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कविता- बापू की नाराज़गी बा से* (2 अक्टूबर 2018- महात्मा गाँधी जयन्ती को लिखी गई)

कविता- बापू की नाराज़गी बा से*
(2 अक्टूबर 2018- महात्मा गाँधी जयन्ती को लिखी गई)

बापू की नाराज़गी
बा से
बात थी छोटी सी मगर,
छोटी होकर भी
मोटी थी,
थोड़ी सी लेकिन खोटी थी,
इतने थे नाराज़
कि खुद ही लिख डाला एक लेख,
नहीं दिखी उनके अन्तर में,
पक्षपात की रेख,
थी विचार की ताज़गी
देखो
बापू की नाराज़गी |

बा ने किया था
कुछ सा धन इकट्ठा,
नापसन्द था बापू को,
चोर आये तो
चूक पकड़ में आई थी,
क्षमा माँगकर
भूल गईं फिर,
वचन उड़े सब कागज़ी
देखो
बापू की नाराज़गी |

किसी ने भेंट किये थे
बा को रुपये चार,
पास रखे रुपये
फिर भूली एक बार,
बापू थे नाराज़
थे रुपये दफ्तर के,
किया इशारा बा को
बा ने माना था,
लिया तभी संकल्प
अगर दोहराई चूक,
छोड़ूँगी बापू
और मन्दिर
होकर मूक
बापू समझ गये
बा की तब सादगी,
दूर हुई तब
बापू की नाराज़गी |

-कवि शिवम् सिंह सिसौदिया ‘अश्रु’
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
सम्पर्क- 8602810884, 8517070519

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