सामाजवादी पार्टी (सपा) उत्तर प्रदेश की एक मज़बूत पार्टी है, जो पिछड़ों की पार्टी के नाम से जानी जाती है। सपा संरक्षक मुलायम सिंह ने अपने संघर्षों के दम पर सपा को फलक पर पहुंचाया था लेकिन पारिवारिक कलह ने इस पार्टी को ज़मीन पर पहुंचा दिया।
चाचा, यानी मुलायम सिंह यादव के भाई और पुत्र अखिलेश व उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम के बीच पार्टी अपने नाम करने की चाहत ने पार्टी को निष्क्रिय बना दिया है और शिवपाल ने सपा से अलग होकर नई पार्टी ‘सामाजवादी सेक्युलर मोर्चा’ का गठन कर लिया है। पार्टी गठन के बाद उन्होंने कहा कि कई अरसे से वे सपा में हाशिए पर चल रहे थें। उनको उनकी हैसियत के हिसाब का पद नहीं दिया गया था। संवाददाताओं से उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी को मुलायम सिंह का आशीर्वाद प्राप्त है।
शिवपाल की नई पार्टी बनाने के बाद फायदा तो दूसरी राजनीतिक पार्टियों को होगा। पिछले विधानसभा 2017 की बात करें तो चुनाव से पहले पार्टी पर कब्ज़ा जमाने की जंग हुई थी। जिसका फायदा विपक्षी पार्टियों को हुआ था और विकास के दावे के बाद भी पार्टी हार गई।
लेकिन अब 2019 लोकसभा चुनाव नज़दीक आते ही शिवपाल द्वारा नई पार्टी के गठन के बाद फिर से सपा को नुकसान होगा क्योंकि उत्तर प्रदेश में वोटों का जो समीकरण है उसके हिसाब से पार्टी के वोट बैंक में भी कटौती होगी।
उत्तर प्रदेश में ऐसा माना जाता है कि यादव वोट बैंक हमेशा से सपा के साथ रहा है। राज्य में यादव वोट बैंक लगभग 8 फीसदी है लेकिन शिवपाल द्वारा नई पार्टी बनाने के बाद उनके समर्थक उनके साथ हो जाएंगे क्योंकि सैफई, मैनपुरी, इटावा, कन्नौज व पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कुछ सीटों पर शिवपाल का दमखम है। इन क्षेत्रों में लगभग 10 सीटें आती हैं जिसका नुकसान सपा को होगा। दूसरी तरफ अगर शिवपाल के साथ राजभर आ जाते हैं तो दलित वोटों का धुर्वीकरण होगा, जिससे यूपी महागंठबंधन को नुकसान होगा।