कुछ लिखने से पहले कुछ देर शांत होकर सोचता हूं तो डर जाता हूं, उसका कारण मेरी बढ़ती हुई चिंता है। ना जाने लोग किस तरह के देश प्रेम में पागल हैं, जहां ना ही देश प्रेम है और ना ही इंसान प्रेम।
कल रात शिव की भक्ति में नाचते हुए कुछ लोगों ने पूरी सड़क पर घेराव कर रखा था। मैं सहम सा गया कि कुछ गड़बड़ ना हो जाये। तकरीबन 14 मिनट के बाद उन्होंने रास्ता छोड़ा और हम आगे निकले ही थे कि कावड़ ले जाते युवक ने किसी ठेले वाले को ही मार दिया।
ये वही लोग हैं जो गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते हैं और अपनी किस्मत बदलने के लिए भाग्य को कोसते हुए बाबा के दरबार में पहुंचते हैं। यही प्रक्रिया हर साल दोहराते हैं, पर अपना भाग्य बदल नहीं पाते। बदले भी तो कैसे, उन्हें अनपढ़ता और अन्धविश्वास ने जो जकड़ रखा है। हम इस स्थिति को नज़रअंदाज़ करते हुए 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे।
आज़ाद भारत में महिलाओं की समस्या तो आम है। कहने को तो उनकी जनसंख्या देश की जनसंख्या की ठीक आधी है, उन्हें अधिकार भी मिले हैं पर धर्म और कुंठित मानसिकता ने उन्हें आज भी जकड़ रखा है। मुज़फ्फरपुर में जो हुआ वो आधुनिक भारत और आने वाले 15 अगस्त की पहचान तो नहीं हो सकता।
बात यदि समानता की करें तो समानता इंसानियत के बीच में होनी चाहिए। मगर यहां तो चलती है बस हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति। कल जब हमने मुल्क मूवी देखी तो लगा कि पैसे कमाने के लिए लोग हिन्दू-मुस्लिम मुद्दे पर कितना ज़ोर दे रहे हैं। लोग एक दूसरे को हीनता की दृष्टि से देखते जा रहे हैं और जब बात 15 अगस्त की आएगी तो बातें बंधुत्व की आएंगी।
इस जाति धर्म ने आज एक ऐसी समस्या को जन्म दिया है जिसपर शायद ही किसी का ध्यान जाये, वो है मां-बाप का अपने बच्चों के लिए वर-वधू ढूंढना। समाजिक दवाब में आज भी लोग अपनी ही जाति में अपने बच्चों की शादी करना चाहते हैं। साथ ही रोज़गार की कमी ने भी इस समस्या को इस कदर बड़ा दिया है कि ये स्थिति भयावह होती जा रही है और हम 15 अगस्त मनाने जा रहे हैं।
लोग फेसबुक और व्हाट्सएप्प पर अपनी प्रोफाइल फोटो लगाएंगे और ऐसे बर्ताव करेंगे मानो ये देश आज आइडियल है सबको बताने के लिए कि हम वो हैं जिसने दुनिया को बनाया है। अगले ही दिन सड़कों पर तिरंगों का यहां-वहां कूड़ों के ढेर में पड़ा मिलना हकीकत को बयान करता दिखेगा कि हमने कितना किसका सम्मान किया।
मेरा इन बातों को कहने का बस यही उद्देश्य है कि हम और आप अपने कर्तव्यों को पहचाने, मानव मात्र को नहीं अपितु जीव जंतु और वनस्पतियों को भी सम्मान दें। हम जो बदलाव चाहते हैं वो पहले खुद में और अपने परिवार में लाए। आने वाले 15 अगस्त को अपने तिरंगे को यहां वहां ना फेंके ये कानूनन अपराध है उसका सम्मान करें।