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क्या आज भी किसी जाति विशेष को दलित कहना सही है। क्या अब इसे वाकई बदलने की जरूरत है

हमारे समाज के दो समुदाय सवर्ण और दलित है।आप सभी ने सुना और पढ़ा होगा दलितों का शोषण हुआ था जो सवर्णों ने किया था। पर क्या आज दलित केवल शोषित हो रहा है।और सवर्ण केवल पोषित हो रहा है।क्या सवर्ण का शोषण नही हो रहा है।क्या दलित का पोषण नही हो रहा है। तो वो दलित जो पोषित हुये है, वो क्या अब भी दलित कहलाने लायक है।और जो सवर्ण शोषित हुये है वो क्या आज भी सवर्ण कहलाने लायक है।

आज समाज मे आज भयावह स्थिति है जो भयानक है अगर कोई खुद को ब्राह्मण या राजपूत बताता है तो वो अमीर निर्दयी पोषित मान लिया जाता है। और जब कोई खुद को हरिजन बताता है तो उसे गरीब ,बेवस,शोषित उससे समाज सहानभूति रखता है,चाहे वो आर्थिक और मानसिक तौर पर कितना भी मजबूत क्यों न हो पर वही सवर्ण कहे जाने वाले.गरीब के साथ क्यों नही होता है

क्या तथाकथित दलितों के नाम से जो पोषित है। दलित हट जाना चाहिए और जो तथाकथित सवर्ण के साथ जुड़ जाने की आवश्यकता नही है।

किसी भी ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य को आप जाति से पुकारते है तो कोई बात नही पर वही किसी दलित को उसकी जाति से पुकारा जाना गैरकानूनी है। पर क्यों..

जाति जब बनी थी,तब जाति का मतलव पेशा हुआ करता था । और उसी पेशे को करने वालों लोगों के समूह को एक निश्चित जाति से जोड़ा या पुकारा जाता था।

पर आज किसी का कोई निश्चित पेशा न होने के कारण जाति होने का तो सवाल ही उठता पर पेशे के साथ-साथ पुराने समय मे रीति-रिवाज, पहनावे, खान-पान, भी बदल गये ।और आज एक जाति होने.का आधार यही कारण है।

किसी को जाति से पुकारने मे उस व्यक्ति को अपमान महसूस क्यों होता बुरा क्यों लगता है। क्योंकि उसने अपने दिमाग मे ये बैठा रखा है। कि मेरी जाति का छोटी है मै नीचा हूँ ।उसने कभी ये नही सोचा इसपे तर्क नही दिया पर कैसे इसके वजाय उसने इसको अपना शोषण मान लिया और बाद मे हथियार बना लिया ।

विडंबना देखिये जब कभी सरकारी सुविधाओं की बात आती है। तब ये चीख चीख कर कहते है अरे.हम शोषित है हम कमजोर है आर्थिक,मानसिक,शारीरिक, सभी तरहों से पर यही बात कोई और कह दें तो वो अपमानित कर रहा है। जब समाज मे मान ,प्रतिष्ठा,या मन्दिर का महन्त बनने की बात आती है तब कहते हम सवर्णों से किस बात मे कम है हम मन्दिर के पुजारी क्यों नही बन सकते तब इनको खुद मे किसी भी प्रकार मानसिक,शारीरिक, आर्थिक अपंगता नही दिखती है न कमाल की बात

असल मे कोई भी किसी प्रकार अपंगता है ही नही तो दिखे कैसे दलित भी उसी समाज के अंग है और सवर्ण भी फिर ये दोहरा रवैया किस लिये सिर्फ हित अपने साधने के लिये न कोई सवर्ण जाति बताये तो जातिवाद,ब्राह्मणवाद,मनुवाद न जाने क्या पर जब.दलित जाति बताये तो लाचारी,बेवसी,पर कैसे और क्यों…

ये सब समारी सोच का वहम है। और स्वार्थ भी छोटा और ऊँच-नीच ये सब व्यक्ति की सोच पर ही तो आधारित है। अगर हम खुद नीचा नही मानते तो क्या के हमको नीचा,छोटा कह देने मात्र से हम नीचे या छोटे हो जायेंगे नही कभी नही इसलिए सोच बदलो इसके साथ समाज भी बदलेगा और देश भी सामजिक माहौल भी फिर समाज की स्थिति कुछ और ही होगी जिसे हम सभ्य समाज कह सकेंगे। और सभ्य समाज बनाने मे आपका मेरा हमारा सबका योगदान होगा जिसका फल बहुत मीठा होगा और वो फल हमारी आने वाली नस्लों को खाने को मिलेगा।।

एक लोकतांत्रिक देश मे ऐसी सामजिक असमानता क्यों जो इतिहास मे शोषण दर्ज है वो सबको याद है पर वर्तमान मे हो रहा है वो.किसी को नही दिख रहा है।हद है कब तक अतीत को कोसते रहोगे,कुछ आज और आने वाले कल के बारे मे भी सोच लो,नही तो कल पछताना न पड़े।।

(एक बार इस लेख पर विचार अवश्य करना)

 

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