आज कल देश में आरक्षण लेकर बहस सड़क से सोशल मीडिया तक ज़ोर पकड़ रही है और सवर्ण और पिछड़े दोनो OBC के खुद के साथ होने की बात कह रहे हैं। सामान्यत: मुस्लिम जनरल होता है परंतु मैं OBC के जातीय सांचे में फिट बैठता हूं तो मैं भी एक OBC जाति का हूं। देश में चल रही बहस में मैं भी कूद गया अपनी फेसबुक पर आरक्षण और SC/ST एक्ट के समर्थन में लेख लिख डाला और साथ में जय भीम भी लिख दिया।
फिर क्या था कमेंट्स आये कोई मुझे समाज को तोड़ने वाला बोलने लगा तो किसी ने भड़काने वाला। एक ने तो यहां तक कह दिया कि मैं एक OBC हूं या अल्पसंख्यक यह वो जानता है और लोगों का विरोध इस बात पर था कि मैंने जय भीम क्यों लिखा! उन लोगों का काम था प्रतिक्रिया देना उन्होंने दी और चले गए पर मेरे सामने एक सवाल छोड़ गए कि मैं जय भीम का नारा बुलंदी से क्यों लगाता हूं और मैं समझता हूं कि इसका जवाब भी सभी को जानना चाहिए।
मैं एक ग्रामीण नहीं शहरी (कस्बे) पृष्ठभूमि से आता हूं और मैंने आज तक कुछ घरों की एक सीमा से अंदर कदम नहीं रखा है। मतलब बहुत बचपन से एक दीवार सी बन गयी है। फलां-फलां के घर में चूल्हे परंडे (जहां पानी रखा होता है) के पास आप नहीं जा सकते। मेरा बचपन वहां गुज़रा है तो मेरे दोस्त भी उन्हीं में से होंगे। एक दिन जब उनके घर पर कोई नहीं था और हम घर में ही क्रिकेट खेल रहे थे तो बॉल उसके अंदर तक चला गया और घर पर कोई नहीं था तो मैंने वह लक्ष्मण रेखा क्रॉस कर ली। ऐसा करते मुझे किसी ने ने देख लिया और फिर मेरे दोस्त और उसके घर वालो के बीच जो हुआ उसने मेरे इस लक्ष्मण रेखा वाले भ्रम को और गहरा कर दिया।
पहली बार मुझे 12 कक्षा में एहसास हुआ कि मैं भी बाकियों के साथ बैठकर खाना खा सकता हूं जब मैं अपना टिफिन खोलकर दूर बैठा था तो एक दोस्त ने डांटकर पास बुलाया और कहा कि हम साथ खायेंगे। हमारे मुहल्ले में पानी की किल्लत होने पर नगरपालिका का टैंकर आता था, तब भी कुछ तथाकथित सवर्णों को टैंकर चालक के पाइप पकड़ने पर आपत्ति हुआ करती थी यहां तक कि मेरे हाथ में पाइप होने पर भी छीन लिया। अब यह फैसला आपके उपर है कि मैं OBC हूं या अल्पसंख्यक परंतु मैंने यह सारी चीज़े सहन की है तो फिर दलितों-महादलितों की क्या स्थिति होगी?
यह सब मेरे साथ बचपन में हुआ और एक बच्चे की मानसिक स्थिति पर यह सब बहुत ज़्यादा असर करता है वो खुद को औरों से कमज़ोर, अयोग्य, नाकाबिल, पिछड़ा, समझने लगता है। उसके आत्मविश्वास में कमी आती है और अगर उन्हें सही मौका ना मिले तो वो कुछ नहीं कर पाते हैं और उसमें भी गरीबी आग में घी का काम करती है वो एक बच्चे का मनोबल तोड़ देती है।
और जिस मौके की मैं बात कर रहा हूं वही आरक्षण है। मौका मिलने पर भी कॉलेज, उच्च संस्थानों में, सरकारी नौकरियों में यह एहसास करवाया जाता है कि आप आरक्षण से आये हैं ना कि मेरिट से इसलिए आपके फैसले गलत भी हो सकते हैं।
मैं भी एक सामान्य छात्र हूं जो एक अच्छे भविष्य का सपना देखता है। और मुझे OBC का नगण्य आरक्षण प्राप्त है। मैं भी कभी ना कभी कहीं ना कहीं किसी न किसी नौकरी में कुछ अंको से रहा होउंगा परंतु मेरे मन में आज तक आरक्षण प्राप्त करने वालों के लिए के लिए कोई ईर्ष्या द्वेष या कुंठा नहीं है क्योंकि मैं मानता हूं कि यह उनका हक है, कोई खैरात नहीं है।
आरक्षण व्यवस्था है समाज में प्रतिनिधित्व की ताकि कुछ लोग ही शासन प्रशासन का हिस्सा ना हों और सभी को मौका मिले। अगर पिछड़ों का कोई प्रतिनिधि उच्च पदों पर नहीं होगा तो उनके कल्याण के बारे में कौन सोचेगा? अब यह मत कहना की सवर्ण भी उनके कल्याण के बारे में सोच सकते हैं अगर सोचते तो उन्हें हज़ारो वर्षो का वक्त मिला था।
आप व्यक्तिगत उदाहरण देकर पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़ा ना करें क्योंकि यहां बात किसी के व्यक्तिगत विकास की नहीं होकर सामाजिक विकास की है। इस आज़ाद हिंदुस्तान में अगर हम एक बहुत बड़े तबके को पीछे छोड़कर विकास की अंधी दौड़ में आंख मूंदकर दौड़ने लगेंगे तो समाज का क्या औचित्य और सामाजिक न्याय के क्या मायने रह जायगे??
मैं खुद भी एक ऐसे भारत का सपना देखता हूं जिसमें आरक्षण ना हो, पर जातिवाद भी ना हो। लोग SC/ST एक्ट को कमज़ोर बनवाने के लिए सड़कों पर उतरने की जगह शोषण, उत्पीड़न के विरुद्ध सड़को पर उतरें ताकि एक दिन SC/ST एक्ट रद्दी बन जाये।
जब तक यह भारत नहीं बन जाता है तब तक में लगाता रहूंगा नारा जय भीम का, जब तक लोग गटर में उतरकर मरते रहेंगे, जब तक मज़दूर बंधुआ बने रहेंगे, जब तक किसान अपनी ही ज़मीनों पर मज़दूरी करेंगे, जब तक कि जाती धर्म के नाम पर हिंसा खत्म नहीं हो जाती, जब तक घोड़ी चढ़ने और मूंछ रखने पर होने वाली हिंसा खत्म नहीं हो जाती, जब तक आदिवासियों की ज़मीन को पूंजीपतियो के हवाले करना बंद नहीं होगा तब तक जय भीम का नारा मैं लगाउंगा। पता है क्यों, क्योंकि मुझे यह नारा हिम्मत देता है अत्याचार के खिलाफ लड़ने के लिए, क्योंकि मुझमें आत्मविश्वास जगाता है।
और मैं ही क्यों हर उस प्रगतिशील मानवतावादी शख्स को जय भीम बोलना चाहिए जो बदलाव का समर्थक है।
(फोटो प्रतीकात्मक है)