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मीटू अभियान बस कहानी नहीं

 

किसने सोचा था एक पूर्व भारतीय अभिनेत्री (तनुश्री दत्ता) भारत आएंगी, यहां अभिनेता नाना पटेगर पर 2008 में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान बेवजह गलत तरीके से छुने का आरोप लगाएगी. और ये मुद्दा इतना बड़ा हो जाएगा कि देशभर की महिलाएं उनके साथ खड़ी हो जाएगी.

हालांकी यह पहली बार नहीं है जब मी टू अभियान के तहत महिलाएं अपने उपर हुए दुर्व्यवहार के बारे में लिख रही हैं। इसकी  शुरुआत 2006 में सिविल राईट एक्टिविस्ट तराना बर्क ने की थी। उन्होंने अपने साथ हुए यौन शोषण के बारे में लिखा और बांकी महिलाओ को लिखने के लिए प्रेरित किया था।

हमारे देश का में महिलाओं को पुरूषों से कम माना जाने का एक भावी इतिहास रहा है। फिर चाहे ये भेदभाव शिक्षा के छेत्र में हो या खेल के। हम जिस समाज में रहते हैं वहां ना तो महिलाओं को अपने तरीके से जीने की आज़ादी है ना ही वो किसी तरह के फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं। ऐसे में जब एक महिला किसी पुरूष पर यौन शोषण का आरोप लगाती है तो सबसे पहले उसे चुप कराने की हर मुमकिन कोशिश की जाती है। उसके चरित्र से लेकर जीवन का एक एक पन्ना उधेड़ दिया जाता है और अंत में  महिला को अवसरवादी घोषित कर गिया जाता रहा है। लेकिन इस बार  ऐसा कुछ नहीं हुआ। जब एक महिला (तनु श्री दत्ता) को चुप कराने की कवायत की जा रही थी तभी कई महिलाए सोशल मीडिया पर अपने साथ हुए यौन शोषण के बारे में लिख मैदान में उतर आई। और अब भारत में #Metoo अभियान जोर पकड़ चुका है।

इसके जरिए फिल्म,पत्रकारिता और अन्य क्षेत्र की महिलाओ ने अपने साथ हुए यौन शोषण का खुलासा किया है। नतीजा यह हुआ की अबतक  सिनेमा जगत से नाना पाटेकर, विवेक अग्निहोत्री, विकास बहल, पीयुष मिश्रा, आलोक नाथ, रजत कपूर, सुभाष घई, भूषण कुमार, साजिद खान और पत्रकारिता से कई प्रसिद्ध पत्रकार जैसे विनोद दुआ, एम जे अकबर जैसे कई नामों पर आरोप लग चुके हैं।

ताज्जुब की बात तो यह है की इस अभियान को लेकर एक शिक्षित व्यक्ति से लेकर  आम इंसान  तक की सोच एक जैसी है। भारत में जब मी टू की शुरूआत हुई तो कई लोगों ने इसकी आलोचना करते हुए कहा कि मी टू से कुछ नही होगा, इसके विरोध में हीटू चलाए गए। लेकिन अब जब पूर्व  विदेश राज्य मंत्री एम जे अकबर को 16  महिलाओं पर लगाए यौन शोषण के आरोप के बाद अपने पद से इस्तीफा देना परा तो सबके जुबान पर जैसे ताला लग गया ।

जिस देश में लैंगिक भेदभाव का इतिहास इतना पुराना व गहरा रहा है उस देश की  महिलाओ ने साबित कर दिया की वो अब चुप नही रहेंगी।  फेसबुक पर लिखा एक छोटा सा #Metoo कोई कहानी नहीं बल्कि एक आंदोलन है हर उस पुरुषों के खिलाफ जो अब तक महिलाओं का शोषण करते आ रहे थे।

मीटू से होने वाले बदलाव.

भारत में लिंग आधारित भेदभाव व्यापक स्तर पर काम करता आ रहा है। जन्म से लेकर मृत्यु तक, शिक्षा से लेकर रेजगार तक हर क्षेत्र में लैंगिक भेदभाव नज़र आता है। आज के समय में देखा जाए तो महिला सशक्तिकरण वास्तविकता से ज्यादा किताबों, कागजो में प्रगति कर रही है। हालांकि इसमें कोई दो मत नहीं है कि महिलाओं की स्थिति में सुधार हो रहा है। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तीन तलाक पर रोक, सबरीमाला में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति, वैवाहिक बलात्कार जैसे गंभीर मुद्दों पर विचार करना है। लेकिन अभी भी लड़कियों/महिलाए अपने साथ हुई यौन दुर्व्यवहार, यौन शोषण के खिलाफ बहुत खुल कर नहीं बोल पाती है। मी टू अभियान में लिखने वाली लड़कियों को पढ़कर उन शेष महिलाओं में भी अपने लिए बोल पाने की हिम्मत आएगी।

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