Site icon Youth Ki Awaaz

“ट्रेन में पखाना, थूक खखार की बदबू बर्थ तक आने से हमारी जान निकल रही थी”

हावड़ा राजेन्द्र नगर टर्मिनल (पटना) मेल से राजेन्द्र नगर 7:45 सुबह, 2 घंटे लेट से पहुंचा। हमारी बॉगी नम्बर 8 में बिजली, पंखा नहीं था।
बाथरूम में पखाना, मूत्र, थूक खखार उबाल ले रहे थे और बदबू हमारे बर्थ तक आ रही थी। करीब 1 घंटे बाद नाक तो आदी हो गया मगर जब मूत्र विसर्जन के लिए जाना पड़ा और वापस आया तो लगा कि मैं शाबाशी लेने के काबिल हूं।

रेलवे हेल्प लाइन पर फोन और मैसेज भेजा मगर कोई जवाब नहीं आया। वैसे, बर्थ से बाथरूम जाकर वापस आना भी बहादुरी का काम था वो भी इस स्लीपर बॉगी में जहां 20-30 सह यात्री नीचे सोये पड़े थे। पूछने पर बताया गया कि सबके पास टिकट है।

यानी रेलवे बेहद मुनाफा कमा रही है। यात्रियों की सुविधा गई तेल लेने, वैसे ही जैसे कि मज़दूरों और किसानों के रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।

सारे रास्ते में बाहर का नज़ारा अलग नहीं था। गंदगी और दुर्गंध हमारे साथ-साथ चल रही थी। हालांकि अंदर जैसा एकरस नहीं बल्कि समरस था और यात्रियों को उबने नहीं देता था।

पटना पास आने पर, निकट स्टेशन पर 10-15 महिलाएं चढ़ीं। पता चला पटना में दूसरों के घरों में काम करती हैं। नोटबंदी और जीएसटी के पहले ठेला, छोटे दुकानों, सब्ज़ी, फल बेचने आदि का काम करती थीं।

पूंजीवाद अपने खुद के विकास के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है और जो अब दिख रहा है, उसका सड़ांध, घिनौना और हिंसक रूप ही है। यह रूप हमारे बीच समाज के हर हिस्से, सरकार के हर विभाग और प्रजातंत्र के हर खम्भा में झलक रहा है। साथ-साथ हमारे विचारों में, सामाजिक मूल्यों में, नैतिक और आध्यात्मिक पतन में भी परिलक्षित है।

इसमें सुधार के ख्वाब दिखाने वाले पूंजी के दलाल हैं। ज़रूरत है भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों की और हमारी एकता की।

____________________________________________________________________________________

नोट-फोटो प्रतीकात्मक है

Exit mobile version