हम 15 अगस्त, 2018 को आज़ादी या स्वतंत्रता दिवस की 72वीं सालगिरह मनाने जा रहें हैं। इन 72 सालों में हमारे देश में काफी चीज़ें घटित हुई। कुछ अच्छी, कुछ बुरी, कुछ बहुत अच्छी, तो कुछ बहुत बुरी। इन अच्छी- बुरी घटनाओं के सफर में बुरी चीज़ें अच्छी चीज़ों की छवी पर एक ऐसे धब्बे का काम करती आयी है जो मुझे आज़ादी के बारे में बार-बार सोचने को मजबूर करती है।
मैं बहूत गर्व महसूस करता हूं, जब हिमा दास और अन्य खिलाड़ी गोल्ड मेडल जीतकर ले आती हैं, लकिन ये गर्व कहीं गायब सा हो जाता है जब ये खबर सुनने को मिलती है कि चेन्नई में 11 साल की बच्ची के साथ 17 लोगों ने कई दिनों तक बलात्कार किया, बिहार के एक आश्रय गृह में 40 बच्चियों के साथ बलात्कार और घिनौने अत्याचार हुए और इस तरह के ना जाने कितनी और घटनाएं जो लगभग हर रोज़ सामने आ रही हैं।
बहुत सारे लोग मुझे नकारात्मक और निराशावादी प्रवृत्ति का इंसान मानते हैं क्योंकि अक्सर मैं खोखली और ठगी हुई आज़ादी पर सवाल उठाता हूं और उन सारे लोगों और संस्थानों को चुनौती देता हूं जो इस खोखलेपन वाली आज़ादी को बढ़ावा देते आए हैं। बहुत सारे लोगों को लग सकता है कि मुझे तो काफी आज़ादी है, पता नहीं कुछ लोगों को क्यों हमेशा समस्या घेरे रहती हैं।
हो सकता है आप व्यक्तिगत तौर पर आज़ाद महसूस करते होंगे और इसके मूलतः दो कारण हो सकते हैं। पहला, हो सकता है कि आपकी आज़ादी संकीर्णता, रूढिवादिता और अपरिवर्तनशीलता जैसी सोच से भरी हो। दूसरा और सबसे बड़ा कारण हो सकता है कि आप किसी ऐसी विशेष व्यवस्था या सत्ता के चाटुकार या रागदरबारी हों। और ये आपको एक ऐसी आज़ादी की अनुभूति दे सकता है जिसमें कि अगर आप किसी के ऊपर हिंसा, अपराध, मारपीट, छेड़खानी या बलात्कार जैसे घिनौने अपराध भी कर दें तो उस सत्ता के द्वारा आपको फूलों के जैमालो से नवाज़ा जा सकता है। कोई अच्छी पदवी से नवाज़ा जा सकता हैं और आपके बचाव के लिए किसी भी हद तक जाया जा सकता है। इसके विपरीत जो ऐसी चीज़ों पर सवाल उठाये तो उसके साथ कुछ भी हो सकता है।
आये दिन ऐसी अनगिनत घटनाये हो रही हैं जिसमें मुसलमानों, दलितों, माहिलाओं, एल.जी.बी.टी. समुदाय, छात्र-छात्राओं, मानवाधिकार-कर्यकर्ताओं, सामाजिक-चिंतकों, हास्य-कलाकारों, प्रेमी-युगलों, अभिनेत्रियों, पत्रकारों आदि को निशाना बनाया जा रहा है। ऐसी तमाम घटनाएं वास्तव में हमारी असली और वास्तविक आज़ादी पर एक संस्थागत और सुनियोजित प्रहार हैं। और ये ऐसी आज़ादी है जिसे हम आपसे ऐहसान के तौर पर मांग नहीं रहे हैं, ये ऐसी स्वतंत्रता है जिसको हमारे संविधान ने दिया है।
इस स्वतंत्रता दिवस के मौके पर चलो हम आज़ादी की संकीर्ण सोच से ऊपर उठकर इसके असली मायने तलाशें, समझें। ये असली मायने सिर्फ तिरंगा फहराने, भारतीय आर्मी, भारत माता की जय, पाकिस्तान मुर्दाबाद, जय श्री राम तक सीमित ना करें। हम चाहे जितना भारत माता कि जय कह लें लेकिन उस जय का कोई मतलब नहीं हैं अगर हम किसी लड़की या महिला को गन्दी नज़र से देखते या परेशान करते हों। हम चाहे जितना सिनेमा हॉल में खड़े होकर देशभक्ति साबित कर दें, लेकिन उस देशभक्ति का कोई मतलब नहीं अगर हम अपनी देशभक्ति के नशे में भीड़ में इकट्ठे होकर किसी को जान से मार डालें।
हम चाहें जितना भारत कि विविधता में एकता की बात कहकर गर्व महसूस कर लें, लेकिन उस गर्व का कोई मतलब नहीं रह जाता अगर हम अभी भी जाति, धर्म, लिंग, नस्ल, भाषा, क्षेत्र, संस्कृति-परम्परा, रंग-रूप, के आधार पर हिंसा और भेद-भाव कर रहे हैं। चलो वात्सव में आज़ादी की असली कल्पना को साकार करते हैं, एक ऐसी आज़ादी जहां पर आदमी के खाने कि पसंद को लेकर उसको मार ना दिया जाये, ऐसी आज़ादी जहां आप जिस चीज़ पर विश्वास करते हैं या आप जो पहनते हैं उसके लिए शर्मिन्दा ना होना पड़े, एक ऐसी आज़ादी जहां पर किसी से प्यार करने पर आपको अपराधी ना करार दिया जाये। एक ऐसी आज़ादी जहां पर सच्चाई और अच्छाई लिखने, सुनने और सुनाने पर किसी को प्रताड़ित ना किया जाये। एक ऐसी आज़ादी जो हिंसामुक्त, मानवता, भेद-भाव मुक्त, सम्मान और प्यार से भरा हो।
जय हिन्द!