Site icon Youth Ki Awaaz

गुजरात में रेप पहला और आखरी नहीं, लड़ाई पितृसत्तात्मक समाज से हो

गुजरात में उत्तर भारतीयों पर हमले की खबर देश को शर्मसार कर रही है। जात, धर्म के बाद अब लड़ाई भाषा और क्षेत्र के आधार पर लड़ी जा रही है। इस अमानवीयता का भविष्य डराने वाला दिखाई दे रहा है। पहले महाराष्ट्र से यूपी-बिहार के लोगों को भगाया गया। अब ‘गुजराती’ इस काम को अंजाम दे रहे हैं। इस बार प्रभावित लोगों में मध्य प्रदेश के लोग भी शामिल हैं। ये हिंसा गुजरात के साबरकांठा ज़िले में 14 माह की बच्ची से रेप की घटना के बाद से शुरू हुई। जिसमें बिहार का युवक आरोपी है। रेप की घटना पहली और आखिरी नहीं है।

लेकिन पिछले 10 दिनों में जो कुछ हुआ वो देखते हुए गुजरात सरकार या पुलिस प्रशासन क्यों सोता रहा? यह प्रश्‍न सभी के सामने खड़ा है। या इसे जानबूझकर तूल दिया गया? उत्तर भारतीय विकास परिषद का दावा है कि अब तक 50 हज़ार श्रमिक गुजरात छोड़ चुके हैं। राज्य में तनाव और उत्तर भारतीयों में खौफ का माहौल अब भी बना हुआ है।

बात महिलाआें पर बढ़ते अत्याचार, बलात्कार क्यों और किस मानसिकता के कारण हो रहे हैं उस पर होनी चाहिए। हालांकि भाजपा और काँग्रेस की सरकारें आज तक बलात्कार से मुक्ति को सिर्फ फांसी की सज़ा के रूप में देखती आयी है। इस अपराध के लिए फांसी की सज़ा का प्रावधान भी कर दिया गया। इस प्रयास के बावजूद भी महिला और बच्चियों के साथ अत्याचार, छेड़छाड़ और रेप की घटनाएं कम होने की बजाय लगातार बढ़ती जा रही हैं।

गुजरात की घटना से प्रदेश क्या देशभर में गुस्सा होना चाहिए, लेकिन गुस्सा विशेष राज्यों के लोगों पर उतारना इन घटनाओं का हल नहीं है। ये घटनाएं तब तक नहीं रुकने वाली हैं जब तक हम पितृसत्तात्मक समाज को चुनौती नहीं देंगे। हमें महिला आज़ादी और बराबरी की बात सिर्फ सड़क पर नहीं बल्कि घरों में भी करनी होगी। साबरकांठा की घटना के बाद सालों से रह रहे बिहारी, गुजरातियों को बाहरी लगने लगे हैं और यूपी के उत्तर परदेशी और एमपी के मध्य परदेशी।

दूसरी तरफ रोज़गार की तलाश में लोगों का पलायन कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। ग्रामीण युवक काम करने शहर की ओर आ रहे हैं, लेकिन शहरों ने भी उन्हें बेकार समझ लिया है। यह बेकारी उन्हें दूसरे राज्यों में जाने के लिए मजबूर कर रही है। गुजरात की ही बात करें तो राज्य में अन्य प्रदेशों से आए करीब 80 लाख श्रमिक काम कर रहे हैं जो हीरा, कपड़ा, टाइल्स, केमिकल, ऑटो, फार्मा व लघु व मध्यम मैन्युफेक्चरिंग यूनिटों में काम करते हैं। सूरत में करीब 20 लाख, अहमदाबाद में 17 लाख, मोरबी में 3 लाख, मेहसाणा में दो लाख से अधिक कामगार हैं। इतनी बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों से लोगों को पलायन उनके गृह राज्यों की सरकारों पर बड़ा प्रश्‍न खड़ा कर रहा है। साफ है कि जो जहां का मूलनिवासी है उसे अपने ही प्रदेश ने सड़क पर भीख मांगने छोड़ दिया है। मतलब राज्य सरकारें अपने लोगों को काम नहीं दे पा रही है।
इस हिंसा में मप्र भी प्रभावित हुआ है। मप्र की राजधानी में आयोजित विश्‍व का सबसे बड़ा कार्यकर्ता सम्मेलन याद आ रहा है। पिछले महिने 25 सितंबर को भोपाल में आयोजित भाजपा कार्यकर्ता महाकुंभ में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने दिया वो बयान झूठा दिखाई देने लगा है जिसमें उन्होंने कहा था कि कांग्रेस की सरकार ने मप्र को बीमारू छोड़ दिया था, भाजपा ने 15 सालों में इसे विकसित किया। अब हम आने वाले 5 सालों में प्रदेश को समृद्ध बनाएंगे। लेकिन सरकारी आंकड़ें और रिपोर्ट इस विकास को ठेंगा दिखा रही है। राज्य में रेप-अत्याचार-हिंसा, कुपोषण, किसान आत्महत्या, बेरोजगारी, इलाज का अभाव जैसे तमाम मामलों में विकास ने काफी प्रगति की है। रेप और कुपोषण के मामलों में तो मप्र देश में नंबर वन राज्य है।
एनसीआरबी की साल 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 28,947 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना दर्ज की गई। इसमें मध्यप्रदेश में 4882 महिलाओं के साथ रेप किया गया। यह संख्या अन्य राज्यों की तुलना में सर्वाधिक है। वहीं कुपोषण से मौत की बात खुद मप्र सरकार स्वीकार चुकी है। सरकारी आंकड़े कहते हैं कि मध्यप्रदेश में कुपोषण से हर दिन 92 बच्चों की मौत हो जाती है। महिला और बाल विकास विभाग ने विधानसभा में बताया था कि प्रदेश में जनवरी 2016 से जनवरी 2018 के बीच लगभग 57 हजार बच्चों की मौत कुपोषण से हुई।
वर्तमान में सभी राजनीतिक दल के नेता जात, धर्म, भाषा, क्षेत्र आधारित मुद्दों को उठाकर, बहस गरमा रहे है इस शोर शराबे में आम लोगों की समस्याएं बीच समंदर में कही डूबती नजर आ रही है। गुजरात में उत्तर भारतीयों पर हमले के पीछे भी राजनीतिक साजिश की बू आ रही है।

Exit mobile version