कविता- “जब याद तुम्हारी आती है”
- भारी भारी सब कुछ लगता,
कुछ करने को जी ना करता |
जब याद तुम्हारी आती है,
जब याद तुम्हारी आती है ||1|| - कुछ किये अधूरे वादे हैं,
दिल में तेरी जो यादें हैं |
ये हर पल ही तड़पाती हैं
जब याद तुम्हारी आती है ||2|| - अब हुई रोशनी भोर हुआ,
रवि का प्रकाश चहुँ ओर हुआ |
पीड़ा सुबहा नित लाती है,
जब याद तुम्हारी आती है ||3|| - पंछी कलरव सब ओर करें,
ये सारे मिलकर शोर करें |
यह बात भी ना क्यों भाती है,
जब याद तुम्हारी आती है ||4|| - ना दिन कटता ना साँझ ढले,
धीरे धीरे ये वक्त चले |
साँसें भी थम सी जाती हैं,
जब याद तुम्हारी आती है ||5|| - तन्हाई ने पकड़ा दामन,
हूँ भीड़ में मगर अकेलापन |
यह शाम रोज़ घबराती है,
जब याद तुम्हारी आती है ||6|| - एक घना अँधेरा आता है,
जो पलकों पर छा जाता है |
रातें भी नहीं सुहाती हैं,
जब याद तुम्हारी आती है ||7|| - ये अन्जाना सा साया है,
मेरे पीछे चल आया है |
यह देख रूह डर जाती है,
जब याद तुम्हारी आती है ||8|| - जाने की कहाँ तैयारी है,
जो सज गई याद तुम्हारी है |
मुझको भी सँग ले जाती है,
जब याद तुम्हारी आती है ||9|| - तेरी यादें मुझ सँग आईं,
दूजी दुनिया में हैं लाईं |
हर दिक् यह गीत सुनाती है,
जब याद तुम्हारी आती है ||10||
शिवम् सिंह सिसौदिया “अश्रु”
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
सम्पर्क- 8602810884, 8517070519