सवर्णों का एक वर्ग लगातार एससी-एसटी एक्ट को रद्द करने की मांग कर रहा है। भारत बंद के दौरान सवर्णों ने आरक्षण खत्म करने की बात भी कही या इसका आधार आर्थिक हो जाए इस पर ज़ोर दिया। अब गाड़ी आरक्षण का आधार बदलने या उसे खत्म करने वाली पटरी पर चलने लगी है। खुद को दलित नेता बताने वाले व केन्द्रीय मंत्री रामदास आठवले ने आरक्षण का आधार बदलने की पहल करते हुए एक जाल फेंक दिया है।
पिछले दिनों आठवले ने एक बयान में कहा,
सवर्ण सोचते हैं कि दलितों को आरक्षण मिलता है मगर उन्हें नहीं दिया जाता। सरकार अगर आरक्षण के दायरे को 75 प्रतिशत तक बढ़ाए, तो मुझे लगता है कि सभी को आरक्षण का लाभ मिल जाएगा। मतलब गरीब सवर्णों के लिए 25 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था।
आठवले साहब उनके लिए 25 फीसदी आरक्षण देने की मांग कर रहे हैं, जिनके पास हज़ारों सालों से राजनीतिक सत्ता, संसाधनों पर कब्ज़ा और खुद को भगवान बताने और दूसरों को ‘कीड़े मकोड़े’ समझने का अधिकार मिला हुआ है।
सवर्ण आरक्षण का आधार आर्थिक तो करना चाहते हैं लेकिन जाति व्यवस्था को खत्म किए बिना। क्या आपने कभी सुना है गरीब होने के कारण सवर्ण बेइज्ज़त हुआ हो? क्या किसी सवर्ण दूल्हे को गरीब होने के कारण घोड़ी से चढ़ने से रोका गया? क्या गरीब होने के कारण सवर्ण को मन्दिर जाने से रोका गया? क्या कोई सवर्ण गरीब होने के कारण छुआछूत का शिकार हुआ? क्या किसी सवर्ण को सार्वजनिक कुएं से गरीब होने के कारण पानी पीने से रोका गया? क्या किसी सवर्ण को गरीब होने के कारण शव जलाने से रोका गया?
जब भेदभाव जाति के आधार पर हो रही हो तो आरक्षण का आधार आर्थिक कैसे किया जा सकता है? दूसरी बात आरक्षण लागू ही इसलिए किया गया ताकि पिछड़ा समाज मुख्यधारा में कदम से कदम मिलाकर चल सके लेकिन दलित, आदिवासी और पिछड़ों के साथ जो व्यवहार देश में हो रहा है ऐसे में आरक्षण कैसे खत्म किया जा सकता है।
ऊना में दलितों की नंगाकर पिटाई हो या आदिवासी बच्चियों के साथ बलात्कार, ये सारी घटनाएं हम सब देख रहे हैं। आज सवर्ण ओबीसी के कंधे पर बंदूक रखकर आरक्षण पर निशाना लगा रहे हैं।
सबसे पहले जातिगत (एससी, एसटी व ओबीसी) सर्वेक्षण किया जाए, जो 1947 में आज़ाद होने के बाद आज तक नहीं किया गया। ऐसा नहीं है कि सर्वेक्षण के लिए आवाज़ें नहीं उठायी गईं लेकिन 15 प्रतिशत लोग नहीं चाहते की सत्ता में 85 फीसदी लोगों की भागीदारी भी हो।