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हरियाणा इनेलो में चाचा-भतीजा चौटाला की लड़ाई काफी रोचक है

कभी भारत की  शीर्ष राजनीति के पुरोधा रहे पूर्व उपप्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी देवीलाल की विरासत पर लड़ाई की बिसात ‘सूत ना कपास-जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा’ के तर्ज पर अब चौराहों पर आ बिछी है। इसे शै दे रहे हैं खुद देवीलाल के वंशज।

हरियाणा प्रदेश में वर्तमान सत्ताधारी दल भाजपा के प्रति लोगों का विकर्षण, काँग्रेस की आंतरिक लड़ाई तथा किसी अन्य विकल्प के अभाव के बीच इनेलो–बसपा के सामयिक गठबंधन ने एक आशा की नई किरण हरियाणा के राजनैतिक क्षितिज पर प्रष्फुटित की थी। परन्तु बकरी को कहां हजम होते हैं धड़ी बिनोले? चने के खेत में थोड़ी सी हरियाली क्या दिखी, काटने वाले दराती लेकर आपस में ही भिड़ने लगे।

अक्टूबर माह में चौधरी देवीलाल के जन्म दिवस पर गोहाना रैली में भारी संख्या में इनेलो के समर्थक मौजूद थे। पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला की उपस्थिति में ही उनके पौत्र एवं लोकसभा सांसद  दुष्यंत चौटाला के पक्ष में लगे नारों ने पार्टी सुप्रीमो को उद्वेलित होने को मजबूर कर दिया। नतीजतन अनुशासनहीनता पनपाने के आरोप में दुष्यंत चौटाला तथा उनके छोटे भाई दिग्विजय चौटाला की पार्टी पदों से निलंबन  के साथ जवाब तलबी भी की गई।

इसके फलस्वरूप पार्टी के अंदर खाने चल रही चाचा–भतीजा की मुख्यमंत्री कुर्सी हथियाने की लालसा और एक दूसरे की जड़ें काटने को बिछाई बारूदी सुरंग आम जनता के सामने आ गई।

क्या है विवाद की जड़?

हरियाणा में जेबीटी अध्यापक मामले में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला अपने बड़े पुत्र अजय सिंह चौटाला के साथ दस वर्ष की सज़ा काट रहे हैं। उनकी अनुपस्थिति में पार्टी को चलाने का दायित्व इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला ने अपने छोटे पुत्र अभय सिंह चौटाला  को सौंपा हुआ था। अजय सिंह चौटाला के बड़े पुत्र दुष्यंत चौटाला अपने छोटे भाई दिग्विजय सिंह चौटाला, जो इनेलो की स्टूडेंट विंग ‘इनसो’ के सर्वेसर्वा हैं, के साथ मिलकर दिन रात एककर इनेलो को युवा वर्ग से जोड़ने में काफी हद तक सफल रहे हैं।

अधेड़ उम्र में राजनीति में कदम रख चुके अभय सिंह चौटाला की छवि लोगों में आक्रामक ज़्यादा रही है, इसलिए दुष्यंत चौटाला की सौम्यता एवं सादगी में युवाओं को स्वर्गीय देवीलाल की ‘जननेता’ की उभरती छवि अधिक आकर्षक लगी और प्रदेश के युवा वर्ग को दुष्यंत के रूप में अपना नेता नज़र आया। नतीजतन कारवां बढ़ता गया और युवाओं को दुष्यंत का कद मुख्यमंत्री के पद के काबिल लगने लगा। इसी मध्य बहुजन समाज पार्टी से हुए गठबंधन ने इनेलो की जीत की आस को और पुख्ता कर दिया।

पार्टी सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला तथा अजय सिंह चौटाला की गैर-मौजूदगी से इनेलो में आई रिक्तता के चलते एवं खुद के लिए पैदा हुए  गर्मजोशी के माहौल में दुष्यंत को भी लगने लगा कि आगामी 2019 के विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होने का उनका सपना एक हकीकत में भी तब्दील हो सकता है। जन सभाओं में भी दुष्यंत समर्थक उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने लगे। इसी प्रोजेक्शन ने अभय चौटाला को चौकन्ना कर दिया और वो अपने आक्रामक रुख के बलबूते पार्टी सुप्रीमो सीनियर चौटाला को अपने प्रतिद्वंद्वी दोनों भतीजों दुष्यंत एवं दिग्विजय के कदों को छोटा करवाने के प्रयास में फिलहाल तो सफल होते नज़र आ रहे हैं।

शब्द  बाणों से चल रही है लड़ाई

अपने-अपने समर्थकों की रैली कर चाचा-भतीजा बिना नाम लिए ही खुले रूप में एक दूसरे पर शब्द बाणों की लगातार बौछार कर रहे हैं। मीडिया को माध्यम रख कर भी तंज कसे जा रहे हैं तथा अपने आप को इनेलो का सच्चा वारिस सिद्ध करने का एकमात्र लक्ष्य सामने रखा जा रहा है, पार्टी हित कहीं गौण हो गया लगता है।

29 अक्टूबर की चरखी दादरी जनसभा में अभय सिंह चौटाला ने बिना नाम लिए अपने भतीजे दुष्यंत चौटाला को चेताया, “कई साल पहले एक षड्यंत्र के तहत पार्टी को तोड़ने के लिए रणजीत सिंह चौटाला को मुख्यमंत्री की कुर्सी का सब्जबाग दिखाया गया था, आज उसी राह पर कुछ लोग पुनः पार्टी को तोड़ने का कुप्रयास कर रहे हैं परन्तु आगामी चुनाव में उनका भी वही हश्र होगा जो रणजीत सिंह का हुआ था। ऐसे लोग चुनाव के बाद हाशिये पर चले जायेंगे।”

इसका उसी दिन जवाब देते हुए भतीजे दुष्यंत चौटाला ने यमुनानगर में अपने समर्थकों की सभा में कहा, “कुछ लोग इनेलो पार्टी व संगठन को कमज़ोर करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन उनके मंसूबों को कभी कामयाब नहीं होने देंगे। दादा जी (पार्टी सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला) जो भी फैसला करेंगे, उन्हें उनका हर फैसला मंज़ूर होगा। परन्तु षड्यंत्रकारियों की इच्छा अनुरूप किसी भी कीमत पर पार्टी सुप्रीमो के कन्धों को न तो झुकने देंगे और न ही उनकी नीतियों को कमज़ोर पड़ने देंगे।”

पार्टी की अनुशासन समिति द्वारा दुष्यंत को दिए गए कारण बताओ नोटिस पर टिप्पणी करते हुए दुष्यंत चौटाला ने आशंका भी व्यक्त की और कहा, “मुझे दिए गए नोटिस की ड्राफ्टिंग से मुझे बहुत आघात पहुंचा है, क्योंकि नोटिस में जिन शब्दों और शैली का इस्तेमाल किया गया है, वह शब्दावली और उसके लिखने का अंदाज मेरे दादा जी का नहीं हो सकता। नोटिस के लहज़े से किसी साज़िश की बू आ रही थी।”

30 अक्टूबर की कार्यकर्ता सभा में सांसद दुष्यंत चौटाला ने एक शायर के अंदाज़ में स्पष्ट संकेत दे दिए कि वे राजनीति में ज़िंदा रहने के लिए टकराव से भी नहीं डरेंगे।

“उसूलों पर आंच आये तो टकराना जरूरी है ,

जिन्दा हैं तो जिन्दा नज़र आना जरूरी है।”

इसी चाचा-भतीजे के वाकयुद्ध  एवं सत्ता रार में अजय सिंह चौटाला की पत्नी तथा डबवाली से इनेलो की विधायक नैना चौटाला अपने दोनों पुत्रों दुष्यंत तथा दिग्विजय के पक्ष में आ खड़ी हुई हैं। अपने पुत्रों को क्लीन चिट देते हुए नैना ने अपनी चिर परिचित चुनरी चौपाल में कहा, “अगर अच्छे संस्कार पर चलना अनुशासनहीनता होती है , तो मैं चाहती हूं कि हर माँ को ऐसे संस्कार देने चाहिये और हर बेटे को अनुशासनहीनता करनी चाहिए। मेरे दोनों पुत्र मेरे द्वारा दिए गए संस्कारों के प्रतिफल स्वरुप ही पूरे अनुशासन में चलने वाले हैं।”

क्या होगा रार का हश्र

यहां यह बताना उचित होगा कि चौटाला परिवार में राजनैतिक विरासत की लड़ाई कोई नई नहीं है। आज से लगभग तीन दशक पूर्व भी यही घटनाक्रम घटित हुआ था, जब स्वर्गीय चौधरी देवी लाल ने अपनी राजनैतिक विरासत की पगड़ी अपने बड़े पुत्र ओमप्रकाश चौटाला के सिर पर रख दी थी और छोटे पुत्र रणजीत सिंह ने बगावत कर दी थी। हालांकि देवीलाल के पार्टी पर ‘स्ट्रॉंग होल्ड’ के चलते रणजीत सिंह की बगावत एक फ्यूज़ कारतूस की भांति ठुस होकर रह गयी थी। आज रणजीत सिंह शून्य होकर राजनीति के क्षितिज में किसी अज्ञात चमकहीन तारे की तरह टिमटिमाने को मजबूर हैं।

वर्तमान में भी यह चाचा (अभय चौटाला) तथा भतीजे (दुष्यंत चौटाला) की राजनैतिक विरासत की लड़ाई खुद को ‘ओमप्रकाश चौटाला’ सिद्ध कर दूसरे को ‘रणजीत सिंह’ बनाकर रसातल में भेजने हेतु ही लड़ी जा रही है। कौन ‘रणजीत सिंह’ और कौन पार्टी सुप्रीमो ‘ओमप्रकाश चौटाला’ बनेगा यह तो वर्तमान तीरंदाजी के प्रतिफल से ही तय होगा। आज तीर कमान से निकल कर काफी दूर चला गया है, निशाने पर कितना सटीक लगता है, यह तो आने वाला समय ही तय करेगा।

हां पुरानी स्थिति और वर्तमान स्थिति में इतना फर्क ज़रूर है कि उस समय के पार्टी सुप्रीमो चौधरी देवीलाल की साख और पकड़ इतनी मजबूत थी कि पब्लिक में उनके फैसले का विशेष विरोध नहीं हुआ था। आज पार्टी सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला के जेल में होने के कारण पार्टी में तथा परिवार में उनकी पकड़ उतनी मज़बूत नहीं रह गयी है कि अपने फैसले को बिना किसी विरोध के एकतरफा लागू करवा सकें।

भले ही दुष्यंत या अन्य कोई यह कहता रहे कि दादा जी जो मर्ज़ी फैसला करें उन्हें उनका हर फैसला मंज़ूर होगा मगर वास्तिवकता यह प्रतीत हो रही है कि जिस किसी के विरोध में विरासत का फैसला आएगा उसी के ही बागी होने की संभावना राजनैतिक हलकों में प्रकट की जा रही है। राजनीतिक विचारक इस विरासत की लड़ाई को आर-पार की लड़ाई मान रहे हैं। अब इस लड़ाई में जो सिकंदर होगा, विरासत की पगड़ी उसको और उसकी आगामी पीढ़ी को हस्तांतरित होती जाएगी तथा चूकने वाले को या तो सत्ता रेस से बाहर होना होगा या लम्बे अरसे की लड़ाई लड़नी होगी।

वर्तमान हालात में दो संभावनाएं दृष्टिगोचर हो रही हैं। विचारक दोनों परिस्थितियों में ही इनेलो की सत्ता प्राप्ति हेतु वांछित जीत पर संदेह प्रकट कर रहे हैं। अगर पार्टी दो फाड़ हो जाती है तो दोनों ही पक्ष दो अंको की भी सीटें ले पाएंगे इसमें शंका ही शंका है। अगर पारिवारिक दबाव या किसी अन्य समझौते के तहत दोनों पक्ष एक ही झंडे तले चुनाव लड़ते भी हैं तो भी अपनी-अपनी डफली और अपने-अपने राग अलापेंगें और एक दूसरे को हल्का करने के प्रयास में दूसरे के उम्मीदवारों का अंदर खाने हराने का भी पूर्ण प्रयास करेंगें। एक अन्य शंका यह भी प्रकट की जा रही है कि पार्टी के विभाजन के बाद मायावती की बसपा का इनेलो के साथ गठबंधन रह पायेगा या टूट जायेगा? कुछ भी हो इतना तो तय लगता है कि इनेलो के अच्छे दिन आने के आसार सिकुड़ते अवश्य जा रहे हैं।

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