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सड़क का बनते ही टूट जाना, जनता के साथ धोखा ही तो है

कई वादों के बाद सड़क निर्माण कार्य का शिलान्यास होना, करोड़ों रुपयों के टेंडर आवंटित होने के बाद सड़क निर्माण का कार्य शुरू होना और सड़क के बनने के कुछ महीने बाद ही उसका टूटना शुरू हो जाना। सड़क का ऐसा टूटना मानो वह कोई कच्ची मिट्टी हो, हर तरफ बालू फैलना। यह क्या दर्शाता है?

जिस सड़क के बनने के लिए लोगों में उत्साह का माहौल हो, जिस सड़क पर लोगों ने खुद पानी पटाया हो, उस सड़क की यह हालत देखकर लोगों का मन निराश होगा ही। करोड़ों रुपए खर्च हुए, दिन रात तक लोगों ने खुद राहगीरों को संभलकर आने-जाने को कहा, उस सड़क की हालत अब ऐसी है कि लोग वहां से गुज़रना नहीं चाहते।

सड़क को वापस दुरुस्त करने के लिए एक सुझाव आया मतलब लीपापोती का उपाय आया। अलकतरा यानी कि कोलतार को बरकाकर सड़क पर पटा दिया जाएगा, जिससे सड़क दुरुस्त हो जाएगी। मतलब पहले खराब सड़क का निर्माण किया जाना। उसके बाद अलकतरा बिछाकर उसे ठीक करने का काम करना। यह तो सरासर गलत है। लोगों की आंखों में धूल झोंकने के बराबर है।

अगर सड़क पहले ही ठीक तरीके से बनाई जाए, तय मानकों के अनुसार सड़क निर्माण सामग्री का इस्तेमाल हो, तो अलकतरा बिछाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।

अलकतरा को पिघलाने के लिए सामान्यतः टायर और ट्यूब का ही इस्तेमाल होता है। टायर और ट्यूब के जलने पर चारों तरफ दम घोंटने वाला धुआं फैलता है। इससे पर्यावरण का नुकसान तो होता ही है, साथ-ही-साथ सांस संबंधी परेशानी भी बढ़ जाती है। मज़दूरों की भी हालत खराब हो जाती है क्योंकि वे उस धुएं के काफी करीब होते हैं। सड़क निर्माण के वक्त भी मज़दूरों की सेहत को ध्यान में रखना चाहिए। सीमेंट, बालू के गुब्बार से कई बीमारियों का खतरा रहता है।

अब आप बताइए क्या यह सही है? पहले ही अगर सड़क अच्छी तरह से बनाई जाए तो यह स्थिति उत्पन्न ही नहीं होगी। कहीं भी नहीं। बार-बार सड़क टूटने पर उसे बनाने में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन होता ही है और पर्यावरण का भी नुकसान होता है। मगर अपनी लालच और लालसा के कारण कुछ लोग इन संसाधनों का दोहन करते चले जाते हैं।

मेरा मानना है सड़क को पहले ही अच्छी तरह से मानक के अनुसार बनाया जाए ताकि बाद में अलकतरा के नाम पर पर्यावरण और लोगों के साथ खिलवाड़ ना हो।

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