मनहरण घनाक्षरी
धोखे के सजा साज,
जिसे कहे सब राज,
उससे हारे आज,
प्रीति सब खोई है|
पिघले पाषाण नहीं,
मिले न ईमान कहीं,
द्वेष आज हँस रहा,
प्रीति अब रोई है ||
होंय न ये कष्ट दूर,
इनमे रहूँगा चूर,
दुख मेरा समझे जो,
मिलत न कोई है |
घाव दिल के हैं सभी,
मिटेंगे न अब कभी,
नीर से दृगों के हि,
पीर सब धोई है ||
-कवि शिवम् सिंह सिसौदिया ‘अश्रु’