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पत्नि का साथ देना जोरू की गुलामी नही। (करवाचौथ)

देखो बेटा ये तुम्हारा शादी के बाद पहला करवाचौथ का व्रत है, कोई भूलचूक नही होनी चाहिए इसका ध्यान रखना, सुधा चुप चाप सर हिलाये सुन रही थी, रोहन भी माँ की बातों पे एक टक ध्यान लगा के सुन रहा था,
देखो बेटा इस व्रत का बहुत महत्व है,इसे रखने से सुख-सौभाग्य मिलता है और दांपत्य जीवन में प्रेम बरकरार रहता है.औऱ ये तो तुम्हारा पहला करवाचौथ है उम्मीद है इसे तुम मन से निभाओगी, रोहन भी सारी बातों को बहुत ध्यान से सुन रहा था।
जी मम्मी मैं आपको शिकायत का मौका नही दूँगी,
तभी रोहन को फ़ोन आया,
हाँ राहुल बोल क्या हुआ,
रोहन हम सब दोस्त आज पार्टी कर रहे है तू भी आजा, तू नही आया तो मजा अधूरा रह जायेगा,
आज पार्टी किस खुशी में औऱ आज तो करवाचौथ है है,

हाँ तो तू तो ऐसे बोल रहा है रोहन की तूने भी भाभी के लिए व्रत रखा है, ये व्रत तो औरते रखती है हमारी लंबी उम्र के लिए हम थोड़े ना रखेंगे, तू आजा वैसे भी अपन सब का काम तो रात को पड़ेगा जब चाँद निकलेगा,

रोहन असमंजस में था क्या करूँ, उधर सुधा रोहन की बातें सुनकर हताश हो गयी, हताश इसलिए नही हुई थी कि रोहन व्रत में उसका साथ देगा क्योंकि उसे पता था बहुत ही कम लोग होते है जो पत्नी का इस तरह साथ दे, पर वो चाहती थी कि आज तो रोहन साथ रहे,कम से कम सारा दिन नजरों के सामने रहेगा तो जल्दी वक़्त कट जाएगा,

क्या करूँ जाऊँ या नही, अगर गया तो सुधा को बुरा लगेगा और नही गया तो सब मुझे जोरू का ग़ुलाम कहेंगे, हाँ ये सच है कि मैंने भी आज व्रत रखा है सुधा के लिए, ऐसा जरूरी तो नही की सिर्फ पत्नी को अपना प्यार साबित करना पड़े पति के लिए ये हक़ हमें भी होना चाहिए पर माँ तो मुझे पता नही क्या क्या सुना देगी, वैसे भी मैंने कभी यहाँ पापा चाचू को ये व्रत रखते नही देखा, मैं उन्हें बताउगा तो अजूबा लगूँगा,क्या करूँ, बीमार पड़ने का नाटक कर लेता हुँ।

अरे रोहन तुम लोगों का नाश्ता लग गया है आजा बाहर सबके साथ नाश्ता करले,

ओहो अब ये नई मुसीबत मैं तो घर मे भी बच नही पाउँगा क्या कहूँ सबको,

नही माँ मुझे सर दर्द हो रहा है नाश्ता करने का मन नही है थोड़ी देर सोने जा रहा हुँ, ऑफिस से छूट्टी ली है मैंने कोई मुझे परेशान मत करना,

सुधा जाओ रोहन के सर में दर्द है चाय बना दो, उसे अच्छा लगेगा,

सुधा चाय लेकर गयी,
रोहन आप चाय पी लीजिये आपको अच्छा लगेगा,

अरे सुधा, आओ न बैठो, देखो आज तुम दिन भर भूखी प्यासी रहोगी,ज्यादा काम मत करो थक जाओगी,

कोई बात नही आपकी लंबी उम्र के लिए व्रत किया है हार थोड़े ना जाऊँगी,
लीजिये आप चाय पी लीजिये,
नही मुझे मन नही है तुम वापस ले जाओ,
क्यों मन नही है,
बोला ना, वो एक बात बताऊ,आज मैंने भी,,,
सुधा ओ सुधा जल्दी आओ,
जी मम्मी आई, मैं जाती हूँ आप सो जाओ चाय पी लेना
ठीक है,

औऱ रोहन ने चाय बेसिन में डाल दी जैसे तैसे सुबह का दिन तो बहाना बनाकर निकल गया, अब सब खाने की जिद करेंगे, ऐसा करता हूँ थोड़ी देर बाहर चला जाता हुँ,
माँ मैं ऑफिस जरूरी काम से जा रहूँ थोड़ी देर मे आ जाऊँगा,
कुछ खा कर चला जा बेटा,
नही मुझे देर हो रही है,

जैसे तैसे उसने शाम तक का वक़्त निकल लिया, रात होने को आई थी सब पूजा की तैयारियो में व्यस्त थे, रोहन भी आ चुका था और सबके साथ उनकी मदद में लगा था,

तभी आवाज आयी चाँद निकल आया सभी छत पर आ जाओ, रोहन की खुशी का ठिकाना नही था, पर सब क्या सोचेंगे ये सोचकर अपनी खुशी अपनी पत्नी के साथ भी वो बाँट नही पा रहा था,

सब ऊपर छत का रुख किये सबने चाँद को देखकर अपना व्रत पूरा किया, पर रोहन तो कुछ कहने वाला नही था, अब तो भूख से हाल बेहाल था उसका, अब तो चक्कर भी आने लगे थे, तबियत गड़बड़ाने लगी थी, तभी माँ ने पूछा मुझे शक हो रहा है तूने सुबह से कुछ नही खाया, जब भी हमने कोशिश की तू टाल गया, तूने व्रत किया है ना

रोहन की खामोशी काफी थी उसका राज बयान करने के लिए और धकधक भी हो रही थी कि सब उसे क्या समझेंगे,

पर सुधा की आँखों मे आँसू आ गए उसने कल्पना भी नही की थी कि रोहन उसके साथ व्रत भी कर सकता है बस एक बात बुरी लगी कि मुझे बताया क्यों नही,

माँ ने कहा तुझे पता है रोहन जब पहली बार मैंने तेरे पापा के लिए व्रत रखा था तो बहुत मन था मेरा की तेरे पापा भी रखे मेरे लिए व्रत आख़िर पति पत्नी दोनों को एक दूसरे की जरूरत होनी चाहिए , हमेशा पत्नी ही क्यों साबित करे अपना प्यार पर मुझे वो खुशी कभी नही मिली पर आज तुझे देखकर मन भर आया, सुधा बेटा तुम बहुत भाग्य शाली हो तुम्हे रोहन जैसा पति मिला जो तुम्हारे हर कदम पर साथ है, आओ सब साथ मिलकर व्रत तोड़ते है।

रोहन ने कहा माँ मुझे लगा था आप सब लोग मुझे जोरू का गुलाम कहोगे ,और सुधा को पता नही क्या क्या सुनाओगे, अगर मुझे पता होता की आप सब लोग मेरा प्यार निभाने में मेरा साथ दोगे तो मैं सुधा के साथ मिलकर आज के एक एक पल को बहुत अच्छे से बिताता, पर कोई बात नही अगली बार जरुर करूँगा।

रोहन जैसे बहुत से पति होंगे हमारे देश में जो पत्नी के लिए भी कुछ करना चाहते होंगे बेशक़ पर हमारी सामाजिक सोच उन्हें वही रोक देती है, पत्नि का साथ देना मतलब जोरू का ग़ुलाम होना नही बल्कि अपनी वो जिम्मेदारी पूरी करना है जो सिर्फ पति से है।
धन्यवाद
सोनिया चेतन कानूनगों

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