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लिखना चाहती हूं! हर वो बात जो तुम सुनना नहीं चाहते।

मेरे लिखना का मतलब ये नही कि दस बार मेरा ब्रेकअप हुआ है या कोई मुझे छोड़ गया। दरअसल हम लड़कियां सोचती ही गहरा हैं। ठीक ऐसे ही।

टूटे हुए लोगों को समाज और तोड़ने का काम करता है

सब कुछ साथ रखती हैं। सुख भी और दुख भी और  फिर एक दिन “आत्महत्या” करना या करने का ख्याल आना, क्यों होता है ऐसा? अक्सर जो आत्महत्या की कोशिश करते हैं और बच जाते हैं। लोग उन्हें संभालते नहीं। कारण जानने की कोशिश भी नहीं करते। करते हैं तो बस ये कि उस इंसान को कायर घोषित कर देते हैं। खुद मुकदमा चलाते हैं और खुद ही फैसला सुनाते हैं कि ज़िन्दगी की कठिनाइयों से न जूझ पाने के कारण उस इंसान ने आत्महत्या का फैसला किया ,जो कि कायरता की निशानी है ।

मरने वाला इंसान मदद की गुहार तो लगाता है

पर क्या वाक़ई ऐसा होता है? क्या कोई वाकई एक दिन बस यूं ही मर जाने का फैसला कर लेता है? क्या उसे डर नहीं लगता? जितना मैंने लोगों से बात कर के जाना और समझा है। उसके हिसाब से तो डर लगता है। मरने से पहले भी एक आखिरी मदद की गुहार जरूर लगाता है इंसान पर अनसुनी होने पर आत्महत्या को अंजाम देता है। आत्महत्या करने वाला इंसान कायर नहीं होता, जाने कितना मानसिक दबाव झेलता है, अवहेलना सहता है फिर भी ज़िन्दगी के साथ चलने की पूरी कोशिश करता है।

इंसान खुद में सिमटने लगता है और एक दिन सब खत्म कर देता है

हर मरने वाला इंसान लोगों को अपनी तकलीफ बताना चाहता है। पर अगला इंसान उसके बारे में क्या राय कायम करेगा ये डर उसे ऐसा करने नहीं देता। जब पूरी तरह से उदासीनता किसी पर छाती है तो इंसान की किसी से कोई अपेक्षा, कोई लगाव नहीं रह जाता। कभी-कभी अचानक ही सारे ज़रुरी काम पूरे करने लगता है। अक्सर आत्महत्या से जुड़ी बातें करता है।

बात-बात पर चिड़चिड़ा होता है। किसी ने तकलीफ दी है तो बदला लेने की बातें करता है। हंसना, मुस्कुराना, कुछ अच्छा नहीं लगता और हर बात पर आखिर मैं ही क्यों? जैसे सवाल करता है। इंसान खुद में सिमटने लगता है और एक दिन सब खत्म कर देता है। ऐसी मनोस्तिथि में अक्सर लोग इमोशनल ब्लैकमेलिंग का इस्तेमाल कर उसे समझाने की कोशिश करते हैं जो कि समस्या को कम नहीं करता बल्कि बढ़ा देता हैं।

लिखना एक बेहतरीन जरिया है नर्वस ब्रेकडाउन से बचने का

तब जरुरत होती है उन्हें भरोसे में लेकर उनकी बात सुनने की। कोई ज़रुरी नहीं कि आप हल सुझा सकें पर उन्हें ये एहसास कराइये कि वो अकेले नहीं हैं। ख्याल रखिये उनका , छोटी-छोटी बातों से अपनापन जताइए और कोई भी ऐसा सवाल या बात मत करिए जो उन्हें ठेस पहुंचाए और अगर ऐसा खुद के साथ हो रहा है तो खुद की दिनचर्या में बदलाव करिए। व्यायाम , जिम, संगीत, बागवानी, पेंटिंग, हेल्थी डाइट, टॉफी, कैंडी, चॉकलेट और अपनों का साथ, ये वो चीजे हैं जो आपकी मदद कर सकती हैं। अगर आप अपनी भावनाओं को शब्दों का रूप दे सकते हैं तो यकीन मानिए “लिखना एक बेहतरीन जरिया है नर्वस ब्रेकडाउन से बचने का।”

ज़रुरत है तो मदद मांगिये, ये बिलकुल मत सोचिये कि कोई आपके बारे में क्या सोचेगा

सिगरेट , चरस, शराब या और कोई बुरी लत मत लगाइये क्योंकि ये मदद नहीं करेंगे। आपको उस अंधे कुएं के ज्यादा नजदीक ले जायेंगे।। सवाल मत पूछिए बस सुनिये, उससे अपनी या आपके अपनों की आपबीती बांटिए। जादू की झप्पी दीजिये और अगर वो रोये तो चुप कराने की कोशिश मत करिए।

क्योंकि सच यही है कि “मरना कोई नहीं चाहता।”

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