पिछले हफ्ते की बात है मैं इंस्टाग्राम चेक कर रही थी, तभी मेरी नज़र एक पोस्ट पर गयी और उस पोस्ट में मेंशन हैशटैग पर। नेशनल औरगैस्म डे। हां यही था। मैंने थोड़ा हैशटैग पर जाकर एक्सप्लोर किया।
नैशनल ऑरगैज़्म डे कि शुरुआत असल में 18 नवंबर को ब्राज़ील के स्थानीय काउंसिलमैन, अरिमियो दांतास द्वारा पारित हुए कानून के साथ मानी जाती है, जिसे मूलतः 8 अगस्त को मनाया जाता है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और लंदन जैसे अन्य देशों में इसे 31 जुलाई को मनाया जाता है।
ऑरगैज़्म मानव शरीर से जुड़ा हुआ एक बेहद ज़रूरी मुद्दा है जिसपर खुले तौर पर बात होना ज़रूरी है। पर ऐसे मुद्दों पर हमारा देश बात करना पसंद नहीं करता। जहां एक तरफ दूसरे देशों में पिछले दिनों नैशनल ऑरगैज़्म डे मनाया गया है और उससे जुड़ी बातें लोग खुले तौर पर लिखते-पढ़ते और उनपर बात करते हैं। वहीं भारत में सेक्स और ऑरगैज़्म जैसी बातों पर लोग मुंह छिपाने लगते हैं। उन्हें यह मुद्दा बात करने लायक ही नहीं लगता। यहां तक कि अधिकतर लोग अपने ही साथी या पार्टनर से इसपर बात नहीं कर पाते। हिन्दी समाज में तो ऑरगैज़्म को लेकर शायद ही कभी किसी ने लिखा हो। एक बेहद दिलचस्प बात ये भी कि हिन्दी में ऑरगैज़्म का अनुवाद तृप्ति है।
महिला और पुरुष दोनों एक दूसरे से शरीरिक तौर पर बेहद अलग हैं। और दोनों पर समाज का नज़रिया भी अलग है। पुरुष को सभी प्रकार की छूट बचपन से ही भेंट में मिल जाती है, वहीं महिलाओं को बचपन से ही अलग तरीकों से पाला जाता है। उनके लिए तमाम तरह के नियम बंधन बनाए जाते हैं। उन्हें बचपन से वयस्क होने की दहलीज तक आते-आते इस तरह की शिक्षा दी जाती है कि वे अपने शरीर से जुड़ी बातें चाह कर भी नहीं कर पाती।
एक स्त्री अगर बिना पुरुष के साथ संबंध बनाए अगर शारीरीक सुख प्राप्त करने में सक्षम है तो इस बात को यह पूरा समाज हजम नहीं कर पाता।
मै यहां सीधे तौर पर मास्टरबेशन के उपर बात कर रही हूं जिसके बारे में ज़्यादातर लड़के 10 से 12 साल की उम्र में ही जान लेते हैं पर वही लड़कियों में वयस्क होने तक भी उन्हें इस बात की पूरी जानकारी नहीं होती है। अगर वह बिना किसी पुरुष के साथ संबंध बनाए शारीरिक सुख प्राप्त करती है तो उसे वह अपने दोस्तों में स्वीकार नहीं कर पाती। समाज में यह धारणा बना दी गयी है कि एक मास्टरबेट करता पुरुष आप सोच सकते हैं, उसे स्वीकार सकते हैं पर वहीं एक स्त्री को मास्टरबेट करती हुई छवि किसी के दिमाग में ही नहीं आता।
उन्हें अपने लिए मास्टरबेशन गलत लगता है। वहीं मास्टरबेशन पर बात करना एक पुरुष के लिए बेहद साधारण बात है और एक स्त्री के लिए ऐसा मसला है जो उसका भी उतना होते हुए भी उसका नहीं है।हालांकि ऐसे मुद्दों पर बात करना बेहद ज़रूरी है, ये जितनी आसानी से पुरुष के लिए स्वीकार्य है, उतना ही एक औरत के लिए भी होना ज़रूरी है।
हालात यहां तक है कि अगर लड़कियां खुलकर अपने सबसे सामान्य चीजों जैसे पीरीयडस और ब्रा जैसी चीज़ों पर बात करने का साहस जुटाती हैं, तो उन्हें पब्लिकी ट्रोल किया जाता है, शेम किया जाता है। ऐसे में ऑरगैज़्म और वो भी लड़कियों का ऑरगैज़्म पर बात करना तो कल्पना से भी परे बात है।
अभी हाल ही मे आई वीरे दि वेडिंग और लस्ट स्टोरी ऐसी फिल्में है जहां स्त्री से जुड़े शारीरिक सुख के मुद्दे पर थोड़ी रौशनी डालने का प्रयास किया गया है। लेकिन उसपर भारतीय मर्दों ने खुलकर स्वस्थ्य बातचीत करने के बदले उस फिल्म को और उसकी एक्ट्रेस को ही ट्रोल किया।
हकीकत ये है कि ज़्यादातर भारतीय मर्द नहीं जानते कि महिलाओं का भी ऑरगैज़्म उतना ही मैटर करता है, जितना उनका। दरअसल इंटरकोर्स के वक्त उनका इस बारे में ख्याल ही ना आना अपने तरह का पितृसत्ता का हावी होना ही बताता है।
भारतीय पुरुष लड़कियों के मास्टरबेशन को इसलिए भी हजम नहीं कर पाते, क्योंकि उन्हें अपनी सत्ता, मर्द होने की धमक पर यह हमले जैसा लगता है। जबकि कई ऐसे रिसर्च बताते हैं कि 62 प्रतिशत महिलाओं को ऑरगैज़्म मास्टरबेशन के वक्त आता है। ऑरगैज़्म भी दूसरे सामान्य और प्राकृतिक प्रक्रियाओं का ही एक हिस्सा है। स्वास्थ्य पर इसका सीधा असर है। लेकिन भारतीय मर्द ये शायद ही समझें। उन्हें लगता है कि ऑर्गैज़्म पुरूषों के अधिकार क्षेत्र का ही मसला है। सामाजिक टैबू है।
लेकिन वक्त है कि अब इन मुद्दों पर, यौन शिक्षा से जुड़े पहलुओं पर खुलकर बात हो, ताकि एक स्वस्थ्य और बराबरी वाला समाज बनाया जा सके।