कितने दिन से सोच रहा था कुछ लिखु पर क्या किसी की आलोचना या प्रेम या फिर नफरत जिससे हमारी जिंदगी भरी पड़ी हैं तो वही लिख देते हैं।
नहीं नहीं नहीं फिर हमारी आलोचना शुरू हो जाएगी तो क्या लिखूं जो एकदम सरल सज्जन और सभ्य हो । फिर एक विचार कौधा की 2 अक्टूबर आने वाला हैं तो क्यों न बापू जी के बारे में लिखा जाए। मेरे ज़िन्दगी के सबसे सरल व्यक्ति और उनका व्यक्तित्व तो सभी जानते ही है। हाथ में एक छड़ी बदन पर स्वयं के द्वारा स्वयं के लिए काती गई सूत की धोती, एक सूती गमछा और साथ में होती थी एक ऐनक जो उनके इरादों को और सख्त बनाती थी ।
तो अब बात करते है मुद्दे की यानी अपनी की कितना मानते है हम अपने बापू जी को तो सब कहेंगे बहुत मानते है हर जगह वहीं तो काम आते हैं जब मुसीबत में हो निकाल लें जाते है बिना सच्चाई के गलत तरीके से पर ये तो हमारे बापू जी ने नही सिखाया था वो तो सत्यवादी और अहिंसावादी थे तो हम क्यों भड़क जाते हैं छोटी छोटी बात पर हिंसा पर उतर जाते हैं । और बात मानते भी हैं उनकी जिनका खुद का ईमान नही होता। हम करे भी तो क्या कोई काम तो हैं नही अपने पास करने को और बापू जी की बात मानी तो कोई भी ऐरा गेरा नथु खैरा दोनो गाल लाल कर देता हैं। समस्या हो रही हैं जटिल तो कृपया इधर ध्यान दे और समाधान बताये?
क्या लगता हैं आपको की आप समाधान बता सकते हो नही बता सकते हाँ आप एक काम कर सकते हो गाँधी जयंती की छुट्टी मनाओ और खूब सारे स्टेटस डालो फेसबुक पर क्योंकि अपने बापू का बर्थडे हैं लेकिन अफ़सोस दारू बंद है तो गला गिला नही हो पायेगा सबका लेकिन एक दिन की गाँधीगिरि तो कर सकते हो एक दिन के गाँधीवादी तो बन ही सकते हो।
धन्यवाद