों को खरीदने,

पक्षियों की चहचहाहट को

प्रतिस्पर्धा के लिए चुनौती देने का

दोहरा आमंत्रण हवा में प्रवाहित नहीं करेगी;

 

जहाँ ताले लग जाएंगे

तालों के कारोबार पर,

रात में सड़कों पर दौड़ता ख़ौफ़

अब अपने पैर समेट लेगा,

अपराध मुक्त हो जाएगा आपका शहर|

 

अपने जिस्म निचोड़ कर

पसीने की जिन बूंदों से

आपके घरों की ईंटे जोड़ी हैं

उन्हें वापस अपने साथ ले जाने

की ज़िद की दहलीज से

अपने जिस्म घसीट कर

वापस ले जा रहे हैं|

गलती हमारी ही थी

जो आपके देश को अपना मान बैठे|

 

जा रहे हैं

अपनी रिंकिया को

उसके सपनों के साथ

अपने कन्धों पर लादकर,

अपनी सेजल, रेणुका का ख्याल रखना|

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