हम कैसे घिनौने समाज का हिस्सा हैं यह तो सर्वविदित है। मुज्ज़फरपुर की घटना से तो बस समाज का ये वीभत्स रूप समाचारों की सुर्ख़ियों में आ गया। मुज्ज़फरपुर के बालिका गृह में होने वाले रेप कुकांड का जो मुद्दा Tata Institute Of Social Sciences की टीम के द्वारा रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद समाचार चैनलों पर बहुत ही ज़ोरो से चलाया गया क्या वह एक नियमित कार्यक्रम जैसा नहीं लगता है जो सिर्फ़ और सिर्फ़ TRP का खेल हो?
आज हमारा समाज संवेदनहीनता के उस स्तर तक पहुंच गया है जहां उसे संवेदनशील होने के लिए भी एक वजह की ज़रूरत होती है। मसलन कोई अपना रिश्तेदार हो नहीं तो हमें क्या मतलब इस घटना से और ऐसा इसलिए लगता है कि वे सोचते हैं कि ऐसा करके वो बच निकलेंगे। लेकिन हर किसी का नम्बर आता है किसी का पहले ओर किसी का बाद में । समाज की प्रथम इकाई परिवार के द्वारा बुनियादी शिक्षा के तौर पर घर से बाहर जाने से पहले हमें यह सिखाया जाता है कि अपने काम से मतलब रखना और बेवजह किसी से उलझना नहीं क्योंकि इस काम में ख़तरा हो सकता है। समाज का यही व्यक्तिगत डर समाज को व्यक्ति के स्तर पर सीमित रखता है और आज तो यही हमारा सामाजिक चरित्र बन गया है।
अब तो बलात्कार भी व्यवस्थित तरीके से होने लगे हैं। व्यवस्थित तरीके से होने वाले या करने वाले इस बलात्कार को हम मुख्यरूप से दो श्रेणी में बांट सकते हैं या हम ये कह सकते हैं कि इसमें मुख्यरूप से दो तरह के लोग शामिल होते हैं
1) जो लोग व्यवस्था में बैठकर इसे अंजाम देते हैं।
जैसे मुज्ज़फरपुर बालिका गृह का केस जहां नियमित रूप से आने वाले प्रभावशाली लोगों एवं स्थानीय लोगों ने अपनी आंखें जबरन बंद कर ली। या फिर हो ये भी सकता है कि ये लोग भी उस बलात्कार करवाने वाली व्यवस्था का हिस्सा हों।
1) वैसे लोग जिन्हें व्यवस्था से कोई डर नहीं लगता है।
जैसे जहानाबाद और नवादा की घटना जिसमें दोषियों ने बलात्कार की बकायदा वीडियो रिकॉर्डिंग की।
जब बलात्कार जैसी विभत्स घटनाओं पर भी समाज मृतप्राय व्यवहार करने लगे तो वहां बलात्कार व्यवस्थित अपराध बन जाता है। पिछले कुछ दिनों में बलात्कार की जितनी भी घटनाए घटित हुई हैं, चाहे वह कठुआ का मामला हो या उन्नाव का हर जगह बलात्कारी व्यवस्था में बैठे हुए लोग ही थे।
आइए हम अब आते हैं मुज्ज़फरपुर की उस ताज़ा घटनाक्रम पर जो आजकल समाचारों की सुर्खियों में है या कह लीजिए टीवी चैनलों के TRP गेम में नम्बर 1 है।
यह घटनाक्रम जो विगत कई वर्षों से घटित हो रहा था इसकी सारी ज़िम्मेदारी सरकार पर डालकर हम अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर सकते हैं क्या? क्या यह समाज अपने आप को कभी इस चुप्पी के लिए माफ कर पाएगा? शायद कर भी ले क्योंकि उनकी बेटी या कोई रिश्तेदार तो थी नहीं वो बच्चियां लेकिन गिरफ्तारी के वक्त ब्रजेश ठाकुर का अट्टहास ये बताने के लिए काफी था कि ना तो वो अकेला है और ना ही सिर्फ ये 35 बच्चियां हैं। हो सकता है कि अगला नम्बर आप ही की बच्चियों का हो तब देखेंगे कि आप हमारा क्या कर लोगे। और भी बहुत कुछ है जो सिर्फ और सिर्फ पावर कॉरिडोर में बैठने वाले लोग ही बता पाएंगे कि उस वीभत्स हंसी का राज़ क्या था।
आइये अनुमान करते हैं अपनी छोटी बुद्धि से कि क्या-क्या सम्भावनाएं हो सकती हैं और क्या-क्या मतलब हम निकाल सकते हैं।
1) यह कुटिल मुस्कान ज़ोरदार तमाचा था हमारे समाज और व्यवस्था के मुंह पर और एक व्यंग था इस रीढ़विहीन व्यवस्था पर कि देखते हैं ये लोग मेरा क्या कर लेते हैं।
2) वह अपने सहयोगियों को आश्वस्त करना चाह रहा होगा कि तुमलोग चिंता ना करो, मैं तो बस यूं गया और यूं आया।
और हां यदि यह समाज अपनी इस चुप्पी के लिए जहां उसे यह तक नहीं खबर कि पड़ोस में क्या हो रहा है, अपने आप को माफ कर लेता है तो ऐसे मृतप्राय समाज के लिए कोई क्यों आवाज़ उठाए। यदि ब्रजेश ठाकुर जैसे लोग इस समाज में तरक़्क़ी और इज़्ज़त पाते है तो वो उसके हकदार भी हैं ।
आइए थोरी चर्चा राजनीतिक दलों और मीडिया के द्वारा किए गये कार्यों पर भी कर ही लेते हैं। इनको भी देखें तो दोनों अपने-अपने लिए किए जाने वाले नियमित कार्य से ज़्यादा कुछ नहीं कर रहे हैं। मीडिया तो TRP के चक्कर में कुछ कुछ दिखा भी दे रही है वह भी मजबूरी में ज़्यादा लगता है क्योंकि यह बालिका गृह तो बहुत दिनों से संचालित हो रही थी और आपके नाक के नीचे हो रही थी। तो क्या यह मान लिया जाये कि आपकी भी मौन सहमति थी और आप भी भागीदार थे और यदि नहीं थे तथा आपको सच में इस घटना की जानकारी या थोरी सी भी भनक नहीं थी तो आपको शर्म आनी चाहिए अपने आपको लोकतंत्र का चौथा खम्भा कहलवाने में क्योंकि आपका जो मूल कर्तव्य है वो सरकार की कमियां ही उजागर करना है ना की सरकार द्वारा दिए गये रिपोर्ट को आधार बना कर न्यूज़ लिखना।
जिस तरह की अनियमितताएं सामने आ रही हैं उसमें साफ-साफ दिख रहा है कि किस स्तर की मिलिभगत व्यवस्था और ब्रजेश ठाकुर के बीच थी। तो ये उम्मीद तो करना ही बेमानी है कि वो खुद से आकर अपने इस कुकर्मों के बारे में आपसे बताते। लेकिन आप कहां थे जनाब और कहां थी आपकी निष्पक्ष कलम ये सवाल तो पत्रकारों से पूछा जाना चाहिए। और आज भी आप सिर्फ मुज्ज़फरपुर की घटना के बारे में क्यों दिखा रहे हैं क्यों नहीं दिखाते हैं कि पूरे प्रदेश में चल रहे इस तरह के गृहों की जिसमें दुनिया की सबसे निःसहाय और कमज़ोर प्रजाति निवास करती है उनकी क्या हालत है। आपकी भी विश्वसनीयता बहुत निष्पक्ष नहीं लगती है पत्रकार महोदय आप भी सिर्फ और सिर्फ TRP के खेल में उलझे हुए दिखते हैं।
अमूनन यह देखने को मिलता है कि किसी भी इस तरह की घटना पर विपक्ष हमेशा संवेदनशील दिखता है और सत्ता पक्ष हमेशा निर्मम और वो इसीलिए कि दोनों को बिना किसी कारण के भी एक दूसरे का विरोध करना होता है। क्या सत्ता पक्ष और विपक्ष मिल कर ब्रजेश ठाकुर को बचा रहे हैं। क्योंकि घटनाक्रम तो यही संकेत दे रहे हैं और ब्रजेश ठाकुर के राजनीतिक रिश्तों की जो बातें सामने आ रही हैं उसे देखकर तो यही लगता है कि जैसे संविधान में सर्वधर्म सम्भाव की जो परिकल्पना की गयी है उसका जीता जागता उदाहरण हो।
ब्रजेश ठाकुर और उनके दरिंदे सहयोगियों को सरकार जो भी सज़ा दिलवा पाए (जिसकी उम्मीद ना के बराबर है क्योंकि ब्रजेश ठाकुर के खिलाफ कोई सबूत है ही नहीं और जो बच्ची पहचान करने वाली थी वो भी अब नहीं है ) वो कम ही होगी ।
आज यदि नित नए ब्रजेश ठाकुर जैसे दरिंदे पैदा होते चले जा रहे हैं और सामाजिक स्वीकृति के साथ समाज में तरक्की भी कर रहे हैं तो इसके लिए सिर्फ सरकार दोषी नहीं है और हम सरकार पर दोषारोपण करके अपनी जिम्मदारियों से मुंह नहीं मोड़ सकते हैं। इस घटना के लिए बराबर का ज़िम्मेदार यह मृतप्राय समाज भी है जो सिर्फ और सिर्फ अपनी बहन-बेटियों के लिए हीं आवाज़ उठाता है कभी बहन बेटियों के लिए आवाज़ नहीं उठाता है। जिस दिन यह समाज बहन-बेटियों के लिए आवाज़ उठाने लगेगा किसी की हिम्मत नहीं होगी इस तरह के कार्य को अंजाम देने की।