अगर मैं आपको कहूं कि आप सिर्फ एक खास पेशे को अपनाने के लिए बाध्य हैं, आपके बच्चे भी उसी पेशे को अपनाने के लिए ही बाध्य होंगे। आपको किसी भी तरह की च्वाइस लेने की आज़ादी नहीं होगी और आप जीवन यापन के लिए पूरी तरह से समाज पर निर्भर होंगे तो आपका क्या रिएक्शन होगा?
दलित एक्टिविस्ट बीना पल्लीकल ने ये बात YKA Summit 2018 में दलितों और आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार और भेदभाव पर बोलते हुए कही। उन्होंने आरक्षण की ज़रूरत से लेकर दलितों के प्रति समाज के रुख पर बेझिझक अपनी बात रखी।
अगर मैं आपको कहूं कि आप सिर्फ एक खास पेशे को अपनाने के लिए बाध्य हैं, आपके बच्चे भी उसी पेशे को अपनाने के लिए ही बाध्य होंगे। आपको किसी भी तरह की च्वाइस लेने की आज़ादी नहीं होगी और आप जीवन यापन के लिए पूरी तरह से मुझपर निर्भर होंगे तो आपका क्या रिएक्शन होगा?
कई लोग मुझसे कहते हैं, “कास्ट तो गुज़रे ज़माने की बात है। आप क्यों कास्ट की बात करते हैं? हम तो लिबरल फैमिली के पढ़े लिखे लोग हैं, हम जाति की बात नहीं करते। जातिगत डिस्क्रिमिनेशन नहीं करते लेकिन जब शादी की बात आती है तो वही लोग अपनी जाति के ही लड़के या लड़की खोजते हैं। कई लोग जो ये कहते हैं कि वो जाति देखकर दोस्ती नहीं करते लेकिन उनके दोस्त अक्सर उनकी ही जाति के होते हैं।”
हम आज तक जाति को कारपेट के अंदर छिपाकर ये सोच रहे हैं कि जाति का अस्तित्व ही नहीं बचा है लेकिन असलियत ये है कि जाति आज भी हमारे रग-रग में मौजूद है। जाति हमारे जीवन का हिस्सा है। ये तय करता है कि हमारी च्वाइस क्या होती है, हम किसके साथ खाना खाते हैं।
डॉक्टर अम्बेडकर को उस वक्त अपने स्कूल की क्लास में अंदर बैठने की इजाज़त नहीं मिलती थी और आपको ताज्जुब होगा कि आज भी दलित छोटे बच्चों को क्लासरूम के आखिर में बैठाया जाता है। NCRB के डेटा के अनुसार प्रिवेंशन ऑफ दलित एंड आदिवासी एट्रोसिटी एक्ट के तहत 40 हज़ार बलात्कार के मुकदमे रजिस्टर हुए हैं। इन्हीं आंकड़ो के अनुसार आज का दिन खत्म होते-होते औसतन 5 दलित महिलाओं का बलात्कार हो चुका होगा।
2 साल पहले हरियाणा की एक घटना है जिसमें एक दलित नवयुवक का हाथ सिर्फ इसलिए काट दिया गया क्योंकि उसने गर्मी में अपनी प्यास बुझाने के लिए सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए रखे पानी को पिया था। ये कोई गुज़रे ज़माने की बात नहीं बल्कि सिर्फ दो साल पहले दिल्ली से नज़दीक हरियाणा की घटना है।
मैं ऐसी कई और घटनाओं के बारे में आपको बता सकती हूं जहां आप जैसे ही नौजवान दलित लड़के, लड़कियों से उनके सपने इस जाति आधारित भेदभाव की वजह से छीन लिए गए।
अक्सर जब हम जाति की बात करते हैं तो बहस आरक्षण की तरफ मुड़ जाती है। लोग दलितों के हमारे देश की इकॉनमी में बराबर के योगदान के बारे में बात नहीं करना चाहते वो बस आरक्षण या कोटा के बारे में सोचते हैं।
मैं आपको बताना चाहती हूं कि आरक्षण दलितों और आदिवासियों पर सदियों से होते आ रहे दमन के खिलाफ लड़ने की व्यवस्था है। ये आर्थिक कारणों की वजह से नहीं है। दलित गरीब इसलिए नहीं हैं कि उनके पास पैसे नहीं है बल्कि वो इसलिए गरीब हैं क्योंकि उन्हें संसाधनों से वंचित रखा गया। जब तक ये जारी रहेगा तब तक आरक्षण की व्यवस्था भी जारी रहेगी।हम आज अंतरिक्ष में भले ही पहुंच गए हैं लेकिन आज भी लाखों लोग इस देश में भूख से मरते हैं।
रोहित वेमुला को आत्महत्या क्यों करनी पड़ी? रोहित वेमुला के आत्महत्या करने से लोगों का ध्यान शिक्षा संस्थानों में दलितों और आदिवासियों के खिलाफ उच्च शिक्षा में सिस्टेमेटिक एक्सक्लूशन की तरफ गया।
अगर आपको लगता है कि कास्ट का आप पर कोई असर नहीं तो ये इस वजह से है कि आप एक प्रिविलेज्ड पोजीशन पर हैं। अगर 24 घंटों के लिए देश के सभी दलित और आदिवासिओं ने काम करना बंद कर दिया तो ये देश ठप्प बैठ जाएगा क्योंकि आपके सफाई कर्मी हों या मजदूर हों या फिर आपके घर मे काम करने वाले हों वे सब दलित या ओबीसी तबके से आते हैं।
हाँ हम दुनिया की सबसे तेज़ गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि इस अर्थव्यवस्था में दलितों का सबसे बड़ा योगदान है।