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हमारे ही बौद्धिक दुर्बलता का नतीजा है, अमृतसर हादसा।

पुरे देश में विजयदशमी का उत्साह अपने जोरों पर थी, और हो भी क्यों ना हिंदुओ का सबसे बड़ा महोत्सव माने जाने वाला त्यौहार दुर्गा पूजा अपने आखरी पड़ाव पर जो था। वैसे तो यह त्यौहार हिंदुओ का है किंतु बदले समय के साथ सभी समुदाय के लोग बड़ी उत्साह और प्रेम के साथ मेले में इसका हिस्सेदार बनते है खास कर विजयदशमी के दिन ‘रावण वध’ का साक्षी सभी बनना चाहते है चाए खुद के भीतर के रावण का दहन करे या ना करे। खैर बात कर रहा था मैं विजय दशमी की मेरे शहर में भी उत्साह अपने चरम उत्कर्ष पर था, मैं अपने मित्र के साथ गोलगप्पे का पहला स्वाद लिया था कि मेरे मोबाइल पर आए न्यूज़ नोटिफिकेशन ने मुझे स्तब्ध कर दिया, समझ नहीं आ रहा था इसपर किस प्रकार की प्रतिक्रिया दूँ, जब गोलगप्पे वाले ने मेरा हिस्सा देने के लिए आवाज लगायी तो तब जाकर मेरा ध्यान उस खबर से हटी,’खबर थी अमृतसर हादसे की’ मैं झट से अपने मित्र को बताया वहाँ खड़े तमाम लोगों ने जब ये खबर सुनी तो सबके मुख से बस, अफ़सोस और दुख के शब्द ही निकले। चुकी मैं देश के पहले रेल कारखाना वाले शहर जमालपुर का रहने वाला हूँ और यहाँ के अधिकांश लोग रेलवे में अपनी सेवा देते आ रहे है तो रेलवे के साथ हुई हर छोटी बड़ी घटना पर हमारी नजर अन्यो से अधिक होती है। घर आने के उपरांत जब टीवी चैंनलों को खोला तो जानकारी प्राप्त हुई की लोग रेलवे ट्रैक पर चढ़ कर रावण दहन देख रहे थे, क्योंकि वहाँ से रावण दहन साफ़ दीखता है और भीड़ जमा होने की जानकारी रेलवे को नहीं थी जिसके वजह से यह हादसा हो गया। अब जो हो गया उसे कौन टाल सकता है लेकिन ऐसा भी तो नहीं की उसे टाला नहीं जा सकता था ? मीडिया रिपोर्ट को माने तो आपको ज्ञात होगा की रावण दहन का आयोजन करने की प्रशासन से इजाजत नहीं थी, फिर भी एक पार्टी के नेता से सम्बन्ध रखने वाले व्यक्ति ने अपनी दबिश कायम रखने के लिए आयोजन कराया था और तो और इस आयोजन में पूर्व विधायक वा पंजाब के मौजूदा पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री की पत्नी नवजोत कौर सिद्धू मुख्य अतिथि के रूप में शामिल थी। उनके देर से आने को भी हादसे की एक वजह मानी जा रही है, किन्तु सच्चाई यह है कि हमारी बौद्धिक दुर्बलता ही हमें ऐसे हादसों का शिकार बनान्ति है। मौलिक अधिकार पर राजनीति करते नेता और रौब दिखाते हम तो मिल जाते है किंतु मौलिक कर्तव्यों का क्या ? क्या कभी किसी ने आपको इसके बारे में बताने का कष्ट किया या किसे नेता ने आपको मौलिक कर्तव्यों को निभाने का ज्ञान दिया ? नहीं ना ? क्यों इंसानी फितरत ही ऐसी है लेना आसान लगता है लेकिन कुछ देना बहुत कठिन। नियमो को तोड़ कर आखिर क्या जरुरत थी लोगों को रेलवे ट्रैक को बंधक बनाने और हजारों लोगों के जान को खतरे में डालने के लिए ? क्या यह हमारी बौद्धिक दुर्बलता नहीं की यह जानते हुए भी की वह के सक्रीय रेल मार्ग है उसपर खड़ा रहना खतरे से खाली नहीं, इससे ना केवल उनकी जान जायेगी अपितु रेल यात्रा कर रहे लोगों की भी जान को खतरे में डाल रहे है। जिन नेताओं को जिम्मेदार व्यक्तियों को गिरफ्तार करने और लोगों को न्याय दिलाने की बात करनी चाहिए वो आरोप और प्रत्यारोप कर रहे है आखिर क्यों ? हमारी बौद्धिक दुर्बलता के कारण वो जानते है कि इस तू तू मै मै में असल मुद्दा कही खो जाएगा और बीजेपी वनाम कांग्रेस मुद्दा हो जाएगा। आम जनता फिर नेताओं के भुलावे में आएगी कोई रात को सराब की बोटल ले खुस हो जाएगा, कोई जाति का मक्खन लगा रोटी खाकर और कोई धर्म का टोपी पेहेन या तिलक लगा फिर उन्ही नेताओं को वोट देकर अपना आका बना आएगा जो आम जनमानष की सुरक्षा को नजर अंदाज कर अपने वीआईपी कल्चर का रॉब दिखलाएगा। फिर कोई हादसा होगा, फिर चीत्कार होगी लेकिन कोई जिम्मेदार नहीं होगा।

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