Site icon Youth Ki Awaaz

DUSU के लिए एक सबक है JNUSU चुनाव प्रणाली

12 सितम्बर को डूसू का चुनाव समाप्त हुआ, ठीक उसी दिन शाम को जवाहरलाल विश्वविद्यालय में प्रेसिडेंशियल डिबेट का आयोजन हुआ। ये डिबेट तमाम उम्मीदवारों का भविष्य निर्धारित करती है।

पिछले साल (रामानुजन कॉलेज) दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने के बाद मैंने अपने कॉलेज कैंपस में डूसू के उम्मीदवारों को देखा था कि वो कैसे प्रचार-प्रसार करते थे। कॉलेज में पर्चे का पहाड़ लगाना, ज़ोर से नारेबाज़ी करना, सड़कों पर उपद्रव मचाना आम बात थी लेकिन इस बार डूसू के कुछ उम्मीदवारों की ऐसी हरकतें थीं, जो हमारी चुनाव प्रणाली से बिल्कुल परे ले जाती है।

इस बार के डूसू चुनाव में जमकर उपद्रव हुआ, चाहे वो हमारे बगल के देशबंधु कॉलेज की बात हो, जहां कुछ छात्रों को हॉस्पिटल ले जाना पड़ा या ज़ाकिर हुसैन कॉलेज में अराजकता फैलाने की घटना हो।

‘स्वछ भारत’ की ऐसी धज्जियां उड़ी हैं कि अगर बापू आज खुद होते तो कहते “ये कहां आ गये हम”।

डूसू के चुनाव में 43.8% मतदान हुआ, जो हमारे लिए चिन्ता का विषय भी है। आखिर क्या बात है कि दिल्ली विश्वविद्यालय का चुनाव मतदान का प्रतिशत कभी 90% या उससे ऊपर नहीं जा पाता? क्या हमारे युवाओं में  राजनीति के प्रति मानसिकता ही गलत है?

अगर इन सब सवालों के जवाबों के तह में जाने की कोशिश करेंगे तो जबाब यही मिलेगा कि जिस प्रकार उम्मीदवार अपना प्रचार-प्रसार करते हैं वो युवाओं की मानसिकता को और गर्त में ले जाता है, जो इस बार साफ देखने को मिला।

अब बात करते हैं JNUSU की। यहां हो-हंगामा करने का कोई प्रावधान नहीं है। यहां प्रेसिडेंशियल डिबेट होता है, जहां प्रेसिडेंट पद के लिए उम्मीदवारों के बीच जमकर मुकाबला, सवालों के आरोप-प्रत्यारोप चलते हैं साथ-ही-साथ यह बताना भी होता है कि वो जीतेंगे तो क्या करेंगे। पहली बार मैंने ऐसा देखा कि उम्मीदवार कैसे अपनी बात तर्क के साथ रखते हैं और अपने दूसरे साथी के सवालों का जबाब कैसे देते हैं?

यहां के डिबेट में आप देश के साथ-साथ उन तमाम विषयों पर चर्चा करते हुए सुन सकते हैं जो अक्सर गोदी मीडिया की नज़रों से गायब रहते हैं। DUSU के कैंडिडेट तो केवल नाम मात्र का अपना वीज़न रखते हैं कि हम ये करेंगे, वो करेंगे लेकिन आखिर उनका भी काम ‘जुमलेबाज़ी के नाम’ तक ही सीमित रह जाता है।

कुल मिलाकर आप भारतीय चुनाव प्रणाली की एक अच्छी झलक जेएनयू में ही देख सकते हैं, जहां विभिन्न छात्र संगठनों के उम्मीदवार अपनी बात बेवाकी से रखते हैं।

“काश” JNU जैसा ही चुनाव भारत के सभी विश्वविद्यालयों, कॉलेजों में होता।

Exit mobile version